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18 मई 2010

भोपाल के प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में अब केवल 60 प्रतिशत अंक में प्रतिस्पर्धा

अगले सत्र से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं को परीक्षा का तनाव नहीं रहेगा। सेमेस्टर परीक्षा में उन्हें केवल साठ फीसदी अंकों के लिए मेहनत करना पड़ेगी। चालीस फीसदी नंबर छात्रों के हाथ में ही होंगे। पूरे सेमेस्टर में अटेंडेंस, मिड टर्म, सेमीनार और प्रोजेक्ट वर्क की दम पर ही छात्र न केवल यह नंबर हासिल कर सकते हैं। बल्कि अच्छी स्कोरिंग भी कर सकेंगे। बीई, बीफार्मा और एमसीए में छात्रों की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से आरजीपीवी द्वारा अगले सत्र से सतत मूल्यांकन व्यवस्था लागू की जा रही है। इसे नाम दिया गया है क्रेडिट बेस ग्रेडिंग सिस्टम। सोमवार को कुलपति प्रो. पीयूष त्रिवेदी की अध्यक्षता में हुई कार्य परिषद की बैठक में इस नए सिस्टम को मंजूरी भी दे दी गई। प्रमुख सचिव तकनीकी शिक्षा पुखराज मारू सहित विभिन्न आला अफसरों की मौजूदगी में आयोजित इस बैठक में अकादमिक सुधार के मद्देनजर करीब आधा दर्जन मुद्दों को मंजूरी दी गई। यह सारे बदलाव अगले सत्र से लागू हो जाएंगे। क्रेडिट बेस ग्रेडिंग सिस्टम में विद्यार्थी न केवल पूरे सेमेस्टर में क्लास अटेंड कर नंबर पा सकेंगे। बल्कि संगोष्ठी, कार्यशाला अथवा वर्कशॉप में की गई मेहनत अब बेकार नहीं जाएगी। इससे मुख्य परीक्षा का भार भी कम हो जाएगा। क्रेडिट के जरिए छात्र अधिकतम 40 फीसदी अंक प्राप्त कर सकेंगे। जबकि 60 फीसदी अंक मुख्य सैद्धांतिक परीक्षा के होंगे। इस ग्रेडिंग कम क्रेडिट सिस्टम में मुख्य परीक्षा के रिजल्ट में भी बदलाव किया जाएगा। अब मुख्य परीक्षा के नंबर नहीं दिए जाएंगे। इसकी जगह ग्रेडिंग प्रणाली लागू की जाएगी। ए, बी, सी, डी सहित कुल पांच ग्रेड रहेंगे। प्रत्येक ग्रेड में अंकों की सीमा तय रहेगी।

एआईसीटीई को दी जगह :
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद का नया रीजनल कार्यालय विवि परिसर में बनाया जाएगा। इसके लिए विवि ने दो एकड़ जमीन एआईसीटीई को देने का निर्णय लिया है। परिषद की मंजूरी मिल जाने के बाद अब जल्द ही
एआईसीटीई का नया सर्व सुविधायुक्त भवन बनना शुरू हो जाएगा।

यूआईटी को स्वायत्तता :
बैठक में आरजीपीवी के इंजीनियरिंग कालेज यूआईटी को अकादमिक स्वायत्तता देने के प्रस्ताव पर भी मोहर लगा दी गई। अब कालेज अपनी परीक्षा खुद करा सकेगा तो पाठ्यक्रम आदि के संबंध में भी निर्णय लेने का अधिकार यूआईटी को होगा। वहीं यूआईटी में अगले सत्र से एमएससी मेथमेटिक्स शुरू करने के लिए भी मंजूरी दी गई।

1 टिप्पणी:

  1. बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |

    बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
    अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर

    सनसनाते पेड़
    झुरझुराती टहनियां
    सरसराते पत्ते
    घने, कुंआरे जंगल,
    पेड़, वृक्ष, पत्तियां
    टहनियां सब जड़ हैं,
    सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |

    बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से
    पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,
    पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,
    तड़तड़ाहट से बंदूकों की
    चिड़ियों की चहचहाट
    कौओं की कांव कांव,
    मुर्गों की बांग,
    शेर की पदचाप,
    बंदरों की उछलकूद
    हिरणों की कुलांचे,
    कोयल की कूह-कूह
    मौन-मौन और सब मौन है
    निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,
    और अनचाहे सन्नाटे से !

    आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,
    महुए से पकती, मस्त जिंदगी
    लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,
    पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,
    जंगल का भोलापन
    मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,
    कहां है सब

    केवल बारूद की गंध,
    पेड़ पत्ती टहनियाँ
    सब बारूद के,
    बारूद से, बारूद के लिए
    भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,
    भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।

    फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    बस एक बेहद खामोश धमाका,
    पेड़ों पर फलो की तरह
    लटके मानव मांस के लोथड़े
    पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ
    टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल
    सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर
    मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर
    वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी
    ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह
    निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा
    दर्द से लिपटी मौत,
    ना दोस्त ना दुश्मन
    बस देश-सेवा की लगन।

    विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई,
    अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,
    बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर
    अपने कोयल होने पर,
    अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम से

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