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08 अगस्त 2011

लखनऊःस्कूलों के टाइमटेबल में भोजन का पीरियड ही नहीं

गैर सरकारी संगठनों की सहूलियत की परवाह कर रहे शिक्षा अधिकारियों ने माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्यों को मुश्किल में डाल दिया है। तुगलकी फरमान सुनाते हुए जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय ने 500 से अधिक छात्र संख्या वाले विद्यालयों में ही भोजन पकाने और बंटवाने का निर्देश जारी किया है। कई स्कूलों में भोजन करने योग्य छात्रों की संख्या हजारों में है। वहां इतने बड़े पैमाने पर रोज खाना बनवाने की न जगह है न संसाधन। विभाग और स्कूलों के बीच की इस रस्साकसी में बच्चे स्कूल से भूखे लौट रहे हैं। राजधानी में माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को स्कूल परिसर के भीतर ही जो भोजन पहली जुलाई से मिलना शुरू हो जाना चाहिए था, अगस्त का पहला हफ्ता बीतने के बाद भी उसका पता नहीं है। जिला विद्यालय निरीक्षक 12 अगस्त के बाद से भोजन मिलने की बात कह रहे हैं लेकिन स्कूलों में यह तय नहीं है कि यह भोजन कैसे बनेगा और बच्चों तक कैसे पहुंचाया जाएगा। बीते सत्र तक प्राथमिक व उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में बच्चों को मध्याह्न भोजन मिलता था। इस सत्र से माध्यमिक विद्यालयों में भी कक्षा छह से आठ तक के बच्चों को भोजन दिया जाना है। अधिकारियों ने इसका दायित्व भी उन्हीं 11 स्वयंसेवी संस्थाओं को सौंप दिया, जिनके पास प्राथमिक व उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में भोजन पहुंचाने का जिम्मा था। पहले यह संस्थाएं करीब 42 हजार बच्चों तक भोजन पहुंचाती थीं। माध्यमिक विद्यालय जुड़ने के बाद उन पर 37 हजार से अधिक अतिरिक्त बच्चों की जिम्मेदारी आई तो संस्थाओं ने हाथ खड़े कर दिए। इस पर अधिकारियों ने उनकी सुविधा देखते हुए 500 से अधिक छात्र संख्या वाले विद्यालयों में ही भोजन पकाने व बंटवाने का फरमान जारी कर दिया(दैनिक जागरण,लखनऊ,8.8.11)।

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