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17 अगस्त 2011

उत्तराखंडःउर्दू शिक्षकों की भर्ती में घपले का खुलासा


शिक्षा विभाग में उर्दू शिक्षकों की भर्ती में घपले का खुलासा हुआ है। राज्य सूचना आयोग में सामने आए इस मामले में एक ओर विकलांग कोटे के शासनादेश को ताक पर रखते हुए भर्तियां हुई तो दूसरी ओर निदेशालय की इजाजत के बगैर ही उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करते हुए कुछ अभ्यर्थियों को लाभ देने के लिए उनके नंबर बढ़ा दिए गए और उनका चयन कर दिया गया। रुड़की निवासी मोहम्मद फुरकान की सूचनाधिकार की अर्जी से। फुरकान ने हरिद्वार के अपर शिक्षा अधिकारी से उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति के लिए ली गई लिखित परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं की सत्यापित प्रति की मांग की थी। सूचनाएं न मिलने पर मामला सूचना आयोग पहुंच गया। राज्य सूचना आयुक्त प्रभात डबराल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए विद्यालयी शिक्षा निदेशक को जांच करने और रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए। पता चला कि सार्वजनिक परीक्षा के लिए पुनर्मूल्यांकन का कोई प्रावधान ही नहीं है। इतना ही नहीं हाइकोर्ट के आदेश के मुताबिक उत्तर पुस्तिकाओं के पुनमरूल्यांकन की व्यवस्था स्वीकार नहीं की गई है इसके बावजूद हरिद्वार के तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी बिना निदेशालय की इजाजत के ही पुनर्मूल्यांकन करा दिया। आयोग ने अंकों की सूची तलब की तो पता चला कि पुनमरूल्यांकन के बाद कुछ अभ्यर्थियों के अंक बढ़ा दिए गए। इन सबके अंक पुनमरूल्यांकन से पहले मोहम्मद फुरकान से कम थे। इस तरह अंक बढ़ाकर उन्हें नियुक्ति दे दी गई। फुरकान बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त भी हैं और उन्होंने भी जब पुनमरूल्यांकन के लिए अर्जी दी तो उनकी अर्जी रद्द कर दी गई। रोचक बात यह है इस मामले में मो. फुरकान ने दावा किया कि उनके पास वे सारे सबूत है जिससे यह सिद्ध होता है कि पुनमरूल्यांकन निदेशक के आदेश से ही किया गया। दिलचस्प बात यह है कि इन भर्तियों में 2005 में तत्कालीन प्रमुख सचिव नृप सिंह नपलच्याल द्वारा जारी तीन प्रतिशत विकलांग कोटे के शासनादेश को भी ताक पर रखकर उन पर सामान्य वर्ग की भर्तियां कर ली गई। जबकि शासनादेश में कहा गया था कि किसी पर विकलांग अभ्यर्थी न मिलने पर उसे रिक्त रखते हुए भविष्य में भरा जाए लेकिन भर्ती की विज्ञप्ति में ही विकलांगों का कोटा हीं नहीं रखा गया। हरिद्वार में उर्दू के सहायक अध्यापकों के कुल स्वीकृत 106 पदों में से तीन विकलांगों के लिए आरक्षित थे लेकिन उन पर शासनादेश के विरुद्ध नियुक्तियां कर दी गई। राज्य सूचना आयुक्त ने जिला शिक्षा अधिकारी से इस बात का जवाब तलब किया है कि इन तीन पदों पर किस आधार पर नियुक्ति की गई और 2008 में निदेशालय के अनुमोदन के बगैर पुनमरूल्यांकन कैसे कर दिया गया और अब उसे क्यों वैध मान जा रहा है(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,17.8.11)।

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