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15 नवंबर 2011

जीवाजी यूनिवर्सिटी में नकल का डॉक्टरेटःपांच थीसिस एक जैसी

जीवाजी यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के लिए पांच शोधकर्ताओं ने एक जैसी थीसिस तैयार की। इनके सुपरवाइजर बने तीन प्रोफेसरों ने भी इनकी गलती को नजरअंदाज कर दिया। मूल्यांकन के लिए जब यह थीसिस राजस्थान यूनिवर्सिटी पहुंची तो वहां के विशेषज्ञों ने इस गंभीर गलती को पकड़ लिया। उच्च शिक्षा को शर्मसार करने वाले इस वाकये के बाद तीनों प्रोफेसरों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और पांचों शोधकर्ताओं पर उचित कार्रवाई करने की सिफारिश की गई है।


जीवाजी यूनिवर्सिटी से पांच शोधकर्ताओं ने रसायन शास्त्र में विभिन्न धातुओं पर शोध किया था। यहां से पांचों शोधार्थियों की थीसिस मूल्यांकन के लिए राजस्थान यूनिवर्सिटी को भेजी गई थी। मूल्यांकन के दौरान संबंधित जांच अधिकारियों को यह पांचों थीसिस एक जैसी मिली है। ये पांचों शोधकर्ता धौलपुर और मध्यप्रदेश में सरकारी और गैरसरकारी कॉलेजों में शिक्षक की सेवा दे रहे हैं। 

जांचकर्ताओं के अनुसार ये पांचों थीसिस अलग-अलग मेटल्स (साइनो कपाउंड) से संबंधित हैं, लेकिन उनका 90 फीसदी मैटर हू-ब-हू मिलता है। हर थीसिस 275 से 300 पेज की है।

कैसे पकड़ में आई नकल 

वैसे तो सामान्य तौर पर यह गलती पकड़ में नहीं आती, लेकिन राजस्थान यूनिवर्सिटी के रसायन शास्त्र विभाग को जो पांच थीसिस जांच के लिए भेजीं, वे एक ही प्रोफेसर को आवंटित हो गई और उन्होंने गड़बड़ी पकड़ ली। अगर थीसिस अलग-अलग प्रोफेसरों के पास जातीं, तो यह गड़बड़ी पकड़ना शायद मुमकिन न होता। 

गौरतलब है कि शोधकर्ता के थीसिस की पहली कॉपी संबंधित यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में जमा होती है, दूसरी कॉपी गाइड के पास, तीसरी और चौथी कॉपी की जांच बाहर कराई जाती है। पांचवीं कॉपी शोधकर्ता के पास सुरक्षित रहती है। 

90 प्रतिशत पीएचडी नकल से, इस वजह से पिछड़ी उच्च शिक्षा 

राजस्थान यूनिवर्सिटी सहित देशभर में पीएचडी की थीसिस इंटरनेट और दूसरी थीसिस की नकल (कट पेस्ट) करके तैयार की जा रही है। ये मामला बाहर का था, इस वजह से यहां शिक्षक खुलासा करते है अन्यथा ये मामला अंदर ही अंदर निपट जाता। 

दरअसल अधिकांश लोग शिक्षकों को रुपए देकर पीएचडी कर रहे हैं। घटिया शोध की वजह से ही उच्च शिक्षा का स्तर पिछड़ गया है। यूजीसी ने प्री-पीएचडी का नियम लागू करके ठीक किया है, लेकिन शोध में गड़बड़ी रोकने का काम केवल शिक्षक ही कर सकते है। फर्जी तरीके से पीएचडी कराने वालों के खिलाफ कठोर नियम बनें, तभी बात बनेगी। 
-प्रो. अशोक झा, पूर्व विभागाध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग, एलबीएस कॉलेज 

आगे क्या

प्रो आरवी सिंह का कहना है कि इन तीनों प्रोफेसरों को पीएचडी कराने से डिबार (आजीवन प्रतिबंध) करने की कार्रवाई चल रही है। साथ ही शोधकर्ताओं को दोबारा काम शुरू करना पड़ेगा। 

शोधकर्ताओं के नाम और विषय

ज्ञानसिंह सिसौदिया - कॉपर, मरकरी, आयरन, कोबाल्ट, निकल 
आरबी रायपुरिया - कॉपर, जिंक, आयरन, कोबाल्ट, निकल 
शिवप्रसाद - कॉपर, जिंक, मरकरी, कोबाल्ट 
आनंद शर्मा - वेनेडियम 
अनूपा कुमारी दुबे - क्लोरिनियम 

दोषी सुपरवाइजर्स 

-डॉ. जितेन्द्र अंबवानी, डिपार्टमेंट ऑफ केमेस्ट्री, एसएमएस गवर्नमेंट साइंस कॉलेज ग्वालियर 
-डॉ. ओवी सिथोले, पीजी डिपार्टमेंट ऑफ केमेस्ट्री, पीजीवी कॉलेज, ग्वालियर 
-प्रो. एसएन दीक्षित, प्रोफेसर, पीजी डिपार्टमेंट ऑफ केमेस्ट्री, एसएमएस गवर्नमेंट साइंस कॉलेज, ग्वालियर

शोधकर्ताओं के नाम

-ज्ञान सिंह सिसौदिया 
-आरबी रायपुरिया 
-शिव प्रसाद 
-अनूपा कुमारी दुबे 
-आनंद शर्मा(दैनिक भास्कर,ग्वालियर-जयपुर,15.11.11)

2 टिप्‍पणियां:

  1. दो बातें हुईं यहाँ…1) जिनके पास नेट नहीं है, वे कम से कम नकल यानी नकल से कुछ तो बचेंगे ही…2) सेटिंग नहीं थी अच्छी वरना एक जगह ठीक और दूसरी जगह पकड़ कैसे ली गई?…ओह

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