सरकार ने उच्च शिक्षा में सुधार के लिए राष्ट्रीय उच्च शिक्षा एवं शोध आयोग के गठन के संबंध में राज्य सरकारों व शिक्षा जगत को राजी कराने की तैयारी तो शुरू कर दी है, लेकिन खुद केंद्र के मंत्रालयों से अभी दिक्कतें दूर नहीं हुई हैं। खासतौर से, स्वास्थ्य व कानून की शिक्षा से जुड़े निकायों को उसके दायरे में लाने का सवाल अब भी जस का तस है। इस बीच मानव संसाधन विकास मंत्रालय बीच का रास्ता तलाशने में जुट गया है। सूत्रों के मुताबिक, अभी यह तय नहीं है कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाले चिकित्सा शिक्षा के नियामक मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआई) व डेंटल काउंसिल आफ इंडिया (डीसीआई) प्रस्तावित राष्ट्रीय उच्च शिक्षा एवं शोध आयोग (एनसीएचईआर) के दायरे में आएंगे या नहीं। इसी तरह, बार काउंसिल आफ इंडिया के बारे में भी स्थिति साफ नहीं है। अलबत्ता, मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारियों की दूसरे संबंधित मंत्रालयों से बातचीत जारी है। सूत्रों की मानें तो संबंधित मंत्रालयों के ऐतराजों को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब बीच का रास्ता तलाशने में लगा है। उसकी कोशिश है कि एमसीआई और डीसीआई के कार्यकलापों में चिकित्सा शिक्षा से जुड़े हिस्से को एनसीएचईआर के दायरे में रख दिया जाए। जबकि मेडिकल प्रैक्टिस जैसे कोर मामले को उन निकायों के अधीन ही रहने दिया जाए। हालाकि अभी इस पर भी सहमति नहीं बन पाई है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री कार्यालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एमसीआई और डीसीआई को भी एनसीएचईआर के दायरे में लाने की संभावनाएं तलाशने को कह चुका है। इसी तरह बार काउंसिल आफ इंडिया को भी एनसीएचईआर के दायरे में लाने पर अभी अंतिम फैसला नहीं हो सका है। इस मामले में भी कानून की पढ़ाई का हिस्सा और वकालत पेशे को अलग-अलग रूप में देखे जाने पर विचार हो रहा है। इस बीच, मानव संसाधन विकास मंत्रालय एनसीएचईआर के गठन की प्रक्रिया को तेज करने के लिए उसके प्रस्तावित मसौदे पर राज्यों के साथ ही शिक्षा जगत की रजामंदी लेने की कोशिश में जुट गया है। उसने 18 मई को राज्यों के शिक्षा मंत्रियों और 19 मई को राष्ट्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद (केब) की बैठक बुला ली है। बताते हैं कि एनसीएचईआर के लिए गठित टास्क फोर्स की रिपोर्ट के बाद प्रस्तावित नए नियामक का मसौदा तैयार है। केब ने भी उस पर अपनी मुहर लगा दी तो फिर आगे की प्रक्रिया शुरु कर दी जाएगी। गौरतलब है कि चार राज्यों ने अपने अधिकार क्षेत्र में केंद्र का दखल मानते हुए पहले ही इसका विरोध शुरू कर दिया है।
(दैनिक जागरण,दिल्ली,13.5.2010 में राजकेश्वर सिंह की रिपोर्ट)
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