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12 दिसंबर 2011

उत्तराखंडःचरित्र पंजिकाओं में ग्रेडिंग का खेल

प्रदेश में कोई शासनादेश न होने के बावजूद अधिकारियों व कर्मचारियों की गोपनीय प्रविष्टि में ग्रेडिंग का खेल जारी है। प्रमोशन के लिए उत्कृष्ट कर्मचारियों को बिना किसी मानदंड के टॉप को 10 अंक, अति उत्तम को 8 अंक और उत्तम व अच्छे को पांच अंक दिए जा रहे हैं। छह से कम अंक पाने वालों को प्रमोशन की पात्रता से बाहर रखा जा रहा है। गोपनीय प्रविष्टि में अंक देने का आधार भी तय नहीं। सूचनाधिकार की अर्जी से यह खुलासा हुआ है। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखकर गोपनीय प्रविष्टि से पहले संबंधित अफसरों को सुनवाई का मौका भी नहीं दिया जा रहा। इससे प्रदेश के लाखों कर्मचारी प्रभावित हो रहे हैं। सूचनाधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक 10 दिसंबर 2003 और 30 सितंबर 2010 को कार्मिक विभाग ने जो शासनादेश जारी किए थे उनमें ग्रेडिंग निर्धारित करने का कोई प्रावधान नहीं है।यही नहीं देवदत्त बनाम भारत सरकार मामले में 12 मई 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी प्रकार की गोपनीय प्रविष्टि से पहले संबंधित कर्मचारी और अधिकारी को सुनवाई का अवसर न देना न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत का उल्लंघन है। बता दें कि इसके पहले एसके गोयल बनाम भारत सरकार प्रकरण में भू सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि केवल प्रतिकूल प्रविष्टि करने पर संबंधित पत्र को सूचना दी जानी चाहिए लेकिन मेनका गांधी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशो की पीठ ने इस फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि भेदभाव पूर्ण नीति संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। इस तरह हर कर्मचारी व अधिकारी को यह जानने का पूरा हक है कि उसकी जो ग्रेडिंग की गई है वह किस आधार पर की गई है। बता दें कि जिला उद्योग केंद्र कोटद्वार के महाप्रबंधक यूके जोशी ने उद्योग निदेशालय के लोक सूचनाधिकारी से गोपनीय प्रविष्टियों के संबंध में जारी शासनादेशों, कार्यालयादेशों और प्रदेश शासन व विभागों में की जा रही अधिकारियों और कर्मचारियों की ग्रेडिंग के संबंध में जानकारी मांगी थी। जानकारियां न मिलने पर उन्होंने राज्य सूचना आयोग में शिकायत की थी(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,12.12.11)।

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