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10 अगस्त 2011

कला संरक्षण में भविष्य

किसी भी कला को सहेजने और सुधारन में कई अवस्थाएं होती हैं। इंफ्रा-रेड और अल्ट्रावॉयलेट स्कैन, एक्स-रे और केमिकल व माइक्रोस्कोपिक एनलिसिस जैसी नई लैबोरेट्री टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके कलाकृति के नुकसान का पता लगाया जाता है, उसके बाद ही उक्त कला के ट्रीटमेंट का निर्णय लिया जाता है।


कला के प्रति हमारे यहां लोगों का रुझान सदा से रहा है। लेकिन इसमें बदलाव यह आया है कि पहले जहां सिर्फ इनकी खूबसूरती के कद्रदान हुआ करते थे, वहीं अब लोग इनमें निवेश भी करने लगे हैं। बीते साल आर्ट म्युचुअल फंड के लांच होने से यह पता चलता है कि महत्वपूर्ण निवेशक अब भारतीय कला दृश्य को गंभीरता से लेने लगे हैं। अब तो कई आर्ट गैलरियां खुल गई हैं, कला की प्रदर्शनियां पहले से कहीं ज्यादा संख्या में लगने लगी हैं और कला की नीलामी में अब आलोचकों और कला प्रेमियों के अलावा आम लोग भी हिस्सा लेने लगे हैं। कला की ओर बदलते इस परिवेश ने कलाकारों को अच्छी और बेहतर जिंदगी जीने का मौका दिया है। इन परिस्थितियों को देखते हुए आर्ट रिस्टोरर या आर्ट कंजव्रेटर की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा बढ़ी है। रीस्टोरेशन और कंजव्रेशन एक दक्ष पेशा है, जिसमें कलाकृतियों का परीक्षण, डॉक्यूमेंटेशन, उसकी देखभाल से लेकर पुरानी और नई कलाकृतियों को उनके असल रंग-रूप में संभालकर रखना है। रीस्टोरेशन और कंजव्रेशन के तहत सभी तरह की कलाकृतियों जैसे, पेंटिंग, म्यूरल, स्कल्पचर, मैनुस्क्रिप्ट (पाण्डुलिपि), टेक्सटाइल और अन्य कलाकृतियां आती हैं। हमारे देश में एंटिक और नई कलाकृतियां इतनी ज्यादा हैं कि यहां इस काम में दक्ष लोगों की जरूरत पड़ती रहती है। रीस्टोरर का काम नकली और असली कलाकृतियों में फर्क करना भी है, क्योंकि कलाकृतियों की तस्करी हमारे यहां खूब होती है और नकली कलाकृतियों को उनके बदले सामने कर दिया जाता है। कंजव्रेटर का दायित्व असली कलाकृतियों को संरक्षित करने के अलावा होने वाले नुकसान से बचाना भी है। अधिक गर्म या ठंड से कैनवस को नुकसान पहुंचता है। धूल, मोमबत्तियां-अगरबत्तियों के धुएं और आद्रता से भी कलाकृति को नुकसान पहुंच सकता है। कई बार कलाकार भी अपनी कला को संरक्षण के लिहाज से कमजोर बनाते हैं, वे जल्दी टूटने, रंगहीन हो जाने, रंग बदलने या क्रैक हो जाने वाले मैटीरियल्स का इस्तेमाल करते हैं। एक दक्ष कंजव्रेटर में तकनीकी गुणवत्ता, अनुभव और कलाकृतियों को लेकर संवेदनशीलता होना चाहिए। दूसरी ओर रीस्टोरर का काम नुकसान को ठीक करना भी है, इसके लिए कैनवस सपोर्ट में हुए खालीपन को भरना और कलाकृति की दृष्टि संबंधी निरंतरता को पेंट लेयर से बनाए रखना भी में भविष्य शामिल है। रीस्टोरेशन के काम में कई केमिकल्स और अन्य वैज्ञानिक प्रशोधन की जरूरत पड़ती है। एक कलाकृति को ठीक करने में घंटों और कई दिन भी लग सकते हैं। कई बार तो किसी कलाकृति को बनाने में जितना समय लगता है, उससे कहीं ज्यादा नुकसान की क्षतिपूर्ति में लग जाता है। कई पेंटिंग्स को तो उनके असली रंग-रूप में लाया जा सकता है, लेकिन वॉटरकलर्स को बिल्कुल भी नहीं। ऑयल पेंटिंग को ठीक करने में पंद्रह दिन से लेकर एक साल तक लग सकते हैं, यह खराबी पर निर्भर करता है। स्कल्पचर को भी पेंटिंग की तरह ही सुधारा जाता है। हां, पाण्डुलिपि को सुधारने, छांटने और क्रम से लगाने में करीब तीन महीने जरूर लगते हैं। किसी भी कला को सहेजने और सुधारने में कई अवस्थाएं होती हैं। इंफ्रा-रेड और अल्ट्रावॉयलेट स्कैन, एक्स-रे और केमिकल व माइक्रोस्कोपिक एनालिसिस जैसी नई लैबोरे ट्री टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके कलाकृति के नुकसान का पता लगाया जाता है, उसके बाद ही उक्त कला के ट्रीटमेंट का निर्णय लिया जाता है। इसके बाद काम आता है सफाई का, जिसमें सूक्ष्मता से धूल और जं ग आदि हटाया जाता है। इसके बाद पेंटिंग की गड़बड़ियों को कई मैटीरियल्स का प्रयोग करके सुधारा जाता है। रीटचिंग या ’इन पेंटिंग‘ रीस्टोरेशन की अंतिम अवस्था है। करियर काउंसलर उषा अलबुकर्क के अनुसार, इस क्षेत्र में काम करने के लिए संबंधित प्रशिक्षण लेना जरूरी है, क्योंकि अप्रशिक्षित व्यक्ति खराब हुई कला को और खराब कर सकता है। प्रशिक्षण के बाद भी अनुभवी व्यक्ति के साथ काम करके कई साल अनुभव प्राप्त करने के बाद ही अकेले काम शुरू किया जा सकता है। एक बेहतरीन रीस्टोरर का पेंटिंग, स्कल्पचर, टेक्सटाइल, पाण्डुलिपि या फोटोग्राफी की ओर केवल रुझान ही नहीं, बल्कि दक्ष होना आवश्यक है। इन सृजनात्मक कुशलता के अलावा तुरंत ग्रहण करने की क्षमता, गहराई में जाने की इच्छा, दृष्टि संबंधी संवेदनशीलता और कला व कलाकारों के लिए सम्मान का होना जरूरी है। यदि धैर्य, टेक्निकल स्किल, साइंटिफिक टेम्परामेंट हो तो बहुत बढ़िया! कई आर्ट रीस्टोरर किसी खास क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं और उसी क्षेत्र में काम करते हैं। चाहें तो किसी खास आर्ट मूवमेंट में काम कर सकते हैं, या फिर पेंटिंग या धातु, म्यूरल, इमारत, स्कल्पचर, पाण्डुलिपि, कागज में दक्षता हासिल किया जा सकता है।

संस्थान और कोर्स

इंस्टीटय़ूट ऑफ हिस्ट्री ऑफ आर्ट, नेशनल म्यूजियम, नई दिल्ली ने आर्ट रीस्टोरेशन और कंजव्रेशन का फुल टाइम कोर्स शुरू किया है। साइंस में ग्रेुजएट इस कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। फाइन आर्ट्स में जानकारी हो तो यह उम्मीदवार के लिए बढ़िया है। एपटिटय़ूड टेस्ट के बाद ही दाखिला मिलता है। मास्टर्स डिग्री दो साल का कोर्स है, वहीं पीएचडी पांच साल का। इस संस्थान से शॉर्ट-टर्म र्सटििफकेट कोर्स इंडियन आर्ट एंड कल्चर और आर्ट एप्रिसिएशन में किया जा सकता है। कर्नाटक चित्रकला परिषद कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, आर्ट रीस्टोरेशन में दो साल का कोर्स ऑफर करता है। यह एक वोकेशनल कोर्स है, यह जॉब ओरियंटेड र्सटििफकेट कोर्स है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इनटैक) ने कुछ प्रशिक्षित लोगों के साथ मिलकर रीस्टोरेशन सुविधाएं स्थापित की हैं। यहां कंजव्रेशन, रीस्टोरेशन और प्रीजव्रेशन के क्षेत्र में ट्रे¨नग और वर्कशॉप आयोजित की जाती हैं। निजी कलेक्टर्स और इंस्टीटय़ूशंस को यह संस्था रीस्टोरेशन और कंजव्रेशन सुविधाएं भी उपलब्ध कराती है।

संभावनाएं

देश के म्यूजियम में आर्ट रीस्टोर्स और कंजर्वर्स की मांग बढ़ी है। नेशनल म्यूजियम सेंटर और इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज आर्ट रीस्टोरेशन में शामिल है। लखनऊ, दिल्ली और कोलकाता स्थित नेशनल म्यूजियम न केवल अपने बल्कि अन्य राज्यों के म्यूजियम की कलाकृतियों की देखभाल करते हैं। निजी कलाकृतियों का रीस्टोरेशन या कंजव्रेशन तभी लिया जाता है, जब उक्त कलाकृति नेशनल हेरिटेज या महत्व की हो। नई दिल्ली स्थित इनटैक निजी लोगों के अलावा राज्यों के म्यूजियम को भी अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं। इनटैक के केंद्र अभी अन्य कुछ राज्यों में भी खुले हैं। पहले जहां आर्ट लैबोरेट्री केवल नई दिल्ली, कोलकाता और बड़ौदा में थी, वहीं अब अन्य राज्यों में भी है। होटल, स्कूल, कॉलेजों, लाइब्रेरी, बैंक, पुरानी कंपनियां, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा में भी प्रशिक्षित लोगों की मांग बढ़ी है ताकि वहां की कलाकृतियों की ठीक से साज-संभाल हो सके। कई लाइब्रेरी तो अपने लिए अलग से रीस्टोरर और कंजव्रेटर रखती है ताकि वहां की पाण्डुलिपियां और अन्य कलाकृतियां ठीक से रहें।

कमाई

इस काम में आने वाली लागत की वजह से यह क्षेत्र काफी महंगा है। किसी भी पेंटिंग का रीस्टोरेशन और कंजव्रेशन में लाखों रुपये का खर्च आता है। रीस्टोरर और कंजव्रेटर की फीस काम और समय पर निर्भर करती है। एक औसत रीस्टोरर प्रति साल दो से तीन लाख रुपये तो कमा ही सकता है। वहीं अनुभवी और महारती व्यक्ति प्रति माह 50,000 रुपये कमा लेता है। इस क्षेत्र में कमाई व्यक्ति की अपनी दक्षता और गुणवत्ता पर निर्भर है।
(स्पर्धा,राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,9.8.11)

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