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18 दिसंबर 2011

एस्ट्रोनॉमी में करिअर

एस्ट्रोनॉमी दरअसल विज्ञान की एक ऐसी विधा है जो आकाशीय पिंडों और ब्रम्हांड के अध्ययन से जुड़ी है। इंसान में सनातन काल से अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने की जिज्ञासा रही है।

इस दिशा में लगातार तेजी से काम चल रहा है और साथ ही यहां रोजगार के विकल्प भी बढ़ रहे हैं। यदि आप भी अंतरिक्ष को खंगालने, इसमें झांकने और इसके बारे में नई-नई बातें जानने की इच्छा रखते हैं तो इस क्षेत्र में कॅरियर बनाना आपके लिए बेहद मुफीद साबित हो सकता है।

विस्तृत क्षेत्र

चाहे हमारे चंद्रयान-1 मिशन की सफलता हो या मंगल ग्रह के बारे में नए रहस्यों को जानना, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में चल रहे नए-नए प्रयोग छात्रों को लगातार अपने साथ जोड़े रखते हैं। यह विज्ञान का ऐसा क्षेत्र है जो आकाशीय पिंडों व ब्रम्हांड से जुड़ा है। इसमें सूर्य, ग्रह, सितारों, धूमकेतु, उल्काओं, आकाशगंगाओं और सैटेलाइट्स जैसे आकाशीय निकायों के इतिहास, गतिकी और संभावित विकास संबंधी गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है।

विज्ञान की यह शाखा और भी कई उपशाखाओं मसलन एस्ट्रोफिजिक्स, एस्ट्रोमेटियोरोलॉजी, सोलर फिजिक्स, एस्ट्रोबायोलॉजी, एस्ट्रोजियोलॉजी, एस्ट्रोमेट्री, कॉस्मोलॉजी इत्यादि में वर्गीकृत है। एस्ट्रोनॉमी ऐसे छात्रों के लिए एक जटिल मगर दिलचस्प विषय है, जो ब्रम्हांड के रहस्यों को सुलझाने में रुचि रखते हैं। अपने देश की बात करें तो हमारे यहां अंतरिक्ष विज्ञानियों की काफी कमी है। फिलहाल हमारे यहां इस क्षेत्र में तकरीबन 18,000 दक्ष पेशेवरों की दरकार है।

कार्य व योग्यता

खगोलविदों को अमूमन दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है- प्रेक्षक और थियोरिस्ट। प्रेक्षक रात्रिकाल में दूरबीनों के जरिए अंतरिक्ष का अवलोकन करते हैं। इसके बाद वे ज्यादातर समय आंकड़े जुटाने और इस क्षेत्र में हुए अन्य शोध व अध्ययन से तुलना करने में लगे रहते हैं।

एक सफल खगोलविद बनने के लिए आपमें आकाशीय पिंडों के प्रति जिज्ञासा और भौतिकी व गणित का ज्ञान होना जरूरी है। परिष्कृत खगोलीय उपकरणों को संभालकर इस्तेमाल करने का अनुभव और आंकड़ों को जुटाने और उनका सटीक विश्लेषण करने की क्षमता इस क्षेत्र के प्रोफेशनल्स के लिए बड़े काम की साबित हो सकती है।


व्यक्तिगत योग्यता

एस्ट्रोनॉमर बनने के इच्छुक लोगों में नई-नई चीजों को जानने की जिज्ञासा और अंतरिक्ष के रहस्यों को सुलझाने के प्रति रुझान होना चाहिए। उनमें प्रबल एकाग्रता और धैर्य भी होना चाहिए क्योंकि एस्ट्रोनॉमर का काम देर रात तक निर्बाध शोध संबंधी कार्य में लगे रहने की मांग करता है। इसके अलावा उनकी गणितीय व तार्किक विश्लेषण क्षमता तथा कंप्यूटर योग्यता भी उच्चस्तरीय होना चाहिए। 

रोजगार के अवसर

उदयपुर सोलर ऑब्जरवेटरी के साइंटिस्ट बृजेश कुमार कहते हैं कि कोई एस्ट्रोनॉमर देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित शोध प्रयोगशालाओं, विश्वविद्यालयों/शिक्षण संस्थानों, अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थानों में रोजगार पा सकता है। फिजिक्स या मैथमेटिक्स या इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स जिन्होंने एस्ट्रोनॉमी में स्पेशलाइजेशन किया हो, वे शोध संस्थानों व अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़े सरकारी संस्थानों में वैज्ञानिक के तौर पर अपनी सेवाएं दे सकते हैं। 

वे उन यूनिवर्सिटी में फेकल्टी के तौर पर भी काम कर सकते हैं, जहां एस्ट्रोनॉमी की शाखा से जुड़ा कोई पाठ्यक्रम उपलब्ध हो। बृजेश कहते हैं कि हमारे देश को चंद्रयान जैसे अंतरिक्ष रिसर्च कार्यक्रमों के लिए भविष्य में और भी कई खगोलविद चाहिए और यदि हम युवाओं को इस दिशा में आने के लिए प्रेरित नहीं करते तो भविष्य में देश के लिए यह बड़ी बाधा साबित हो सकती है। हालांकि पिछले 4-5 वर्र्षो में छात्रों का एस्ट्रोनॉमी के प्रति ज्यादा रुझान देखा जा रहा है और यदि मानदेय की राशि और फैलोशिप की संख्या रिसर्च स्कॉलर्स के लिए बढ़ा दी जाए तो भविष्य में और भी छात्र एस्ट्रोनॉमी की ओर आकर्षित हो सकते हैं। 

कहां हैं अवसर

भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़े बड़े-बड़े संस्थान जैसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी), स्पेस फिजिकल लेबोरेटरीज इत्यादि एस्टोनॉमर्स को नियुक्त करते हैं। इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों को देश-विदेश में विभिन्न जगहों पर जाने के भी खूब मौके मिलते हैं क्योंकि एस्ट्रोनॉमर्स के लिए विभिन्न देशों में जब-तब अंतरराष्ट्रीय सेमिनार व सम्मेलन आयोजित होते रहते हैं। 

शिक्षा का दायरा

राजस्थान के उदयपुर सोलर ऑब्जरबेटरी में सोलर फिजिक्स के एक रिसर्च स्कॉलर रामाजोर मौर्य बताते हैं कि देश के कुछ विश्वविद्यालयों में एस्ट्रोनॉमी और एस्ट्रोफिजिक्स एमएससी पाठ्यक्रम के तहत स्पेशलाइजेशन विषय के रूप में पढ़ाए जाते हैं। उदयपुर में मोहनलाल सुखादिया यूनिवर्सिटी अपने यहां एमएससी के छात्रों के लिए यह कोर्स प्रस्तावित करती है। इसके अलावा गोरखपुर यूनिवर्सिटी में भी इससे जुड़ा कोर्स उपलब्ध है। 

बीटेक या बीई डिग्रीधारी अभ्यर्थियों का यदि एस्ट्रोनॉमी व एस्ट्रोफिजिक्स की ओर रुझान है तो वे एस्ट्रोनॉमी मे पीएचडी भी कर सकते हैं । पीएचडी करने के लिए उन्हें ज्वाइंट एंट्रेंस स्क्रीनिंग टेस्ट (जेस्ट) की बाधा पार करनी होगी। ज्यादातर विश्वविद्यालय अभ्यर्थी को उसके टेस्ट में हासिल स्कोर के आधार पर अपने यहां पीएचडी प्रोग्राम्स में दाखिला देती हैं। मौर्य कहते हैं, ‘रिसर्च स्कॉलर्स को पोस्ट डॉक्टोरल फैलोशिप्स (पीडीएफ) के अंतर्गत तकरीबन 14,000 रुपए मासिकमानदेय प्राप्त होता है। इसके अलावा इस क्षेत्र से जुड़े अभ्यर्थियों को नॉलेज शेयरिंग प्रोग्राम के तहत विदेश में जाने के भी अनेक अवसर मिलते हैं।’

पारिश्रमिक

इस क्षेत्र में एक रिसर्च स्कॉलर को रिसर्च फैलोशिप के अंतर्गत अमूमन 14,000 रुपए मासिक तक मानदेय राशि प्राप्त होती है। शासकीय निकायों व शोध संस्थान भी एस्ट्रोनॉमर्स को नियुक्त करते हैं, जिन्हें ऊंची तनख्वाह के अलावा अन्य भत्ते व सुविधाएं भी मिलती हैं। एस्ट्रोलॉजी के विशेषज्ञ किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में बतौर लेक्चरर अपनी सेवाएं देते हुए 35,000 रुपए मासिक तक कमा सकते हैं। इस क्षेत्र से जुड़े रीडरों, एसोसिएट प्रोफेसरों व प्रोफेसरों को और भी ज्यादा तनख्वाह मिलती है।

प्रमुख संस्थान

- मोहनलाल सुखादिया यूनिवर्सिटी, उदयपुर।

- आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइंसेस, नैनीताल।

- एचसीआर इंस्टीट्यूट, इलाहाबाद।

- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरु। 

- आईयूसीएए, पुणे। 

- एनसीआरए-टीआईएफआर, पुणे।

- ओस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद(दैनिक भास्कर,15.12.11)।

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