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25 जून 2011

छत्तीसगढ़ःशिक्षाकर्मी भर्ती से पहले अचानक बढ़ गए बहरे

नौकरी की चाहत लोगों से क्या-क्या करा सकती है, यह शिक्षाकर्मी भर्ती में नजर आ रहा है। प्रक्रिया में विकलांगों के लिए अलग कोटा के साथ बोनस नंबर भी हैं। इसका बेजा फायदा उठाने के लिए फर्जी विकलांगता प्रमाण पत्र बनवाने वालों का गिरोह सक्रिय हो गया है।

बहरेपन का सर्टिफिकेट इसके लिए सबसे आसान रास्ता है। पिछले छह महीनों में ही 311 लोगों ने ईएनटी हैंडीकैप का सर्टिफिकेट लिया है। इनमंे से कई प्रमाण पत्र संदेह के दायरे मंे हैं।

शिक्षाकर्मी भर्ती प्रक्रिया शुरू होते ही विकलांगता प्रमाण पत्र बनवाने वालों की संख्या अचानक कई गुना बढ़ गई है। जनवरी से अब तक 1804 लोगों को जिला अस्पताल से विकलांगता प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। इनमें से 1286 लोगों ने अस्थि विकलांग, 123 लोगों ने दृष्टि बाधित, 84 लोगों ने मंद बुद्धि और 311 लोगों ने ईएनटी (कान, नाक, गला) विकलांगता का प्रमाण पत्र बनवाया है।

अब भी इसके लिए ढेरों आवेदन आ रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि कई ऐसे लोग भी प्रमाण पत्र लेने की कोशिश में हैं, जो किसी भी तरह से विकलांग नहीं हैं। कई ने तो यह प्रमाण पत्र हासिल भी कर लिया है। असल वजह यह है कि शिक्षाकर्मियों की थोक में हो रही भर्ती में विकलांगों को बोनस नंबर दिए जा रहे हैं।

नौकरी पाने के लिए बेरोजगार अब फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर शार्टकट रास्ता भी अख्तियार कर रहे हैं। अब तक शिक्षाकर्मी भर्ती में फर्जी मार्कशीट, अनुभव प्रमाण पत्र और डीएड-बीएड डिग्री के मामले सामने आते रहे हैं।


अब बेरोजगार विकलांगता का रास्ता अपनाकर नौकरी पाने की जुगत में हैं। जिला पुनर्वास केंद्र में जांच करवाने के लिए बिलासपुर के अलावा दूसरे जिलों के लोग भी पहुंच रहे हैं। जांजगीर-चांपा, कोरबा, रायगढ़ समेत कई जिलों के लोग यहां जांच करवा रहे हैं। 

जांच और कार्रवाई दोनों मुश्किल

फर्जी विकलांगता प्रमाण पत्र हासिल करने के इस रैकेट का पता लगाना काफी मुश्किल है। हाथ-पैर या दिमागी विकलांगता के बारे में किसी को देखकर ही पता लगाया जा सकता है, पर किसी को कुछ सुनाई दे रहा है या नहीं, यह पता करना काफी मुश्किल है। 

दूसरी तरफ प्रमाण पत्र हासिल करने वाले कई लोग वाकई में विकलांग हैं। अगर श्रवण बाधितों को मिलने वाली सुविधाएं बंद की जाएं, तो उन्हें बेवजह नुकसान होगा। इसे देखते हुए कोई सीधी कार्रवाई भी नहीं की जा सकती। मामले की शिकायत अफसरों तक भी पहुंची है। अफसर भी उधेड़बुन में हैं कि मामले में कैसे कदम उठाएं।

ऐसे होती है चालाकी

मशीन के दो ईयरफोन कान में लगा दिए जाते हैं। फिर चेक करने वाले माइक से कुछ बोलते हैं। आवेदक से पूछा जाता है कि उन्होंने क्या सुना? अलग-अलग फ्रिक्वेंसी में यह टेस्ट किया जाता है। फर्जी प्रमाण पत्र हासिल करने पहुंचे लोग यहीं चालाकी करते हैं। वे बार-बार कुछ सुनाई नहीं देने का बहाना करते हैं। 

इससे इसी आधार पर उन्हें बहरेपन की टेस्ट रिपोर्ट मिल जाती है और इसे दिखाकर जिला अस्पताल से डॉक्टर का मेडिकल सर्टिफिकेट भी मिल जाता है। छह महीनों में 322 लोगों ने श्रवण बाधित विकलांगता के लिए जिला पुनर्वास केंद्र में अपनी जांच करवाई है। इनमें से 311 लोगों को प्रमाण पत्र जारी कर दिए गए। 

"हम पूरी सावधानी से ऑडियोमेटरी मशीन के माध्यम से श्रवण शक्ति की जांच की जाती है। इत्मिनान होने के बाद ही संबंधित व्यक्ति को टेस्ट रिपोर्ट दी जाती है। "

वीके सिंह, विशेष शिक्षक जिला पुनर्वास केंद्र

"श्रवण बाधित विकलांगता प्रमाण पत्र जिला पुनर्वास केंद्र से मिली टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर जारी किए जाते हैं।"

डा. बीआर नंदा, सिविल सर्जन जिला अस्पताल

निजी केंद्रों की टेस्ट रिपोर्ट भी चलती है

श्रवण बाधित विकलांगता प्रमाण पत्र के मामले में एक घालमेल ये भी है कि कुछ निजी सेंटर भी ऑडियोमेटरी मशीन के माध्यम से जांच कर टेस्ट रिपोर्ट देते हैं। निजी सेंटर द्वारा जारी इस रिपोर्ट के आधार पर भी जिला अस्पताल से विकलांगता प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं। ऐसे में जाहिर है कि प्रमाण-पत्र बनाने में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी होती है। 

ईएनटी में बड़ा खेल

फर्जी विकलांगता प्रमाण पत्र का असली खेल ईएनटी (कान, नाक, गला) में होता है, खासकर बहरेपन में। बाकी श्रेणियों में विकलांगता दिखती है, पर बहरेपन की जांच के लिए कोई निश्चित पैमाना नहीं है। इसकी जांच ऑडियोमीटर मशीन से होती है। जिला पुनर्वास केंद्र में लगी इस मशीन से जांच होती है कि आवेदक कितना बहरा है। 

पकड़ें भी तो कैसे?

विकलांग प्रमाण पत्र के लिए बहरा बनना जितना आसान है, उतना ही कठिन इस फर्जीवाड़े को पकड़ना है। जिला पंचायत दूसरे प्रमाण पत्रों की तरह विकलांग प्रमाण पत्र को भी जांच के लिए भेजता है। यह प्रमाण पत्र उसी संस्थान और उन्हीं अधिकारियों के पास पहुंचता है, जो लेनदेन कर इसे जारी करते हैं। ऐसे में प्रमाण पत्र के फर्जीवाड़े के खुलासे की उम्मीद बेमानी ही है। 

अगर किसी दूसरी एजेंसी से भी जांच कराई जाए तो भी प्रमाण पत्र को झुठलाना टेढ़ी खीर है। दरअसल जांच का वही पुराना तरीका है, जिसमें परिणाम अपने आपको बहरा बताने वाले पर ही निर्भर करता है। बहरे आदमी के कान में मशीन ईयर फोन लगाया जाता है। 

विशेष मशीन से जुड़े इस ईयरफोन का वाल्यूम तब तक बढ़ाया जाता है, जब तक उसे सुनाई न पड़े। जितना ज्यादा वाल्यूम होगा, बहरेपन का प्रतिशत भी उतना ही अधिक होगा। यही वजह है कि बहरेपन का खेल बिना किसी रोक-टोक के फल-फूल रहा है(यासीन अंसारी,दैनिक भास्कर,बिलासपुर,25.6.11)।

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