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10 अगस्त 2011

जांची गई कॉपी को देखने की आजादी मिली

उत्तर पुस्तिकाओं के सही मूल्यांकन न होने के संदेहों से जूझते छात्रों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि आरटीआई एक्ट के तहत छात्रों को अपनी जांची गई उत्तर पुस्तिकाएं देखने का पूर्ण अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि पुस्तिकाएं सूचना के अधिकार कानून के तहत ‘सूचना’ की परिभाषा में पूर्णतया फिट हैं जिन्हें सार्वजनिक करने में कोई दिक्कत नहीं है।

सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद अब देश भर में स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों तथा नौकरियों के लिए परीक्षा देने वाले छात्र एक आरटीआई अर्जी लगाकर उत्तर पुस्तिकाओं का निरीक्षण कर सकेंगे। जस्टिस आर.वी. रविंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सीबीएसई की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी और कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें उत्तर पुस्तिकाओं को देखने की अनुमति न देने के आदेश को अनुचित बताया गया था।

हाईकोर्ट का कहना था कि परीक्षा आयोजित करवाने वाले निकाय ‘विश्वास की क्षमता’ के तहत उत्तर पुस्तिकाओं का संरक्षक होने का दावा कर उन्हें सार्वजनिक करने से इनकार नहीं कर सकते। उत्तर पुस्तिकाएं एक सूचना है जिसे सार्वजनिक करना चाहिए इसमें कोई गोपनीयता नहीं होनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि परीक्षा कानून के तहत स्थापित सार्वजनिक निकाय करवाते हैं और उन परीक्षाओं के आधार पर सार्वजनिक नौकरियां दी जाती हैं। इसलिए यह कार्य सूचना की परिभाषा के तहत आएगा। कोर्ट ने कहा कि पुस्तिकाएं सार्वजनिक करने से लाभ ही होगा क्योंकि इससे उन मूल्यांकनकर्ताओं को दुरस्त किया जा सकेगा जो परीक्षा निकायों के नियंत्रण में नहीं होते। एक बार उनकी कमी पकड़े जाने पर निकाय उनकी सेवाएं लेने से मना कर सकता है। जाहिर है इससे परीक्षा प्रणाली में सुधार ही होगा। इसलिए यह कहना कि मूल्यांकन का खुलासा करने से पूरा सिस्टम ही बैठ जाएगा, गलत है।

इस मामले में सीबीएसई के साथ पश्चिम बंगाल सेकेंडरी बोर्ड, उच्च शिक्षा बोर्ड, कोलकाता विश्वविद्यालय, चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट तथा पश्चिम बंगाल केंद्रीय स्कूल सर्विस आयोग ने भी हाईकोर्ट के 5 फरवरी 09 के आदेश को चुनौती दी थी। बाद में इनके साथ असम तथा बिहार के लोक सेवा आयोग भी जुड़ गए थे। उनका भी यही कहना था कि वे उत्तर पुस्तिकाओं के संरक्षक हैं जो उनके पास विश्वास के आधार पर सुरक्षित रहती हैं। अदालत ने इन सबकी याचिकाएं खारिज कर दीं।

अहम फैसला
-सीबीएसई, कोलकाता विश्वविद्यालय, बिहार तथा असम लोक सेवा आयोग की याचिकाएं रद्द

-कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीएसई ने सर्वोच्च न्यायालय में की थी अपील(हिंदुस्तान,दिल्ली,10.8.11)

दैनिक जागरण की रिपोर्टः
छात्र सूचना के अधिकार कानून (आरटीआइ) के तहत अपनी उत्तर पुस्तिकाएं देख सकते हैं। मंगलवार को सुप्रीमकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि जांची जा चुकी उत्तर पुस्तिकाएं आरटीआइ कानून में दी गई सूचना की परिभाषा के तहत आती हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सभी तरह की परीक्षाओं में शामिल होने वाले विद्यार्थियों को आरटीआइ के तहत अपनी जांची जा चुकी उत्तर पुस्तिकाएं देखने का अधिकार होगा। यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति आरवी रवीन्द्रन व एके पटनायक की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के 5 फरवरी 2009 के फैसले को सही ठहराते हुए सुनाया है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा था कि छात्र आरटीआइ के तहत अपनी उत्तर पुस्तिकाएं देख सकते हैं। हाईकोर्ट ने तो यहां तक कहा था कि जब मतदाताओं को उम्मीदवार का बायोडाटा जानने का अधिकार है तो छात्रों को तो अपनी उत्तर पुस्तिकाएं देखने का उससे ज्यादा अधिकार है। हाईकोर्ट के इस फैसले को सीबीएसई, वेस्ट बंगाल बोर्ड आफ सेकेन्ड्री एजूकेशन, इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड एकाउंटेंट आफ इंडिया, कलकत्ता विश्वविद्यालय, वेस्ट बेंगाल काउंसिल आफ हायर सेकेन्ड्री एजूकेशन, चेयरमैन वेस्ट बंगाल सेंट्रल स्कूल सर्विस कमीशन, असम सर्विस पब्लिक सर्विस कमीशन, व बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

नवभारत टाइम्स की रिपोर्टः
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरटीआई के तहत स्टूडेंट को उत्तर पुस्तिका देखने का अधिकार है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले में दिए अपने फैसले में कहा था कि स्टूडेंट को आरटीआई के तहत उत्तर पुस्तिका देखने का अधिकार है। इस फैसले को कुछ स्टेट कमीशन, सीबीएसई और कोलकाता यूनिवर्सिटी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी परीक्षा में शामिल हुए स्टूडेंट को अपनी उत्तर पुस्तिका देखने का पूरा अधिकार है। अदालत ने कहा कि स्टूडेंट ने चाहे जो एग्जाम दिया हो, अगर वह आरटीआई के तहत अपनी उत्तर पुस्तिका देखना चाहता है तो वह देख सकता है। 

कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में सीबीएसई, कोलकाता यूनिवर्सिटी, बिहार पब्लिक सर्विस कमिशन, असम पब्लिक सर्विस कमिशन और इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया की ओर से याचिका दायर की गई थी।

दैनिक भास्कर की रिपोर्टः
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि कोई भी परीक्षार्थी सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत उत्तरपुस्तिका देख सकता है। अदालत ने कहा कि आरटीआई के तहत मूल्यांकन के बाद उत्तरपुस्तिका ‘सूचना’ की परिभाषा के अंदर आती है। 

जस्टिस आरवी रवींद्रन और एके पटनायक की बेंच ने मंगलवार को सीबीएसई,वेस्ट बंगाल बोर्ड आफ सेंकेंडरी एजुकेशन, वेस्ट बंगाल सेंट्रल स्कूल सर्विसेज कमीशन, वेस्ट बंगाल काउंसिल फॉर हायर एजुकेशन, कलकत्ता विवि और इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की वह याचिका खारिज कर दी जिसमें उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट के 5 फरवरी, 2009 के एक आदेश को चुनौती दी थी।

हाईकोर्ट ने कुछ छात्रों को अपने आदेश में उत्तरपुस्तिकाएं देखने की अनुमति दी थी। अंतत: शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश से सहमति जताते हुए यह आदेश दिया। अदालत ने कहा कि परीक्षा लेने वाली संस्थाएं छात्र को उत्तरपुस्तिका देखने से वंचित नहीं सकतीं। असम पब्लिक सर्विस कमीशन और बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन ने भी उत्तरपुस्तिका दिखाने का विरोध किया था।

आपकी राय
निश्चित तौर पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है। इससे न केवल छात्रों को उत्तरपुस्तिका देखकर अपनी क्षमता के बार में पता चलेगा बल्कि अपनी पिछली गलतियों से सबक सीखते हुए आगे और अच्छा करने का मार्ग प्रशस्त होगा। पर इसके साथ ही यह प्रश्न उठता है कि अबतक ऐसा क्यों नहीं हो पाया था जबकि इस मामले में गोपनीयता का ऐसा कोई बड़ा सवाल नहीं है?

राष्ट्रीय सहारा की रिपोर्टः
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत परीक्षार्थी को अपनी उत्तर पुस्तिका के निरीक्षण का अधिकार है। जस्टिस आरवी रवीन्द्रन और एके पटनायक की बेंच ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, पश्चिम बंगाल उच्चतर शिक्षा परिषद, पश्चिम बंगाल केन्द्रीय स्कूल सेवा आयोग, कलकत्ता विविद्यालय, चार्टर्ड एकांउटेंट इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया की अपील खारिज कर दी। कलकत्ता हाईकोर्ट ने 5 फरवरी 2009 को दिए फैसले में उत्तर पुस्तिका के मुआयने की मांग को आरटीआई के तहत दी गई सूचना की परिभाषा के दायरे में कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाएं किसी विास के तहत जांची गई परीक्षा पुस्तिका को अपने पास नहीं रखतीं। असम और बिहार लोक सेवा आयोग ने भी परीक्षक द्वारा जांची गई उत्तर पुस्तिका को परीक्षार्थी को दिखाने के फैसले का विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षण संस्थाओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि जांची गई पुस्तिका को छात्रों को दिखाने से समूची परीक्षा पण्राली ध्वस्त हो जाएगी। बेंच ने कहा कि परीक्षक को जवाबदेह बनाने के लिए यह जरूरी है कि उसके द्वारा प्रदत्त अंकों का समुचित मुआयना हो। परीक्षा पण्राली को कारगर बनाने के लिए उत्तर पुस्तिका का निरीक्षण सही कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने यह तर्क भी अस्वीकार कर दिया कि उत्तर पुस्तिका दिखाना जनहित में नहीं है। आरटीआई के प्रवर्तकों को उत्तर पुस्तिका को लेकर दायर याचिकाओं पर लगातार तीसरी सफलता मिली है।

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