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16 अगस्त 2011

इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग मे करिअर

इंजीनियरिंग की जटिल लेकिन प्रगतिशील शाखा में से एक इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग भी है, जिसका अध्ययन इंजीनियरिंग की पृथक शाखा या इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग के साथ किया जाता है। इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग में मुख्यत: डिजाइन, कन्फिग्रेशन और स्वचालित सिस्टम पर केन्द्रित अध्ययन किया जाता है। जो प्रोफेशनल्स इन क्रियाकलापों में संलग्न होते हैं उन्हें इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर कहते हैं। इस तरह के इंजीनियर्स किसी इंडस्ट्री के आटोमेटेड प्रोसेस जैसे केमिकल या मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स में काम करते हैं। इनका उद्देश्य यहां के सिस्टम की प्रोडक्टिविटी, सेफ्टी, रिलायबिलिटी और स्टेबिलिटी को इम्प्रूव करना होता है। इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर्स किसी भी इंडस्ट्री के अन्तर्गत आने वाले इंस्ट्रूमेंट्स और पूरे इंस्ट्रूमेंटेशन सिस्टम की डिजाइनिंग, कंस्ट्रक्शन और मेंटीनेंस में सहायता करता है। किसी भी प्रोडक्ट के बेहतर उत्पादन के लिए किन-किन इंस्ट्रूमेंट्स की आवश्यकता होगी, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर ही इसे तय करता है।

इंजीनियरिंग

सिस्टम, मशीनरी और प्रोसेस को मॉनिटर और कंट्रोल करने वाले इक्विपमेंट्स की आवश्यकतानुसार डिजाइनिंग, डेवलपिंग, इंस्टॉलिंग, मैनेजिंग और इक्विपमेंट्स को मेंटे न करने की जिम्मेदारी इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर की होती है। इनके अलावा, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर्स का लक्ष्य और जिम्मेदारियां कॉमन हैं जैसे : कंट्रोल सिस्टम की डेवलपिंग और डिजाइनिंग, मौजूदा सिस्टम्स को मेंटेन और मोडिफाई करना, मैने जिंग ऑपरेशंस, पच्रेजर्स और दूसरे इंटरनल स्टाफ के साथ मिलकर काम करना, क्लाइंट्स, सप्लायर, कॉन्ट्रेक्टर्स औ र संबंधित अधिकारियों से संपर्क बनाए रखना, समस्या का समाधान करना, एडवाइस और कंसल्टेंसी सपोर्ट देना, नये इक्विपमें ट् स खरीदना, नये बिजनेस प्रपोजल्स बनाना आदि।

क्वालीफिकेशन


जो कैंडीडे ट्स इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग में करियर बनाना चाहते हैं उन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रू मेंटेशन इं जीनियरिंग या साधारण इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग की शाखा से अंडरग्रेजुएट स्तर का बीई/बीटेक होना आवश्यक है। कैंडीडेट को प्लस टू की परीक्षा फिजिक्स, कैमिस्ट्री और मैथमेटिक्स जैसे विषयों के साथ के अच्छे परसेंटेज से उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। हालांकि इसमें सलेक्शन इंट्रेंस एग्जाम जो कि नेशनल और स्टेट लेवल पर (जैसे आईआईटीजीईई, एआईईईई, बीआईटीएसएटी) पर आधारित होती है, द्वारा होता है। इंट्रेंस एग्जाम पास होने के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स इंस्ट्रूमेंटेशन/इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग में चार साल की अवधि का बीई/बीटेक कोर्स कर सकते हैं। दसवीं के बाद डिप्लोमा प्रोग्राम में दाखिला लिया जा सकता है। ऐसे कैंडीडेट्स को जूनियर इंजीनियर का पद मिलता है। जो कैंडीडेट्स बीई/बीटेक के बाद भी आगे पढ़ना चाहते हैं, वे देश के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी या दूसरे इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक कर सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से जो रिसर्च एरिया में दिलचस्पी रखते हैं वे पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद रिसर्च वर्क को आगे बढ़ाने के लिए पीएचडी कर सकते हैं।


स्किल

मै थमैटिक्स, फिजिक्स और कैमिस्ट्री पर बेहतर पकड़, लॉजिकल रीजनिंग और टीम्स के साथ काम करने की हार्ड वर्क एबिलिटी। प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल, किसी चीज को तुरंत समझने की कला, वर्क प्रेशर में भी शांत रहना, टेक्निकल ड्राइंग में निपुण, कम्प्यूटर स्किल्स और कम्युनिकेशन की बेहतर काबिलियत भी जरूरी है।

जॉब प्रॉस्पेक्टस

इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर पब्लिक या प्राइवेट सेक्टर्स कंपनीज की आर एंड डी यूनिट में जॉब पा सकते हैं। इसके अलावा इनकी मांग हेवी इंडस्ट्रीज जैसे थर्मल पावर स्टेशन, स्टील प्लांट्स, रिफाइनरीज, सीमेंट और फर्टिलाइजर प्लांट्स में भी रहती है। ये किसी भी संस्था में मल्टीडिस्प्लेनरी रोल अदा करते हैं। इसके अलावा, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर करियर के दूसरे ऑप्शन्स चाहे तो इंडस्ट्री के भीतर या बाहर भी तलाश सकते हैं। इसके लिए कुछ क्षेत्र हैं जैसे पच्रेजिंग, सेल्स, मार्केटिंग, फाइनेंस, एचआर, आईटी या जनरल मैनेजमेंट। इस तरह के इंजीनियर कंसल्टेंसी बेस्ड काम भी करते हैं। जिन इंजीनियर्स के अंदर अपने अनुभवों का बेहतर इस्तेमाल की काबिलियत होती है, वे इंडस्ट्री में सफलता पाते हुए यूनिवर्सिटी के एकेडमिक रिसर्च या फिर इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर्स के लिए लेक्चरर/ट्रेनर के रूप में टय़ूटोरिंग/कोचिंग में काम कर सकते हैं। मास्टर्स डिग्री वाले सीनियर लेवल पोजीशन तक पहुंचते हैं, जहां उन्हें उच्चस्तरीय जिम्मेदारी के साथ ही मैनेजिंग एक्टिविटी के साथ- साथ किसी नये डेवलपमेंट की जिम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है।

स्पेशलाइजेशन

हालांकि इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग खुद में विशेषज्ञता वाला सब्जेक्ट है फिर जो कैंडिडेट्स इससे आगे भी बढ़ना चाहते हैं वे निम्नलिखित क्षेत्रों में पीएचडी कर सकते हैं- डिजिटल सिग्नल प्रोसेसिंग, मॉनीटर कंट्रोल, स्पीच प्रोसेसिंग, सेंसर नेटवर्किग, इंटेलिजेंट कंट्रोल।

सैलरी

इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर्स की फ्रेशर्स के रूप में शुरुआती सैलरी दस से बीस हजार रुपये प्रतिमाह हो सकती है, हालांकि इसी पद के लिए विदेशों में पे-पैकेज काफी ज्यादा है। शैक्षिक योग्यता के साथ ही अनुभव भी पे-पैकेज को बढ़ाने में महत्वपूर्ण होता है। प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों को पब्लिक सेक्टर की तुलना में ज्यादा सैलरी मिलती है। अनुभव के साथ ही 25,000 से 80,000 रुपये तक की कमाई प्रतिमाह हो सकती है।


संस्थान
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (चेन्नई, नयी दिल्ली, गुवाहाटी, कानपुर, खड़गपुर, मुंबई, बेंगलुरू और रुड़की) इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉम्रेशन टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट, अहमदाबाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई इलाहाबाद एग्रीकल्चरल डिमीड यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची इंस्टीट्यूट ऑफ जूट टेक्नोलॉजी, कोलकाता जेएसएस एकेडमिक ऑफ टेक्निकल एजुकेशन, नोएडा आईईसी कॉलेज ऑफ इंजी. एंड टेक्नो., ग्रेटर नोएडा
(सपना,राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,16.8.11)

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