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27 मई 2012

ज्ञान की नींव हैं पाठ्य पुस्तकें

प्रारम्भ से ही शिक्षक बच्चों को यह सिखाये कि पाठ्य-पुस्तकें शिक्षा का माध्यम हैं, ज्ञानकोष नहीं। इनमें केवल इतना ज्ञान ही दिया जाता है जितना हर बालक को जानना चाहिए। इसमें दी गई पाठ्यवस्तु ज्ञान की नींव मात्र है। इसी नींव पर जानकारियों को बढ़ाना है। 

शिक्षक के लिये पाठ्य-पुस्तक शिक्षण का महत्वपूर्ण साधन है। इसकी विषय-वस्तु से शिक्षक केवल जानकारी ही नहीं देते हैं बल्कि दिये गये चित्रों, सम्भव क्रियाओं और अभ्यासों के माध्यम से छात्रों में उचित भावनाओं और कुशलताओं का विकास भी करते हैं। 

पाठ्य-पुस्तक में तथ्य, जानकारियां और सिद्धांत सामान्य रूप से ही दिए होते हैं। उपयुक्त उदाहरण, स्थानीय ज्ञान और नये रोचक तथ्य देकर शिक्षक ही उन सामान्य बातों को सजीव बना सकते हैं। शिक्षक के प्रोत्साहन से ही छात्र पाठ्य-पुस्तक से प्राप्त ज्ञान को विस्तृत करके नये तथ्य और ज्ञान ढूंढ़ निकालने की कोशिश करने लगेंगे। अच्छी से अच्छी पाठ्य-पुस्तक भी शिक्षक का स्थान नहीं ले सकती। 

पाठ्य-पुस्तकों में प्रचुर मात्रा में चित्र दिये होते हैं। ये सजावट मात्र नहीं हैं बल्कि पाठ्य-पुस्तक के अभिन्न अंग हैं। इनके माध्यम से रुचि और उत्सुकता, दोनों बढ़ती हैं। शिक्षक बच्चों को चित्र ध्यान से देखना सिखाए। इनकी आपस में तुलना से नया ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करिये और अस्पष्ट धारणाओं को स्पष्ट करने का प्रयास करिये। पाठ्य-पुस्तक में दी गई क्रियाएं और अभ्यास भी शिक्षण के आवश्यक अंग हैं। इनके द्वारा शिक्षक मूल्यांकन तो करेंगे ही, साथ ही पढ़ाते समय तथा पढ़ाने के बाद उनके प्रयोग से बच्चों के ज्ञान का व्यवस्थित रूप भी दे सकेंगे। क्रियाओं के माध्यम से पढ़ाकर आप ज्ञान को स्थायी और प्रभावपूर्ण बना सकते हैं। फिर, इन्हीं की मदद से आप नयी क्रियाओं और नये अभ्यासों को सोच सकते हैं। हर तरह से ये आपकी सहायता करेंगे(विक्रम कुंडू ‘प्रबोध’,शिक्षालोक,दैनिक ट्रिब्यून,8.5.12)।

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