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24 जुलाई 2011

वैद्यजी को भी डिग्री देगी सरकार

जल्द ही गली के नुक्कड़ पर हड्डी जोड़ने का दावा करने वाला पहलवान, या गांव में सांप काटे का जहर उतारने वाले भी खुद को सरकार के चिकित्सा तंत्र का हिस्सा बताकर हैरान कर सकते हैं। कोशिश है कि साल के अंत तक ऐसे परंपरागत चिकित्सकों की दक्षता प्रमाणित हो सके। इससे पढ़े-लिखे लोग इनके पास जाएंगे, दूसरी तरफ समाज में इन चिकित्सकों पर भरोसा बढ़ेगा और इनकी इज्जत भी होगी। उद्देश्य है कि देसी परंपरागत चिकित्सा के सही जानकारों की सेवा का समाज को फायदा मिले और फर्जी चिकित्सकों को किनारे किया जा सके। इन परंपरागत चिकित्सकों को उनकी दक्षता का प्रमाणपत्र देने का एक कार्यक्रम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने शुरू किया है। शुरुआती तौर पर इस कार्यक्रम में परंपरागत तरीके से इलाज की जा सकने वाली पांच बीमारियों को चुना गया है। इनमें पीलिया, प्रसव कराने वाली दाई, हड्डी जोड़ने वाले, चर्म रोगों को इलाज करने वाले और सांप काटे का इलाज करने वालों की दक्षता प्रामाणिक की जाएगी। तय मानकों के आधार पर प्रमाणपत्र हासिल कर इलाज करने वालों को ग्राम वैद्य का नाम देने पर भी विचार हो रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय का आयुष विभाग योजना आयोग की मंजूरी से इस कार्यक्रम का वित्त पोषण कर रहा है। इग्नू के इस कार्यक्रम में दो संस्थाएं भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआइ) और फाउंडेशन ऑफ रिवाइटलाइजेशन ऑफ लोकल हेल्थ ट्रेडिशन (एफआरएलएचटी) भागीदारी कर रही हैं। एफआरएलएचटी इन लोगों के लिए मानक तैयार कर रहा है जबकि क्यूसीआइ इन्हें मान्यता देने के मानक तैयार कर रहा है। इस योजना के तहत सबसे पहले ऐसे पारंपरिक चिकित्सकों की पहचान की जा रही है। फिर विशेषज्ञ चिकित्सकों की एक टीम इनके इलाज के तरीकों का अध्ययन कर सभी पांच तरह के इलाज के मानक तैयार कर रही है। इस कार्यक्रम का मकसद ऐसे लोगों को चिकित्सा तंत्र का हिस्सा बनाना है जो बिना औपचारिक शिक्षा पाए वर्षो से कुछ विशेष बीमारियों का इलाज करते आए हैं। उन्हें मान्यता देने का काम पूरी तरह वैज्ञानिक आधार पर किया जा रहा है जिसके तहत मान्यता देने से पहले उनकी दक्षता की पुष्टि की जाएगी। शुरुआती तौर पर इस कार्यक्रम को पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर आठ राज्यों राजस्थान, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मेघालय, उड़ीसा और तमिलनाडु में चलाया जाएगा। क्यूसीआइ की नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड के निदेशक डॉ. अनिल जौहरी ने बताया कि इसका लाभ यह होगा कि उन क्षेत्रों में भी प्रामाणिक चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराई जा सकेगी जहां अभी कोई सुविधा नहीं मिलती। अगर यह कार्यक्रम सफल होता है तो सरकार के पास इन ग्राम वैद्यों का इस्तेमाल राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में करने का विकल्प भी होगा। ऐसे चिकित्सकों के लिए सरकार से यह मान्यता लेना स्वैच्छिक होगा। सरकार उन पर इस कार्यक्रम में शामिल होने का दबाव नहीं बनाने जा रही है(नितिन प्रधान,दैनिक जागरण,24.7.11)।

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