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14 जुलाई 2011

मध्यप्रदेशःकॉलेजों में चालीस नहीं, अस्सी मिनट का होगा लेक्चर

कॉलेज में पढ़ने वाले ऐसे छात्र जिनके लिए चालीस मिनट का लेक्चर भी भारी पड़ता हो, अब जरा संभल जाएं। दरअसल, इस लेक्चर को चालीस से बढ़ाकर अस्सी मिनट का किए जाने की कवायद शुरू हो गई है। कमिश्नर उच्च शिक्षा ने इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसे जल्द ही मंजूरी के लिए प्रमुख सचिव और विभागीय मंत्री के पास भेजा जाएगा। विभाग का मानना है कि लेक्चर का समय बढ़ाने से कोर्स पूरा करने में मदद मिलेगी, साथ ही सत्र भी समय पर पूरा किया जा सकेगा। नए सिस्टम के अगले महीने से लागू किए जाने की उम्मीद है।


प्रदेश में बिगड़े सेमेस्टर सिस्टम को सुधारने की कवायद लगातार की जा रही है। अकादमिक कैलेंडर के अनुसार परीक्षाएं और रिजल्ट समय पर घोषित हो इसके लिए कमिश्नर ने ये प्रस्ताव तैयार किया है। प्रस्ताव के मुताबिक कॉलेज में पढ़ाने वाले अतिथि विद्वानों को अपडेट करने और उनके पढ़ाने के स्तर में सुधार लाने के लिए प्रोफेसर उनकी क्लास लेंगे। फिलहाल एक सेमेस्टर में नब्बे शैक्षणिक दिवस होते हैं, जिन्हें कम कर 60 किए जाने का भी प्रस्ताव है। प्रदेश के विभिन्न कॉलेजों से मिले सुझावों के आधार पर इस प्रस्ताव को तैयार किया गया है।

एक्सपर्ट व्यू:
पढ़ाई में रुचि रखने वाले छात्रों को लेक्चर की अवधि बढ़ने से फायदा ही होगा। हां, इससे उन छात्रों को जरूर दिक्कत हो सकती है, जिन्हें पढ़ना पसंद नहीं।
संतोष श्रीवास्तव, पूर्व कुलपति, बीयू

प्रेक्टिकल के विषयों के लेक्चर की अवधि बढ़ाना तो ठीक है, लेकिन थ्योरी आधारित विषयों के लेक्चर का समय बढ़ाना औचित्यहीन है। ज्यादा समय तक एक ही विषय पढ़ते रहने से छात्र को बोझिल लगने लगता है और प्रोफेसर भी विषय से भटकने लगता है। इसे लागू करने के पहले छात्रों से चर्चा करनी चाहिए।
दिनेश नागर, साइकोलॉजिस्ट, एचओडी, बीयू

उच्च शिक्षा का स्तर बेहतर करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। प्रिंसिपल से मिले सुझावों के आधार पर प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसे स्वीकृति के लिए प्रमुख सचिव के पास भेजा जा रहा है। 
डॉ.वीएस निरंजन, कमिश्नर, उच्च शिक्षा

40 मिनट का लेक्चर ही क्यों 
पूरे विश्व में एक विषय के लेक्चर का स्टैंडर्ड टाइम 40 मिनट ही निर्धारित किया गया है। इसे निर्धारित करने के पहले इस पर वैज्ञानिकों ने काफी अध्ययन किया था। जिसमें पता चला कि व्यक्ति की एकाग्रता 35 मिनट तक की होती है। इसके बाद उसे विषय से बोरियत होने लगती है(अभिषेक दुबे,दैनिक भास्कर,भोपाल,14.7.11)।

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