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03 जुलाई 2011

हरियाणा बनेगा एजुकेशन हब

दिल्ली के बाद हरियाणा का सोनीपत अब उत्तर भारत में एजुकेशन का दूसरा बड़ा हब बनने जा रहा है। यानी राज्य के युवाओं को करियर बनाने के मद्देनजर दूसरे प्रदेशों में दाखिलों के लिए धक्के खाने से तो छुटकारा मिलेगा ही, हजारों हाथों को रोजगार भी मिलेगा। हुडा ने देश के पांच बड़े एजुकेशनल ग्रुप्स को सोनीपत के राजीव गांधी एजुकेशन सिटी में जमीन अलाट की और दो साल में निर्माण कार्य पूरा करने पर जमीन की लागत में 10 प्रतिशत छूट देने की आफर भी दी है।

चेन्नई की एसआरएम यूनिवर्सिटी को 47 एकड़ जमीन मेडिकल कालेज और यूनिवर्सिटी बनाने के लिए अलाट की गई है। एसआरएम के देश में सैकड़ों इंस्टीट्यूट पहले से चल रहे हैं। 20 एकड़ जमीन हैदराबाद के प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड फायनेंशियल एकाउंटिंग को दी गई है। इस संस्थान की देश के विभिन्न प्रदेशों में 18 ब्रांचें चल रहीं हैं और हरियाणा में अब पहली ब्रांच खुलेगी।


इसी तरह भारतीय विद्यापीठ दिल्ली को साइंस से संबंधित माइक्रोबायोलॉजी व रोबोटिक विषय पढ़ाने के लिए 10 एकड़ जमीन हुडा ने अलाट की है। इस ग्रुप के देश में 182 संस्थान चल रहे हैं। पंजाब के मंडी गोबिंदगढ़ स्थित रीजनल इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी को हुडा से आर्ट्स, साइंस व कामर्स पढ़ाने और मेडिकल कालेज शुरु करने के लिए 11.5 एकड़ जमीन मिली है। 
सोनीपत स्थित चंद्रावती एजुकेशनल ट्रस्ट को मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के लिए 2.5 एकड़ जमीन दी गई है। इससे पहले हुडा फरीदाबाद की मानव रचना यूनिवर्सिटी को 25 एकड़ सहित पांच अन्य बड़े ग्रुप्स को एजुकेशन सिटी में जमीन अलाट कर चुका मगर उन्हें कोई छूट नहीं दी गई। 

5 हजार एकड़ में बसेगी एजुकेशन सिटी

चंडीगढ़ दिल्ली हाईवे पर सोनीपत में एजुकेशन सिटी करीब 5 हजार एकड़ में डेवलप होगी। इसके लिए पहले चरण में हुडा ने 2 हजार एकड़ जमीन एक्वायर की है। यह एक तरफ केएमपी यानी कुंडली मानेसर पलवल एक्सप्रेसवे और दूसरी तरफ ईस्टर्न पेरीफेरी एक्सप्रेसवे जो फरीदाबाद नोएडा गाजियाबाद व सोनीपत को जोड़ेगा पर बसेगी। यानी दिल्ली व आसपास के एरिया से कनेक्टिविटी के लिहाज से लोकेशन बढ़िया है।

स्कूलों में बनेंगे प्री-फेब्रीकेटेड रूम

पंचकूला. राज्य के सरकारी स्कूलों में कमरे कम और बच्चों की बढ़ती तादाद को देखते हुए शिक्षा विभाग अब मूवेबल प्रीफेब्रीकेटेड कमरे बनवाने पर विचार कर रहा है। मकसद यही है कि कम लागत और समय में ज्यादा से ज्यादा बच्चों के बैठने की व्यवस्था हो सके। वर्ना विभाग को डर है कि कई बच्चे जगह की तंगी के चलते स्कूल आना छोड़ देंगे या दूसरे स्कूलों में दाखिला ले सकते हैं। इससे सरकार का ज्यादा से ज्यादा बच्चों के उनके घरों के नजदीक नि:शुल्क, अनिवार्य व गुणात्मक शिक्षा देने के प्रयासों को गहरा झटका लग सकता है।

फेब्रिकेटेड क्लास रूम के बारे में विभाग का मानना है कि यह एक महीने में तैयार हो सकता है, जबकि पक्के कमरे बनाने में ज्यादा खर्चे के साथ एक साल तक का समय लगना स्वाभाविक है। इन दिनों राज्य में प्राइमरी से हाई स्कूल लेवल के करीब 16 हजार सरकारी स्कूल हैं। इनमें करीब 26 लाख बच्चे पढ़ रहे और ज्यादातर निम्न व मध्यम वर्ग से हैं। 

जानकारी के अनुसार बीते अर्से में राज्य के विभिन्न जिलों से कई स्कूलों ने उच्च शिक्षा निदेशालय को कमरों की कमी व बच्चों की तादाद का हवाला देते हुए स्कूलों में अतिरिक्त कमरे बनवाने का आग्रह किया है। इन कमरों का निर्माण लोक निर्माण विभाग कराता है। शिक्षा निदेशालय का मानना है कि मूवेबल प्रीफेब्रीकेटेड क्लास रूम बनाने का एक फायदा यह भी होगा कि स्कूलों में मांग अनुसार पक्के कमरे बनने पर इन्हें जरुरतानुसार दूसरे स्कूलों में शिफ्ट किया जा सकता है(कपिल चड्ढा,दैनिक भास्कर,पंचकूला,3.7.11)।

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