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13 दिसंबर 2011

मध्यप्रदेशःपरीक्षा के दौरान डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं छात्र

परीक्षाओं के दौरान छात्रों में तनाव की बढ़ती समस्या ने अभिभावकों को ही नहीं, शिक्षकों को भी चिंतित कर दिया है। दुखद तथ्य तो यह है कि छात्र तनाव नहीं झेल पाने के कारण आत्महत्या तक करने लगे हैं। यूनिवर्सिटी में सेमेस्टर प्रणाली लागू होने के बाद छात्रों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ गया है। काउंसलर्स कहते हैं कि परीक्षा छात्रों के लिए सबसे नाजुक घड़ी होती है, इस दौरान अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार बनाएं ताकि वे तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सकें ।

जीवाजी यूनिवर्सिटी सहित कॉलेज एवं स्कूलों में इन दिनों परीक्षाएं आयोजित की जा रही हैं। इनमें लगभग 40 हजार छात्र-छात्राएं भाग ले रहे हैं। इसके अलावा स्कूलों में लगभग 50 हजार छात्रों की छमाहीं परीक्षाएं हो रही हैं। साथ ही, कई प्रतियोगी परीक्षाएं भी समय-समय पर आयोजित की जा रही हैं। परीक्षाओं में अच्छे अंक लाने के लिए छात्र-छात्राओं पर उनके अभिभावक दबाव डाल रहे हैं। कई ऐसे छात्र होते हैं जो परीक्षाओं की तैयारी पूरी नहीं होने के कारण तनाव में आ जाते हैं। बच्चों के तनाव में आने के कारण अभिभावक भी परेशान हो जाते हैं। कुछ तो तनाव सहन नहीं कर पाने के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। आत्महत्या की हर साल 10 से 15 प्रतिशत तक घटनाएं बढ़ रही हैं।

केस एक : केआरजी कॉलेज में दो दिन पहले तीन मंजिला इमारत से कूदकर आत्महत्या करने वाली बीकॉम प्रथम सेमेस्टर की छात्रा सोफिया खान परीक्षा को लेकर तनाव में थी। उसके साथ पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि वह अच्छे अंक हासिल करना चाहती थी और इसे लेकर परेशान रहती थी।


केस दो : डबरा निवासी ऋतु चहल पटेलनगर में किराए के मकान में रहती थी। वह एनीमेशन का कोर्स कर रही थी। डिप्रेशन में आकर उसने 20 दिन पहले फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह कॅरियर को लेकर संघर्षरत थी लेकिन जल्द सफलता नहीं मिलने के कारण तनाव में रहने लगी थी। 
बच्चों की क्षमता समझें

अभिभावक अपने बच्चों की क्षमता को समझें। अच्छा मुकाम हासिल करने को लेकर छात्र डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। अभिभावक एवं शिक्षक भी उनपर पढ़ाई का जरूरत से अधिक भार डाल रहे हैं जिससे वे दबाव में आ जाते हैं। कुछ तो इस दबाव को सहन कर लेते हैं जबकि कुछ नहीं कर पाते हैं। अभिभावकों को अपने बच्चों की मानसिक क्षमता को समझना होगा।
सुषमा सिंह, काउंसलर

अनावश्यक दखल न दें
परीक्षा के दबाव एवं अन्य कारणों से छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसी घटनाओं में प्रतिवर्ष 10 से 15 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मेरे पास प्रतिदिन चार से पांच छात्र ऐसे आते हैं जो किसी न किसी कारण को लेकर डिप्रेशन में हैं। इनके डिप्रेशन में आने का कारण अभिभावकों का अनावश्यक दखल है। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों की समस्या को समझें। साथ ही, उनके कार्य में अनावश्यक दखल न दें।
-डॉ. कमलेश उदैनिया, मनोचिकित्सक, जेएएच हॉस्पिटल

नि:शुल्क काउंसिलिंग कराएं
अभिभावक अपने बच्चों की नि:शुल्क काउंसिलिंग करा सकते हैं। काउंसलर सुषमा सिंह से मोबाइल नंबर 9329656990 पर तथा डॉ. उदैनिया से फोन नंबर 0751-2233014 पर संपर्क कर सकते हैं।

क्या करें अभिभावक

: प्रतिदिन बच्चों को निर्धारित समय दें। उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें। 
: दूसरे के बच्चों से अपने बच्चों की तुलना मत करें।
: बच्चों की मानसिक क्षमता को समझें तथा पढ़ाई के लिए टोकी-टोकी नहीं करें। 
:यदि बच्चा गुमसुम रहता हो तो उसकी तुरंत काउंसिलिंग कराएं(रामरूप महाजन,दैनिक भास्कर,ग्वालियर,13.12.11)।

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