गुजरात दंगों एवं मुठभेड़ के मामलों ने राज्य सरकार तथा भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के बीच गहरी दरार पैदा कर दी है, जिसके कारण पुलिस तो सकते में है ही साथ ही सरकार खुद को कई मोर्चो पर असहज महसूस कर रही है। फरवरी 2002 में हुए दंगे, सोहराबुद्दीन मुठभेड़ या फिर इशरत जहां मुठभेड़ मामला को लेकर अब तक आधा दर्जन आइपीएस अधिकारी सरकार के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं। सबसे ताजा मामला गुजरात कैडर के 1992 बैच के आइपीएस अधिकारी राहुल शर्मा का है, जो कि फिलहाल राजकोट में डीआइजी के पद पर तैनात हैं। गुजरात दंगों के दौरान भावनगर में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे लेकिन एक मदरसे पर हमले पर उतारु दंगाइयों के एक समूह को रोककर शर्मा ने करीब 300 मुस्लिम बच्चों की जान बचाई थी। शर्मा ने दंगों की जांच कर रहे नानावटी आयोग और विशेष जांच दल को ऐसे सबूत मुहैया करा दिए, जिससे राज्य सरकार को परेशानी होने लगी। नतीजतन मोदी सरकार ने उनके ऊपर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इससे पहले दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की ओर से पुलिस अधिकारियों को एक समुदाय विशेष को गुस्से का इजहार करने देने की छूट का निर्देश देने की बात कहते हुए भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र पेश किया था। भट्ट नानावटी आयोग के समक्ष भी अपने बयान दर्ज करा चुके हैं लेकिन फिलहाल न्यायालय की ओर से शपथ पत्र पर संज्ञान नहीं लिया गया है। भट्ट के इसी व्यवहार को सरकारी सेवा नियमों को भंग करने तथा अनुशासनहीनता मानते हुए सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया है। पुलिस महानिदेशक चित्तरंजन सिंह ने भट्ट को आपराधिक प्रवृत्ति वाला अधिकारी बताते हुए उनके खिलाफ पहुंची शिकायतों को पुन: खोल दिया है, जिसमें 131 लोगों के खिलाफ टाडा का फर्जी मामला बनाना भी शामिल है। गुजरात दंगों के दौरान समूह विशेष से भेदभाव का आरोप लगाने वाले 1971 बैच के आइपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार ने पदोन्नति रोके जाने को केंद्रीय प्रशासकीय ट्रिब्यूनल में भी चुनौती दी थी। अदालत के आदेश से सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें पुलिस महानिदेशक का पद दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के मुख्यमंत्री काल में 1976 बैच के आइपीएस अफसर कुलदीप शर्मा काफी दमदार अधिकारी हुआ करते थे। मिनी पाकिस्तान के रूप में पहचाने जाने वाले गुजरात के कच्छ-भुज जिले में नब्बे के दशक में हथियार व मादक पदार्थो की तस्करी के खिलाफ कुलदीप शर्मा ने जबरदस्त अभियान चलाकर इन सब प्रवृत्तियों पर रोक लगा दी थी। गुजरात सीआइडी क्राइम के आइजी के पद पर रहते शर्मा ने सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड की अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपकर राज्य सरकार को मुश्किल में डाल दिया था। इसके बाद उन्हें भेड़ ऊन विभाग में प्रबंध निदेशक पद पर तैनात कर दिया गया लेकिन शर्मा कंपनी कानून की आड़ लेकर ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट नई दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसके बाद सोहराबुद्दीन मामले की जांच करने आए डीआइजी रजनीश रॉय ने आइपीएस अधिकारी डीजी वणजारा, राजकुमार पांडियन, राजस्थान के आइपीएस अधिकारी दिनेश एमएन आदि को बिना उच्च अधिकारियों को सूचित किए बिना गिरफ्तार कर लिया था। सोहराबुद्दीन मामले में राज्य के गृह राज्यमंत्री अमित शाह, पूर्व रेंज डीआइजी डीजी वणजारा, आइपीएस अधिकारी पांडियन, दिनेश एम समेत एक दर्जन पुलिस अधिकारी आरोपी हैं। शाह जहां अक्टूबर 2010 से गुजरात से बाहर हैं, वहीं शेष अधिकारी जेल में बंद हैं। वर्ष 1986 बैच के आइपीएस अधिकारी सतीश वर्मा इशरत जहां मुठभेड़ मामले को लेकर चर्चा में हैं। मामले की जांच कर रही एसआइटी के सदस्य हैं तथा उन्होंने मुठभेड़ की जांच करते हुए पुलिस के ही कई आला अधिकारियों को भी परेशानी में डाल दिया था। सरकार ने उनके खिलाफ वर्ष 1990 में पोरबंदर का गोसाबारा हथियार लेंडिंग का मामला खोल दिया हालांकि हाईकोर्ट ने सरकार को ताकीद किया है कि वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाएं, जिससे इशरत की जांच प्रभावित हो। दंगे एवं मुठभेड़ जैसी घटनाओं के बावजूद कई आइपीएस अधिकारी ऐसे भी हैं जो सरकार के साथ खड़े रहे, इनमें सबसे पहला नाम दंगों के दौरान अहमदाबाद में पुलिस आयुक्त रहे पीपी पांडे का आता है। सरकार के वफादार एडीजीपी ओपी माथुर सेवानिवृति के बावजूद रक्षा यूनिवर्सिटी के कुलपति का काम देख रहे हैं। दंगों के दौरान डीजीपी का पदभार संभाल रहे के. चक्रवर्ती सेवानिवृत्त होने के बाद भी सरकार के साथ खड़े हैं(शत्रुघ्न शर्मा,दैनिक जागरण,अहमदाबाद,14.8.11)।
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