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04 जनवरी 2013

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर आईटी और बीपीओ कंपनियां परेशान

दिल्ली-एनसीआर में कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा चिंता यहां की आईटी-बीपीओ कंपनियों के ऑपरेशंस पर भी असर डालने लगी है। एसोचैम के सर्वे में कहा गया है कि बीते दो हफ्ते में इन कंपनियों की प्रॉडक्टिविटी 40 फीसदी तक गिर गई है। कई कंपनियों ने बेहद जरूरी पोर्टफोलियो पर काम कर रही महिलाओं के वर्किंग आवर्स उनकी डिमांड के मुताबिक अजस्ट किए हैं, जबकि कई को ब्रांच ट्रांसफर पर भी विचार करना पड़ रहा है। बीते दिनों दिल्ली में हुए आंदोलनों में शामिल कामकाजी महिलाओं में सबसे ज्यादा इन्हीं सेक्टरों की थीं और कई महिला कर्मी अब तक छुट्टी से काम पर नहीं लौटी हैं। 

एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल डी एस रावत ने बताया, 'दिल्ली-एनसीआर की 2,000 से ज्यादा आईटी, बीपीओ, केपीओ कंपनियों में करीब 2.5 लाख महिलाएं काम करती हैं, जो कुल वर्कफोर्स का 30 से 35 फीसदी है। उनके मन में किसी भी तरह की दहशत न सिर्फ उनकी मानसिक सेहत बल्कि इंडस्ट्री की वित्तीय सेहत भी खराब कर सकती है।' उन्होंने बताया कि आईटी-बीपीओ की महिला कमिर्यों पर आधारित सर्वे में करीब 38 फीसदी ने कहा कि वे कंपनी के अंदर या बाहर के सुरक्षा हालात से खुश नहीं हैं और उन्होंने अपनी किसी न किसी चिंता से कंपनी को वाकिफ कराया है। 52 फीसदी महिला कमिर्यों ने माना कि बेहतर सैलरी पैकेज की वजह से ही वे शिफ्ट में काम करना चाहती हैं, लेकिन हाल की घटनाओं के बाद नाइट शिफ्ट में काम करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहीं। हालांकि, 62 फीसदी महिला कर्मियों ने बताया कि इस हादसे और उनकी शिकायतों के बाद कंपनियों ने सुरक्षा बंदोबस्त को लेकर पहल और इंतजाम किए हैं, जिससे वे संतुष्ट हैं। 

दिल्ली के अलावा नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद की कई फर्मों ने माना पिछले एक पखवाड़े में उनके यहां छुट्टी लेने वाली महिला कर्मियों की तादाद सबसे ज्यादा रही। एसोचैम के मुताबिक, बीपीओ फर्मों में काम करने वाली ज्यादातर महिलाएं 21 से 28 उम्र वर्ग की हैं, जिनके साथ छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न या हिंसक वारदात की आशंका सबसे ज्यादा होती है। इंडस्ट्री की बहुत सी ऑपरेशनल और कमर्शल जरूरतें इसी वर्किंग क्लास पर निर्भर करती हैं। 89 फीसदी महिला कर्मियों ने माना कि उन्होंने घर से दफ्तर की दूरी ज्यादा और असुरक्षित होने के चलते ड्यूटी आवर्स में बदलाव पर जोर दिया है और वे शाम ढलने से पहले घर पहुंच जाना चाहती हैं। 

एसोचैम की जॉइंट डायरेक्टर मंजू नेगी ने बताया, 'हमने सर्वे के बाद कई बीपीओ और आईटी फर्मों में बीते दिनों की हलचल का जायजा लिया और पता चला कि महिलाओं की सुरक्षा चिंता के कारण किसी न कसी तरह से कंपनी का कामकाज, प्रॉडक्टिविटी और प्रॉफिट घटा है। इससे दूसरे कर्मचारियों की परफॉर्मेंस भी खराब हुई है। इन कंपनियों ने कम से कम 40 फीसदी प्रॉडक्टिविटी घटने की बात मानी है।' एसोचैम ने कहा कि पिछले कुछ सालों में आईटी-बीपीओ सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं की तादाद बढ़ी है। 2008-09 में आईटी-बीपीओ की कुल वर्कफोस में 32 फीसदी महिलाएं थी, जो साल 2011-12 में 52 फीसदी हो गईं। एंट्री लेवल पर यह तादाद 4 साल में 48 फीसदी से बढ़कर 62 फीसदी पहुंच गई। दिल्ली-एनसीआर में इस सेक्टर की करीब 82 फीसदी महिलाएं नाइट शिफ्ट में काम करती हैं, जबकि बंगलुरू में यह आंकड़ा 82, मुंबई में 76 और हैदराबाद में 82 फीसदी है। 

सर्वे में यह भी कहा गया कि मल्टि-नैशनल और कुछ बड़ी कंपनियों को छोड़कर ज्यादातर कंपनियां अपने कर्मचारियों को बेहतर और सेफ ट्रांसपोर्टेशन मुहैया नहीं कराने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि, ज्यादातर कंपनियां महिलाओं को पिक ऐंड ड्रॉप की सुविधा देती हैं, लेकिन इसके लिए वे ट्रैवल कॉन्ट्रैक्ट के तहत बाहरी ट्रांसपोर्ट कंपनियों की सेवाएं लेती हैं और महिलाओं को रास्ते में किसी वारदात का डर सताता रहता है(नभाटा,दिल्ली,4.1.13)।

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