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18 दिसंबर 2011

जनजाति का दर्जा चाहते हैं हरियाणा के मेव

हरियाणा में मुस्लिम आबादी लगभग १७ लाख है जिनमें लगभग १०.८९ लाख मेव मुसलमान हैं। सरकारी नौकरियों में आलम यह है कि इकलौते मेव मो. शफीक का एचसीएस के लिए चयन हुआ है। छोटी नौकरियों में भी मेव और गैर मेव मुसलमानों की संख्या सीमित है। सरकारी नौकरियों में उपेक्षा और उद्योग-धंधों के अभाव के कारण आज भी मेव सम्मानजनक सामाजिक स्तर हासिल नहीं कर पाए हैं और मुख्य धारा से कटे हुए हैं। इसलिए यहां के मेव खुद को जनजाति में शुमार करवाने के लिए सुलग रहे हैं, तो गैर मेव मुसलमान आरक्षण बढ़ाए जाने के पक्षधर हैं।


मेव आज नारकीय जीवन जी रहे हैं। जून, १९९४ में पहली बार चौ. भजनलाल की सरकार में मेवों के घावों पर हल्का मरहम लगाते हुए उन्हें पिछड़ों की बी श्रेणी में रखा गया और इस तरह उनका २७ प्रतिशत आरक्षण में पांच प्रतिशत हिस्सा बना जबकि सिरसा, जींद, पानीपत, अंबाला, यमुनानगर और पंचकूला में छितरे हुए नाई, तेली, जुलाहे आदि मुसलमानों को ए श्रेणी में रखा गया है। पिनगवां के मेव चिंतक यूनुस अल्वी इसके लिए नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि यहां के मेवों के दम पर राजनीति करने वालों ने संसद में कभी मेवों के हितों के लिए आवाज नहीं उठाई। बिहार के जद यू नेता अली अनवर अंसारी ने जब मेवों की हालत देखी, तो उन्होंने संसद में मेवों के लिए आवाज उठाई। हरियाणा मुस्लिम खिदमत सभा के चेयरमैन प्रो. बीआर चौहान के मुताबिक मुसलमानों को अन्य समाजों की भांति आरक्षण प्राप्त नहीं है। प्रो. आबिद अली अंसारी का कहना है कि सरकार ने शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत सभी अनुसूचित, अनुसूचित जनजाति व बीपीएल परिवारों के बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए २५ प्रतिशत सीटों को रिजर्व रखने के आदेश दिए हैं, लेकिन मुसलमानों के बच्चों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इस संबंध में साकरस के सामाजिक कार्यकर्ता फजरुद्दीन बेसर के मुताबिक मेवों को पिछड़ों की बी केटेगरी में रखकर छला गया है जबकि मीणाओं की तरह उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाना चाहिए। तभी मेवातियों की दशा सुधर सकती है(राकेश चौरसिया,नई दुनिया,11.12.11)।

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