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05 अगस्त 2011

उत्तराखंडःसरकार नहीं चाहती मुफ्त शिक्षा

सरकार की लेटलतीफी कहीं अपने पड़ोस के नामी स्कूलों में पढ़ने का सपना पाले कमजोर वर्ग के हजारों बच्चों के सपनों पर ग्रहण न लगा दे। मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून की नियमावली की मंजूरी में देरी प्रदेश पर भारी पड़ रही है। नियमावली को मंजूरी न मिलने से केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने आरटीई के क्रियान्वयन के लिए जारी होने वाली धनराशि देने से मना कर दिया है। अगर कैबिनेट में यह नियमावली मंजूर हो जाती तो केंद्र प्रदेश को स्कूल यूनिफार्म और परिवहन भाड़े के लिए कम से कम 33 से 35 करोड़ रुपये की मदद मुहैया कराता। शासन के सूत्रों के मुताबिक आरटीई नियमावली अब तक वित्त समिति के पास ही अटकी हुई है। कैबिनेट से मंजूरी से पहले उसपर वहां से सहमति बननी जरूरी है। हालांकि कानून लागू हो गया है लेकिन नियमावली पिछले एक साल से कैबिनेट की मंजूरी के इंतजार में है। इसके बाद वह विधानसभा से भी पारित होगी। आरटीई की धारा 12 सी के तहत प्रदेश में गैरसहायता प्राप्त स्कूलों में भी कमजोर वगरे के बच्चों को सबसे छोटी कक्षामें 25 फीसदी सीटों पर आरक्षण दिया जाना है। कक्षा एक से आठ तक के इन बच्चों की स्कूल फीस यूनिफार्म और स्कूल आने जाने का खर्च सरकार को ही उठाना है। इसी के साथ ज्यादा दूरी वाले स्कूलों में बच्चों के आने जाने के लिए उनके साथ एक देखभाल करने वाले को भी धन दिया जाना है। सूत्रों की मानें तो इस तरह यह खर्च 35 करोड़ रुपये का आंकड़ा भी लांघ सकता है। बता दें कि इसी एक अप्रैल से प्रदेश में मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून लागू किया गया है। इसके बाद नियमावली को कैबिनेट से मंजूरी मिलनी थी लेकिन नियमावली वित्त विभाग में ही फंसी होने से नियमावली कैबिनेट में अब तक विचार के लिए आ ही नहीं सकी। देरी की वजह से आरटीई के तहत पब्लिक स्कूलों में प्रवेश में बाधा आ रही है क्योंकि ये सभी स्कूल 25 फीसद छात्रों की फीस तत्काल चाहते हैं और जब तक केंद्र से पैसा नहीं आता तब तक फीस का भुगतान संभव नहीं लगता। वैसे भी प्रदेश के ज्यादातर नामी स्कूल शिक्षा विभाग की कमजोर वर्ग के बच्चों को प्रवेश दिलाने की कोशिशों को पलीता लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। ऐसे में नियमावली के बगैर प्रदेश में मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून कैसे लागू होगा यह यक्ष प्रश्न ही बना हुआ है। बहरहाल कुछ हो न हो लेकिन इतना तो है कि नियमावली को लेकर हो रही लेटलतीफी के कारण अपने पड़ोस के नामी स्कूल में प्रवेश लेने का सपना पाले कमजोर वर्ग के बच्चों के सपनों पर ग्रहण तो लग ही गया है(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,5.8.11)।

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