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13 दिसंबर 2011

रोचक विषय है गणित

किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उसे करने वाले की उस कार्य में पर्याप्त रुचि हो। जितने अधिक समय तक कार्य करने में रुचि बनी रहेगी, उतने ही समय तक पर्याप्त उत्साह एवं उमंग के साथ कार्य ठीक तरह होता रहेगा। ज्यों ही रुचि में कमी हुई तथा कार्य नीरस लगने लगा, गति बहुत धीमी हो जाएगी। यहां तक कि रुचि के अरुचि में परिवर्तन होने पर काम बिगडऩे की भी आशंका हो सकती है। ठीक इसी तरह से गणित की शिक्षा देते समय गणित के अध्ययन के प्रति बच्चे की रुचि का होना सबसे महत्वपूर्ण बात है। वह विषय सरल और रोचक प्रतीत होना चाहिए।

गणित को कैसे रोचक बनाया जाए, यह गणित शिक्षकों के लिए बहुत ही महत्व का विषय है। इस प्रश्न के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। पहला यह कि बच्चों को गणित के अध्ययन के प्रति कैसे आकर्षित किया जाए और दूसरा यह है कि एक बार गणित के अध्ययन के प्रति रुचि तथा उत्साह जाग्रत होने पर उसे किस प्रकार यथानुकूल बनाए जाए? कुछ बिन्दु इस संबंध में लाभकारी हो सकते हैं।

बच्चे स्वभाव से ही जिज्ञासु होते हैं तथा वे समस्याओं की गहराई में उतरना चाहते हैं। अत: उनको समस्याओं के अध्ययन के लिए अवसर देना रुचि जागृति करने का साधन बन सकता है। शिक्षक को यह गलत धारणा अपने मस्तिष्क में से बिल्कुल निकाल देनी चाहिए कि साधारणतया छात्र अपने मस्तिष्क का उपयोग करने में आराम-पसंद होते हैं। अगर कोई कार्य उनकी मानसिक शक्तियों के लिए चुनौती बनकर सामने आए तो छात्रों में उसे पूरा करने की भावना को लेकर उसके प्रति रुचि अवश्य ही जाग्रत हो जाएगी। अत: गणित के प्रति रुचि जाग्रत करने और उसे बनाए रखने में यह ध्यान रखें कि कार्य छात्रों की मानसिक शक्तियों का उपयोग करने का पूर्ण अवसर प्रदान करें। शिक्षकों को समस्यात्मक और अन्वेषणात्मक दृष्टिकोण को लेकर गणित का अध्ययन कराना चाहिए। अपने आप सभी कुछ बतलाकर उसे रटवाने के द्वारा नहीं। रुचि तभी बनी रह सकती है, जब तक उनके मस्तिष्क को कुछ कार्य मिलता रहे, वे समस्या की तह तक जाकर सत्य की खोज करते हैं।


काम करने वाला जिस कार्य को जितना अधिक उपयोगी समझेगा, उतनी ही रुचि, परिश्रम और ïउत्साह से वह काम करेगा। अगर गणित की पढाई प्रयोगात्मक अथवा व्यवहारात्मक ज्ञान की प्राप्ति को ध्यान में रखकर कराई जाए तो कोई कारण नहीं कि छात्रों को गणित की पढ़ाई सरस और रोचक प्रतीत न हो। जब भी किसी प्रकरण अथवा समस्या का अध्ययन आरंभ किया जाए तो उसके अध्ययन आरंभ किया जाए तो अनुभव छात्रों को अवश्य करा देना चाहिए। इससे उसके प्रति छात्रों में सहज आकर्षण उत्पन्न हो जाता है। अब इसके पश्चात जो भी ज्ञान दिया जाए, अगर उसे व्यावहारिक जीवन में उसके उपयोग से संबंधित करके दिया जाए तो यह रुचि बनी रह सकती है।

गणित के कलात्मक और सौंदर्यात्मक पक्ष से परिचित कराकर गणित के अध्ययन को रुचिपूर्ण बनाया जा सकता है। मन को प्रसन्न करने वाली सभी कलाओं तथा सौंदर्यात्मक दृश्यों में गणित के सिद्धांत किस तरह कार्य करते हैं, यह जानकार छात्रों में गणित के प्रति सहज आकर्षण पैदा हो सकता है। गणित एक नीरस विषय नहीं है, इसमें मनोरंजन और खेलकूद का भी स्थान हैै, विषय के प्रति इस प्रकार की भावना उत्पन्न करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। छात्रों को गणित संबंधी विभिन्न खेलों को खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा गणित संबंधी विभिन्न सहायक साधनों का प्रयोग करके गणित को रोचक बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। 

शिक्षक का गणित संबंधी विभिन्न बुझारतों, पहेलियों तथा संख्या संबंधी खेलों का ज्ञान गणित के अध्ययन के प्रति छात्रों की रुचि बनाने में बहुत सहायता कर सकता है। स्कूल में ‘गणित परिषद' की स्थापना भी इस दिशा में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। परिषद द्वारा गणित संबंधी अनेक योजनाओं पर कार्य करने तथा गणित से संबंधित अनेक भाषण, विचार-गोष्ठियों तथा कार्यशालाओं का आयोजन किया जा सकता है। इनके माध्यम से छात्रों को अपने विचार स्वतंत्र रूप से प्रकट करने तथा कार्य करने का अवसर मिलता है तथा गणित के अध्ययन के प्रति उनकी रुचि बढ़ती है।

योजना विधि तथा प्रयोगशाला विधि को गणित की पढ़ाई में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए। जो कुछ भी पढ़ाया जाए उसके बारे में बच्चों का दृष्टिïकोण पूर्ण व्यावहारिक बन सके, इसके लिए उचित सहायक साधनों का प्रयोग करके क्रियात्मक कार्य के लिए सभी अवसर बच्चों को दिए जाने चाहिए। सैद्धांतिक रूप से कोई बात बच्चों को तभी बताई जानी चाहिए जब वे उसके क्रियात्मक पक्ष से अवगत हो लें। इस तरह से छात्रों का वास्तिवक क्रियात्मक सहयोग लेकर गणित की शुष्क पढ़ाई आसानी से सरसता में परिणित हो सकती है(विक्रम कुंडू प्रबोध,दैनिक ट्रिब्यून,7.12.11)।

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