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19 दिसंबर 2011

दूसरे के लिए अवसर है आपकी नाकामी

आप देश के किसी भी शहर की किसी भी गली से गुजरने वाले सब्जी ठेले को देखें तो आपको उनमें फूलगोभी जरूर नजर आएगी। इसे देखकर लगता है कि इसकी पैदावार देश के हर हिस्से में होती है। हालांकि आप और हम इसके लिए सर्दियों के सीजन में भी जितनी कीमत चुकाते हैं, वह इसके उत्पादक किसान को मिलने वाले दाम से 20 गुना तक ज्यादा होती है।

यदि किसान को अपने खेतों में गोभी के लिए एक रुपए प्रति किलो मिलता है तो इसी सब्जी की स्थानीय बाजार में औसत कीमत तकरीबन 20 रुपए होगी। ऐसे में कोई भी आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि एक उत्पाद पर ही कुल कीमत का 95 फीसदी हिस्सा बिचौलियों के हाथों में चला जाता है, जिनका इस उत्पादक चक्र में कोई योगदान नहीं होता।

फिलहाल केंद्र व विभिन्न राज्य सरकारों के बीच मल्टीब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश (एफडीआई) को लेकर जो तकरार चल रही है वह और कुछ नहीं वरन अनुपलब्धता पर उपलब्धता की जंग है। संबंधित राज्य सरकारें अपने यहां कोल्ड स्टोरेज की समुचित श्रंखला तैयार करने में नाकाम रही हैं।


इस वजह से काफी मात्रा में हमारी हरी सब्जियां खराब होकर कूड़े में फिक जाती हैं और कुछ सब्जियों की तो खपत से पहले ही पोषकता नष्ट हो जाती है। कोल्ड स्टोरेज चालू रखने के लिए हमें बिजली की जरूरत होती है, जिसकी कई राज्यों में किल्लत है। कृषि सेक्टर में न के बराबर सुधार हो रहे हैं। मार्केटिंग के नियम-कायदे पुराने हो चुके हैं। खराब मानसून के बावजूद हमारे यहां खाद्यान्न, दलहन, तिलहन व सब्जियों की पैदावार साल-दर-साल अच्छी रही है। फिर भी इनके लिए ग्राहक द्वारा चुकाई गई कीमतें किसानों को मिलने वाली कीमतों के मुकाबले काफी अधिक होती हैं। 

दरअसल कमरे में एक हाथी है। उस हाथी का नाम है एपीएमसी यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी, जो खेतिहर उत्पादों की मार्केटिंग को नियंत्रित करती है। हालांकि कुछ राज्यों ने एपीएमसी एक्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है, लेकिन कई राज्य आज भी रिटेलरों को सीधे किसानों से खरीदने की इजाजत नहीं देते।

कैरेफोर, वॉलमार्ट और टेस्कोस जैसी दुनिया की नामी कंपनियों के आने से इन चीजों में तेजी आएगी। वे समय के साथ खराब होने वाली सामग्रियों की मियाद दर्ज करेंगी। अमेरिका में सनस्किट नामक एक संतरा आता है वे इस पर उसकी पैकिंग व एक्सपायरी डेट अंकित करते हैं। एक्सपायरी डेट निकलने के बाद इस संतरे को फेंक दिया जाता है, हमारे यहां की तरह सस्ते बाजार में नहीं बेचा जाता। 

ब्रांडेड सब्जियों को उसी तरह बेचा जाएगा, जैसे ब्रांडेट बासमती चावल बिकते हैं। हालांकि यदि हम अपने खेतिहर उत्पादों के लिहाज से कुछ निर्धारित सुधार करें तो एफडीआई के बगैर भी कोल्ड स्टोरेज स्थापित कर सकते हैं, एफडीआई के बगैर भी जल्द खराब होने वाली खाद्य चीजों को जल्द से जल्द उपभोक्ताओं तक पहुंचना सुनिश्चित कर सकते हैं और एफडीआई के बगैर भी हम अपने देशवासियों को शुद्ध, पोषक भोजन दे सकते हैं और वह भी सस्ती दरों पर। याद करें कि जब इंडियन एयरलाइंस अंतरराष्ट्रीय सेवाएं देने में नाकाम रही तो उड्डयन क्षेत्र में निजी उद्यमियों को आने की मंजूरी दी गई।

फंडा यह है कि...नए नियम या नए कारोबारी आपके कारोबार पर निगाह गड़ाएंगे, यदि आप ग्राहक की उम्मीद के मुताबिक उन्हें माल या सेवाएं नहीं देते। याद रखें, आपकी नाकामी किसी अगले शख्स के लिए कारोबारी अवसर है(एन. रघुरामन,दैनिक भास्कर,3.12.11)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक एवं सटीक पोस्ट आभार ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है ....http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  2. इसीलिए किसान अमीर हैं! यह धकेलने वाली भावना ही है जो आदमी को यहाँ तक लायी है। एक भारी नीचता और अमानवीय कार्य है यह। शीर्षक ही कुछ अखर गया। ऐसे लेखों को स्थान मिलना चाहिए यहाँ?

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