एक पुरानी कहावत है कि 'एक फोटो हजार शब्दों के बराबर होता है। एक फोटो मनुष्य की संवेदनाओं को झिंझोड सकता है और दिलों को पिघलाने की ताकत भी रखता है। 'चाइल्ड राइटस् एंड यू' अथवा क्राई नामक संस्था की कुछ महीनों पहले शुरू की गई मुहिम 'क्लिक राइटस्' इसी तरह का आयोजन है-फोटो के माध्यम से समाज से यह पूछता हुआ कि 'बच्चे आखिर स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ पा रहे हैं?' इस मुहिम का मकसद समाज में फोटो द्वारा संदेश पहुंचाना है कि कैसे सड़कों पर सामान बेचकर पेट पाल रहे इन बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है।
'क्लिक राइटस्' वह वॉलंटियर ग्रुप है जो बच्चों के स्कूल छोड़ने के पीछे कारणों को समझने के प्रयास में फोटोग्राफी के माध्यम को प्रोत्साहन देता है। ये फोटोग्राफर बच्चों और उनके परिवारों के साथ वक्त बिताकर, मुंबई की सड़कों, प्रवासी परिवारों, फ्लाईओवरों, कंस्ट्रक् शन साइट्स पर रह रहे बच्चों की दशा को दर्शाना चाहते है। 'क्लिक राइटस्' की टीम में विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे प्रोफेशनल शामिल हैं जो फोटोग्राफी और बाल शिक्षण के प्रति रुचि रखते हैं।
सोमैया पार्थसारर्थी ट्रेन में सामान बेच रहे बच्चों के बीच बहुत हिट हैं। वे पिछले कुछ महीनों से ट्रेनों में बच्चों की फोटो खींचकर उनका मनोरंजन तो कर रहे हैं ही, शिक्षा के इस अभियान को भी आगे ले जा रहे हैं।
एक अन्य फोटोग्राफर वालंटियर शर्मिष्ठा विश्वास के मुताबिक, हम फोटो के माध्यम से लोगों को उन मासूम चेहरों से वाकिफ कराना चाहते हैं जो शिक्षा पाने के अपने हक से वंचित हैं। हम चाहते हैं कि समाज और सरकार के लोग ऐसे कदम उठाएं कि वे इन बच्चों के भविष्य की ओर सही कदम उठाएं।
इस मुहिम में फोटोग्राफरों की एक टीम शहर में जगह-जगह जाकर इन बच्चों की फोटो खींचकर लोगों की संवेदनाओं का जगाना चाहती हैं। सभी फोटोग्राफरों को एक विषय चुनना था, सोमैया ने ट्रेन के बच्चों को चुना, शमिर्ष्ठा ने बिल्डिंग की साइटों पर रह रहे बच्चों को, तो अल्पेश गांधी ने सड़कों पर घूमते बच्चों को।
क्राई मेंबर और इस मुहिम के संचालक हवोवी वाडिया ने बताया कि 'हम बाल शिक्षा के प्रति कुछ करने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं। 2010 की शुरूआत में हम एक मुहिम लांच करने के बारे में सोच रहे थे जो शिक्षा की मूल जरूरत से वंचित हैं। फोटोग्राफी एक ऐसा माध्यम है जो यह दर्शाने के लिए बहुत ही कारगर हो सकता है। हम फोटो एक्जिबिशन के जरिये अपनी बात सामने रखेंगे।' यह आयोजन आने वाले दिनों में जगह जगह किया जायेगा(नवभारत टाइम्स,मुंबई,1 जून,2010)।
'क्लिक राइटस्' वह वॉलंटियर ग्रुप है जो बच्चों के स्कूल छोड़ने के पीछे कारणों को समझने के प्रयास में फोटोग्राफी के माध्यम को प्रोत्साहन देता है। ये फोटोग्राफर बच्चों और उनके परिवारों के साथ वक्त बिताकर, मुंबई की सड़कों, प्रवासी परिवारों, फ्लाईओवरों, कंस्ट्रक् शन साइट्स पर रह रहे बच्चों की दशा को दर्शाना चाहते है। 'क्लिक राइटस्' की टीम में विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे प्रोफेशनल शामिल हैं जो फोटोग्राफी और बाल शिक्षण के प्रति रुचि रखते हैं।
सोमैया पार्थसारर्थी ट्रेन में सामान बेच रहे बच्चों के बीच बहुत हिट हैं। वे पिछले कुछ महीनों से ट्रेनों में बच्चों की फोटो खींचकर उनका मनोरंजन तो कर रहे हैं ही, शिक्षा के इस अभियान को भी आगे ले जा रहे हैं।
एक अन्य फोटोग्राफर वालंटियर शर्मिष्ठा विश्वास के मुताबिक, हम फोटो के माध्यम से लोगों को उन मासूम चेहरों से वाकिफ कराना चाहते हैं जो शिक्षा पाने के अपने हक से वंचित हैं। हम चाहते हैं कि समाज और सरकार के लोग ऐसे कदम उठाएं कि वे इन बच्चों के भविष्य की ओर सही कदम उठाएं।
इस मुहिम में फोटोग्राफरों की एक टीम शहर में जगह-जगह जाकर इन बच्चों की फोटो खींचकर लोगों की संवेदनाओं का जगाना चाहती हैं। सभी फोटोग्राफरों को एक विषय चुनना था, सोमैया ने ट्रेन के बच्चों को चुना, शमिर्ष्ठा ने बिल्डिंग की साइटों पर रह रहे बच्चों को, तो अल्पेश गांधी ने सड़कों पर घूमते बच्चों को।
क्राई मेंबर और इस मुहिम के संचालक हवोवी वाडिया ने बताया कि 'हम बाल शिक्षा के प्रति कुछ करने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं। 2010 की शुरूआत में हम एक मुहिम लांच करने के बारे में सोच रहे थे जो शिक्षा की मूल जरूरत से वंचित हैं। फोटोग्राफी एक ऐसा माध्यम है जो यह दर्शाने के लिए बहुत ही कारगर हो सकता है। हम फोटो एक्जिबिशन के जरिये अपनी बात सामने रखेंगे।' यह आयोजन आने वाले दिनों में जगह जगह किया जायेगा(नवभारत टाइम्स,मुंबई,1 जून,2010)।
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