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07 जुलाई 2011

बिहारःस्कूलों में धूल चाट रहीं 80 लाख की किताबें

नि:संदेह राज्य सरकार द्वारा स्कूली शिक्षा में गुणात्मक बदलाव की खातिर कई कदम उठाए गए हैं। उनमें से बच्चों के लिए लागू बोधिवृक्ष कार्यक्रम भी है। मगर निचले स्तर पर प्रशासनिक लापरवाही से एक अच्छी योजना का क्या हश्र होता है? इसकी बानगी भी बोधिवृक्ष कार्यक्रम ही है। स्कूलों में यह योजना लागू है! इसके संबंध में शायद अधिकारियों को भी ठीक से जानकारी नहीं हो। इसलिए पहले इस योजना के बारे में जान लें। भगवान गौतम बुद्ध को जिस बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसी वृक्ष के नाम से दो वर्ष पहले बोधिवृक्ष वाचन उन्नयन कार्यक्रम शुरू की गई थी। उद्देश्य था-कक्षा एक से पांच तक के बच्चों में समझ कर पढ़ने की क्षमता विकसित करने का। प्रत्येक जिले में पूरी योजना एक कैलेंडर के रूप में स्कूलों को सौंपी गई थी। तब पटना जिले में भी इस योजना को लेकर आधिकारिक तौर पर कई दावे किए गए थे। जिले के 2852 प्राथमिक एवं 1085 मध्य विद्यालयों में करीब 80 लाख रुपये से ऊपर के किताबें भेजी गई थीं। राज्य सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग ने अधिकारियों को बोधिवृक्ष कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कमान सौंपी थी। शुरू में इस कार्यक्रम का काफी प्रचार-प्रसार भी हुआ था। मगर निचले स्तर के अधिकारियों की लापरवाही से यह कार्यक्रम बीच में ही दिशाहीन होती चली गई..।

बच्चे बोले-मजेदार थीं किताबें
बोधिवृक्ष कार्यक्रम की खोज-खबर लेने के दरम्यान सोमवार को मध्य विद्यालय, सैदपुर और चिरैयाटांड में हैरतंगेज जानकारी मिली। शिक्षकों ने बताया कि कार्यक्रम से जुड़ी किताबें बक्से और आलमारी में बंद है। इस पर किताबों को देखने की जिज्ञासा जगी..। वाकई क्लास वन और टू के बच्चों में रंगीन एवं सचित्र किताबें समझ कर पढ़ने की क्षमता विकसित करने के मकसद से बेजोड़ व्यवस्था की गई थी। इसके बारे में कई बच्चां ने हौसले से बोला-अंकल, मजेदार किताबें थीं, चित्रों को देखते ही पाठ समझ में आ जाता था.. बच्चों में उमंग देख कर यह अहसास हुआ कि खेल-खेल में शिक्षा देने की एक अच्छी योजना कैसे लापरवाह अधिकारियों की भेंट चढ़ गई?(दीनानाथ साहनी,दैनिक जागरण,पटना,7.7.11)

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