उत्तर प्रदेश के उच्चतर शिक्षा संस्थानों के सिंगल टीचर्स ने सरकार से विशेष भत्ता मांगने का फैसला किया है। यह भत्ता वे जनसंख्या नियंत्रण में अपने योगदान की एवज में मांग रहे हैं। इन टीचर्स का कहना है कि जब सरकार परिवार नियोजन के तहत 'हम दो हमारे' की नीति अपनाने वाले उनके सहकर्मियों को भत्ता दे सकती है तो इसी तर्ज पर उन्हें भत्ता क्यों नहीं दे सकती, उनके तो बच्चे ही नहीं हैं।
गौरतलब है कि परिवार नियोजन भत्ता 1981 में शुरू किया गया। इसका मकसद था सरकारी कर्मचारियों को 'दो बच्चों' की नीति पर चलने के लिए प्रोत्साहित करना। मौजूदा समय में यह भत्ता 500-900 रुपए मासिक बैठता है। राज्य के 12 विश्वविद्यालयों, 345 सरकारी सहायता प्राप्त और 125 सरकारी कॉलेजों के कुल 17,000 टीचर्स में करीब 8 फीसदी सिंगल हैं। इनमें अविवाहित, तलाकशुदा और विधवा-विधुर सभी शामिल हैं।
इन निस्संतान सिंगल्स ने 'करीब तीन दशकों' के भेदभाव और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया है। अवध गर्ल्स पीजी कॉलेज की प्रतिमा भाटिया कहती हैं,'हमें पहले सरकार के सामने इस विशेष भत्ते के लिए आवेदन करके देखना चाहिए कि सरकार क्या कहती है। वह देने से इनकार कर दे तो हमारे पास उसके खिलाफ कोर्ट जाने का विकल्प रहेगा।'
लखनऊ यूनिवर्सिटी असोसिएटेड कॉलेज टीचर्स असोसिएशन (एलयूएसीटीए)मौलिंदु मिश्रा के मुताबिक एलयूएसीटीए ने इस मसले पर अन्य यूनिवर्सिटियों और कॉलेजों के टीचर्स को जोड़कर सरकार पर दबाव बढ़ाने का फैसला किया है। हालांकि उच्चतर शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह एक नीतिगत मसला है जिस पर सरकार ही फैसला कर सकती है। कारण यह है कि अगर भत्ते की पात्रता में किसी तरह का बदलाव हुआ तो वह दूसरे विभागों पर भी लागू होगा(नवभारत टाइम्स,लखनऊ,31.5.2010)।
गौरतलब है कि परिवार नियोजन भत्ता 1981 में शुरू किया गया। इसका मकसद था सरकारी कर्मचारियों को 'दो बच्चों' की नीति पर चलने के लिए प्रोत्साहित करना। मौजूदा समय में यह भत्ता 500-900 रुपए मासिक बैठता है। राज्य के 12 विश्वविद्यालयों, 345 सरकारी सहायता प्राप्त और 125 सरकारी कॉलेजों के कुल 17,000 टीचर्स में करीब 8 फीसदी सिंगल हैं। इनमें अविवाहित, तलाकशुदा और विधवा-विधुर सभी शामिल हैं।
इन निस्संतान सिंगल्स ने 'करीब तीन दशकों' के भेदभाव और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया है। अवध गर्ल्स पीजी कॉलेज की प्रतिमा भाटिया कहती हैं,'हमें पहले सरकार के सामने इस विशेष भत्ते के लिए आवेदन करके देखना चाहिए कि सरकार क्या कहती है। वह देने से इनकार कर दे तो हमारे पास उसके खिलाफ कोर्ट जाने का विकल्प रहेगा।'
लखनऊ यूनिवर्सिटी असोसिएटेड कॉलेज टीचर्स असोसिएशन (एलयूएसीटीए)मौलिंदु मिश्रा के मुताबिक एलयूएसीटीए ने इस मसले पर अन्य यूनिवर्सिटियों और कॉलेजों के टीचर्स को जोड़कर सरकार पर दबाव बढ़ाने का फैसला किया है। हालांकि उच्चतर शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह एक नीतिगत मसला है जिस पर सरकार ही फैसला कर सकती है। कारण यह है कि अगर भत्ते की पात्रता में किसी तरह का बदलाव हुआ तो वह दूसरे विभागों पर भी लागू होगा(नवभारत टाइम्स,लखनऊ,31.5.2010)।
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