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30 जुलाई 2011

शिक्षा के अधिकार पर महाराष्ट्र सरकार का प्रश्न

महाराष्ट्र की प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा का अधिकार लागू करने के मामले में राज्य सरकार जबर्दस्त टालमटोल कर रही है। मुख्य रूप से इसलिए कि बड़े राजनेता और स्कूल के मैनेजमेंट इसके खिलाफ है। मैनेजमेंट ने यह सवाल उठाए हैं कि महंगा एज्युकेशन लेने वाले उच्च वर्ग के छात्रों के साथ गरीब छात्र रहनसहन एवं कल्चर के संदर्भ में तालमेल कैसे बिठा पाएंगे? राजनेता इस बात को लेकर आशंकित हैं कि हर तबके पर यदि सरकार का दखल होगा तो संस्थाएं चलेंगी कैसे? मसलन फीस सरकार तय करेगी, शिक्षकों का वेतन सरकार तय करेगी, मैनेजमेंट कमेटियों में पेरेंट्स एवं एनजीओ को 75 प्रतिशत प्रतिनिधित्व देने का कानून लाएगी, तो संस्थाओं का रोल क्या रहेगा?


इस तरह के सवालों एवं राजनीतिक दबाव के कारण सरकार ने अब तक 'राइट टू एज्युकेशन' लागू करने के लिए विधानमंडल में विधेयक पेश नहीं किया है। केंद्र द्वारा पारित इस कानून के सिलसिले में राज्य के नियम बनाने के लिए विधेयक लाना जरूरी है। खास तौर पर यह तय करना जरूरी है कि फ्री एज्युकेशन के लिए पात्र कौन होगा? केंद्र ने हर स्कूल में 25 प्रतिशत गरीब और वंचित वर्ग के छात्रों को मुफ्त शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया है। राज्य को यह 25 प्रतिशत कोटा परिभाषित करना है। 

शालेय शिक्षा मंत्री राजेंद्र दर्डा ने बताया कि इस बारे में नियम बनाने की प्रक्रिया जारी है। यह काम मुश्किल है। देश के बड़े 17 राज्यों ने अभी इस पर अमल नहीं किया है। गुजरात ने केंद्र से 700 करोड़ आंध्र ने 800 करोड़ मांगे हैं। स्कूल मैनेजमेंट आर्थिक भार को लेकर स्पष्टता चाहेंगे। पहले ही वे स्कूल मैनेजमेंट कमेटियों में पेरेंट्स, एनजीओ ,शिक्षकों के प्रतिनिधियों की संख्या को लेकर विरोध दर्ज कर चुके हैं। 

कुल मिलाकर आठवीं तक फ्री एज्युकेशन मुहैया कराने का अधिकार लागू करने का मामला जटिल बताकर अनगिनत सवाल खड़े किए जा रहे हैं। अनुदानित स्कूलों में तो सरकार ने वह आंशिक रूप से लागू कर दिया है पर बिना अनुदानित संस्थाओं में वह लागू किए जाने के आसार कम ही है। अनएडेड संस्थाओं के संगठन द्वारा इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। 

यदि अड़चनें हैं तो सरकार उसे चरणों में लागू कर सकती हैं। करना ही पड़ेगा। हम राइट टू एज्युकेशन लागू करने के मामले में महाराष्ट्र सरकार को दो बार नोटिस भेज चुके हैं। जनहित याचिका भी दायर की है। यदि अमीर - गरीब बच्चों में तालमेल बिठाने का सवाल हैं तो धीरे धीरे समाज और बच्चों उसके आदि हो जाएंगे। सवाल आर्थिक भार का है तो केंद्र ने साफ कहा है कि राज्य और वह मिलकर पैसा देंगे। 

जयंत जैन , फोरम फॉर फयरनेस इन एज्युकेशन के प्रमुख 

सरकार ऐसा कुछ नहीं करना चाहती , जो शिक्षा का व्यापार करने वाले राजनेताओं के हित में नहीं। जनता दरबार में एक गरीब पेरेंट को मंत्री राजेंद्र दर्डा ने कहा कि किसी एक स्कूल की फीस वे नहीं दे सकते तो दूसरे स्कूल में बच्चे को पढ़ाएं-दरबार में उपस्थित एक प्रत्यक्षदर्शी 
(कुमुद संघवी चावरे,नवभारत टाइम्स,मुंबई,30.7.11)

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