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17 जून 2011

राजस्थान में आरक्षण विरोधःसरकार हावी, कर्मचारी पस्त

सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू कराने की कोशिश कर रहे कर्मचारियों ने बांहों पर काली पट्टी बांध कर विरोध तो जताया, लेकिन सुबह ही ऑफिस पहुंच गए। मिशन 72 से जुड़े कर्मचारी रैली तो नहीं कर पाए लेकिन दोपहर डेढ़ बजे एक प्रतिनिधिमंडल ने राजभवन में राज्यपाल के नाम उनके सचिव को ज्ञापन सौंपा।
नौकरी के दौरान पदोन्नति में आरक्षण व्यवस्था को हटाने और आरक्षण संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मनवाने के लिए राज्य के एससी एसटी को छोड़कर अन्य वर्ग के कर्मचारी व अधिकारी इस प्रकार के आंदोलन में उतर आए हैं। मिशन 72 की ओर से शुक्रवार को उद्योग मैदान में चेतावनी रैली आहूत की गई थी, लेकिन सरकार ने इस रैली को अनुमति नहीं दी। इसके बाद सभी कर्मचारियों व अधिकारियों ने काला दिवस मनाने की घोषणा की थी।
छह माह तक रैली नहीं : बुधवार मध्य रात्रि के बाद जारी आदेश में अगले 90 दिनों के लिए कर्मचारियों के धरने, प्रदर्शन और रैली पर रोक लगा दी गई है। ये आदेश सभी वर्गो के सभी कर्मचारियों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी गुट के हों। फील्ड ड्यूटी में रहने वाले कर्मचारियों को भी शुक्रवार को ऑफिस में बैठने के आदेश दिए गए हैं। बिना सक्षम आदेश अनुपस्थित रहने वाले कर्मचारियों को बिना वेतन अवकाश और सेवा विच्छेद की श्रेणी में माना जाए। वैसे सरकार के इस फैसले ने मिशन-72 से जुडे सरकारी कर्मचारियों को हिला कर रख दिया है।

क्यों जारी किया आदेश: आदेश में तर्क दिया गया है कि रैली-प्रदर्शन से समाज में तनाव फैलेगा और कानून व्यवस्था बिगड़ेगी। आदेश के अनुसार बिना रैली और सभा किए कोई भी कर्मचारी ज्ञापन देने को इन आदेशों से मुक्त रखा गया है।



क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट के 5 फरवरी, 2010 के फैसले को यथावत रखा जिसमें री गेनिंग की व्यवस्था को खत्म करने संबंधी राज्य सरकार की दो अधिसूचनाओं को निरस्त कर दिया गया था।> मिशन 72 का कहना है कि पदोन्नति में आरक्षण अब खत्म हो चुका है क्योंकि राज्य सरकार ने 25 अप्रैल, 2008 की अधिसूचना जारी करने से पूर्व सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज प्रकरण में दिए फैसले के मुताबिक क्वांटीफाएबल डाटा एकत्रित नहीं किया था।> नागराज प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारें चाहें तो पदोन्नति में आरक्षण और वरिष्ठता दे सकती है, लेकिन इससे पहले तीन बिंदुओं (1) पिछड़ापन (2) पर्याप्त प्रतिनिधित्व का अभाव और (3) प्रशासनिक दक्षता और कार्यकुशलता का क्वांटीफाएबल डाटा एकत्र करे।> सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए के.के. भटनागर समिति का गठन किया है।> मिशन 72 के अनुसार वरियता सूचियां दुबारा बनाई जाए और भटनागर समिति की सिफारिशें भविष्य से लागू की जाए न कि पिछली तारीखों से।
चुनावों में सिखाएंगे सबक : मिशन-72 संघर्ष समिति अध्यक्ष पीपी बिडयासर ने बयान जारी कर कहा है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी कर कोर्ट की अवमानना कर रही है। राज्य सरकार के इस रवैये से कर्मचारियों में आक्रोश बढ़ गया है जिसका जवाब कर्मचारी प्रदेश में आगामी चुनावों में देंगे।
भटनागर समिति को चुनौतीः समता आंदोलन ने सुप्रीम कोर्ट में भटनागर समिति के गठन को चुनौती देते हुए अवमानना याचिका दायर की हुई है। जिसके अनुसार पदोन्नति में आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार समिति का गठन कैसे कर सकती है। इस पर सुनवाई 20 जुलाई को होगी।
(दैनिक भास्कर,जयपुर,17.6.11)

दैनिक जागरण की रिपोर्ट भी देखिएः
सरकारी नौकरी में पदोन्नति में आरक्षण के विरोध पर राजस्थान सरकार और कर्मचारियों के बीच जारी विवाद गहराता जा रहा है। पदोन्नति में आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर शुक्रवार को मिशन 72 की होने वाली रैली पर सरकार ने रोक लगा दी। यही नहीं प्रशासन ने बुधवार देर रात रैली स्थल से टैंक और सारा सामान उठवा दिया है। सरकार ने रैली के लिए कर्मचारियों को छुट़टी देने से भी साफ इंकार कर दिया है। इससे सरकार और कर्मचारियों के बीच टकराव के आसार बढ़ गए हैं। गुरुवार को मुख्यमंत्री निवास पर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में इस मसले पर कैबिनेट की अनौपचारिक बैठक हुई। जिसके बाद गृहमंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि सरकार प्रदेश में किसी तरह की क्लास वार नहीं चाहती और इसे रोकने के लिए किसी तरह की रैली की इजाजत नहीं देगी। मिशन 72 की ओर से जयपुर में शुक्रवार को एक रैली का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की मांग कर रहे हैं। इस फैसले के अनुसार सरकारी कर्मचारियों के पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिए। इसे लेकर दो तीन दिन से राज्य का राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। बैठक के बाद मंत्री अब सरकार की किरकिरी होने से बचाने के लिए लीपापोती में लगे हैं। सरकार की कोशिश वर्गहित के नाम पर आरक्षण प्राप्त करने वाले और आरक्षण नहीं प्राप्त करने वाले वर्गो के बीच पैदा हुए मतभेद को दूर करना है। धारीवाल ने कहा कि दोनों ही पक्षों में से किसी को भी धरना, प्रदर्शन या रैली की अनुमति नहीं दी जाएगी। सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार काम करेगी। धारीवाल ने पदोन्नति में आरक्षण के मामले को अटकाए रखने के लिए पिछली भाजपा सरकार को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि पिछली सरकार ने 18 माह तक मामले पर कोई निर्णय नहीं लिया और अंत में 2006 में नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

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