मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

13 जून 2010

शिक्षा में भारत-जापान सहयोग की जरूरत

भारत की उच्च एवं प्रोफेशनल शिक्षा पद्धति में बदलाव और विश्वविद्यालयों में शोध की संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत एक अर्से से महसूस की जा रही है। इस दिशा में प्रयास शुरू भी हो चुके हैं। लेकिन इस क्षेत्र में गठजोड़ बनाने के लिए नए साझीदार तलाश करने की जरूरत है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत के बढ़ते एकीकरण के साथ ही भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विकास के मद्देनजर इस तरह का विविधिकरण और भी जरूरी हो जाता है।

उच्च शिक्षा एवं शोध संबंधी गतिविधियों में अमेरिका, कुछ चुनिंदा कॉमनवेल्थ व यूरोपीय देश भारत के पंरपरागत साझीदार हैं। लेकिन अब जापान, दक्षिण कोरिया एवं ब्राजील जैसे अन्य देशों के साथ भी इस तरह की साझेदारी की जरूरत है। नए प्रधानमंत्री नआतो केन के पदभार ग्रहण करने और विश्वविद्यालयों के अंतरराष्ट्रीय संपर्क को बढ़ाने के लिए जापान की कोशिश के चलते भारत के साथ इस तरह की साझेदारी को मजबूत करने का अनुकूल माहौल बन गया है।

यहां दो तथ्य महत्वपूर्ण हैं। पहला, शोध और विकास व खोज गतिविधियों का तेजी से वैश्वीकरण हो रहा है। अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि अमेरिकी निर्माता कंपनियां अपना 20 फीसदी शोध एवं विकास अन्य देशों में संपन्न करा रही हैं। ऑटो, टेक्सटाइल और विद्युत उपकरणों के मामले में आउटसोर्सिग की हिस्सेदारी 30 फीसदी से भी ज्यादा है। जापान, दक्षिण कोरिया व जर्मनी के मामले में भी यही हो रहा है। दूसरा, हाल में वैश्विक आर्थिक संकट ने अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन में विकास व रोजगार की संभावनाओं को बेहद क्षीण कर दिया है। भारत की कार्यशील शिक्षित आबादी में तेजी से हो रही बढ़ोतरी के मद्देनजर नए रोजगारों का सृजन सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। उधर, जापान व दक्षिण कोरिया जैसे गैर-परंपरागत रोजगार स्रोतों की आबादी बूढ़ी होती जा रही है। इस स्थिति में यह देश भारत के लिए एक सुनहरा मौका प्रदान कर सकते हैं।

इस संदर्भ में भारत को जापान के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के साथ ही वहां की बड़ी कंपनियों की शोध प्रयोगशालों के साथ गठजोड़ के प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग, लाइफ साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स, रलवे, कचरा प्रबंधन और नवीनीकरण योग्य उर्जा के क्षेत्र में जापान को विश्व में एक नेता के तौर पर पहचान मिली है। इसकी यह प्रतिस्पर्धी स्थिति शानदार विश्वविद्यालय व्यवस्था पर आधारित है, जो परंपरागत रूप से उद्योगों के साथ गठजोड़ बनाए हुए है। भारत की कमजोरी यह है कि यहां विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों एवं उद्योग के बीच उस तरह की साझेदारी कभी विकसित नहीं हो पाई, जैसी जापान में है। शिक्षकों व शोधकर्ताओं के साथ ही स्नातक व स्नातकोत्तर शिक्षा के बीच एक गहरी खाई है।

जापान के साथ एक मजबूत गठजोड़ इस कमी को दूर कर सकता है। विदेशी छात्रों को आकर्षित करने और शिक्षकों व शोधकर्ताओं की अदला-बदली को सुगम बनाने के लिए जापान की सरकार ने कई छात्रवृत्ति योजनाएं लागू की हैं। बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था के उभरने के साथ ही अंग्रेजी के अलावा जापानी और अन्य विदेशी भाषाओं को सीखने पर ध्यान देने की भी जरूरत है। जापानी भाषा सीखने में तकरीबन एक साल का समय लगता है। रोजगार, व्यवसाय, विज्ञान एवं तकनीक के उपलब्ध अवसरों को देखते हुए यह समय ज्यादा नहीं है।

अब भारतीय पेशेवर, विशेष रूप से आईटी व इंजीनियरिंग क्षेत्र के लोग जापान की कंपनियों में अवसरों की तलाश करने लगे हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी लोग जापान के बार में विचार करने लगे हैं। जापानी भाषा एवं व्यावसायिक संस्कृति की जानकारी रखने वाले लोगों के लिए वहां की कंपनियों में अच्छी संभावनाएं बन सकती हैं। इस प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए भारतीय विश्विद्यालयों को जापानी विश्विद्यालयों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए। अपने पाठयक्रम और प्रबंधन तकनीक को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने की योजना पर काम कर रहे मुंबई के जेवियर्स स्कूल जैसे संस्थानों को इससे काफी लाभ मिल सकता है। इसे सुगम बनाने के लिए यह संस्थान जापान में अपने केंद्र भी खोल सकते हैं।

निवेशकों का सम्मेलन आयोजित कराने वाले गुजरात जैसे राज्यों को इन सम्मेलनों में जापानी विश्वविद्यालयों और शोध संस्थाओं को भी आमंत्रित करना चाहिए। उच्च शिक्षा एवं शोध में गहन गठजोड़ से भारत व जापान के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाने और आर्थिक सहयोग बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। भारत को, दोनों देशों की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को प्रमाणित करते हुए, जापान के साथ एक समग्र समझौता के बार में भी विचार करना चाहिए। साथ ही जापान की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति में भारतीय कामगारों की भर्ती सुनिश्चित करने वाले एक समझौते पर भी विचार किया जाना चाहिए(Editorial,Business Bhaskar,10 june,2010)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।