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11 जून 2010

हायर एजुकेशन में हार न हो:दिलबर गोठी

स्कूल एजुकेशन के बाद हायर एजुकेशन की दहलीज पर कदम रखते ही स्टूडेंट्स के मन में एक नई उमंग और आंखों में नए सपने होते हैं। उन्हें अपने सपने साकार करने के लिए, नई उड़ान भरने के लिए एक खुला आसमान भी मिलता है। वे पल भर में सब कुछ पा लेना चाहते हें। इसीलिए कॉलेजों में एडमिशन की आपाधापी में भी वे पीछे नहीं हटते और एक जगह एडमिशन नहीं मिलने पर दूसरी जगह, तीसरी जगह कोशिश जारी रखते हैं। हर विकल्प को खंगालना चाहते हैं। यही वजह है कि डीयू नहीं तो आईपी, आईपी नहीं तो जामिया, बीए (इको) नहीं तो बीकॉम (ऑनर्स), बीए (अंग्रेजी) नहीं तो बीए (जर्नलिज्म), स्टीफंस नहीं तो हिंदू, हिंदू नहीं तो केएमसी...यानी कहीं तो मुकाम मिलेगा ही। इस भागमभाग लेकिन आशावादी माहौल में भी कई बार रास्ते बंद होते नजर आते हैं। वे रास्ते सिस्टम के कारण बंद होते नजर आते हैं। ऐसा सिस्टम जो वर्षों से लागू है लेकिन उसे बदलने का किसी में न तो साहस है और न ही इच्छा।

अभी हाल ही में मेडिकल एंट्रेंस में घपले की सुगबुगाहट हुई। हुआ यूं कि अखबार में विज्ञापन छपा कि किसी भी नामी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन चाहिए तो हमसे मिलो। एक पैरंट्स ने विज्ञापन में दिए नंबर पर संपर्क किया तो मुलाकात का समय तय हो गया। मुलाकात के लिए पहुंचे तो पांवों तले जमीन खिसक गई क्योंकि सामने थे साउथ दिल्ली के एक नामी कोचिंग सेंटर के मालिक जिन्होंने एम्स समेत कई मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए रेट लिस्ट आगे रख दी। पैरंट्स ने हिम्मत दिखाकर अगली मुलाकात में स्टिंग ऑपरेशन कर डाला। खबर चली लेकिन कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। पुलिस कहती है कि जब पैसे का लेनदेन ही नहीं हुआ तो मामला कैसा। एम्स समेत जिन संस्थानों का जिक्र आया उन्होंने भी पल्ला झाड़ लिया। अगर कोई व्यक्ति ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों के नाम पर पैसा वसूल कर रहा है या उनके नाम पर बट्टा लगा रहा है तो क्या इन संस्थानों को ऐतराज नहीं होना चाहिए लेकिन इन्हें नहीं है। और तो और, उन साहब ने भी नहीं कहा कि स्टिंग ऑपरेशन गलत है या फर्जी है।

अब करें सिस्टम की बात। सिस्टम में इतने छेद हैं कि स्टूडेंट्स शंकाओं से भर उठते हैं। एम्स के टेस्ट में सिर्फ एक लिस्ट जारी होती है जिसमें पास होने वालों का नाम होता है, उनके मार्क्स तक नहीं बताए जाते। जो फेल हो गए, उन्हें तो पता ही नहीं चलता कि हम कहां फेल हैं क्योंकि उन्हें क्वेश्चन पेपर तक नहीं मिलते। डीयू के मेडिकल एंट्रेंस में ओएमआर शीट पेंसिल से भरवाई जाती है, बाकी सब जगह बालपेन से। आईपी भी क्वेश्चन पेपर नहीं देता और न ही मार्क्स बताता है। सीबीएसई आंसर जारी नहीं करता। अगर स्टूडेंट्स को क्वेश्चन पेपर दे दिए जाएं और ओएमआर शीट में कार्बन लगा हो व वेबसाइट पर 'आंसर की' जारी कर दी जाएं तो सभी स्टूडेंट्स को पता चल जाएगा कि वे कितने पानी में हैं लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। मेडिकल तो एक उदाहरण है। अन्य सभी सब्जेक्ट्स में भी यही स्थिति बनी हुई है।

एजुकेशन में आजकल बहुत प्रयोग हो रहे हैं लेकिन हायर एजुकेशन में आशावादी माहौल के बावजूद सिस्टम की बाधाएं बनी हुई हैं। बोर्ड एग्जाम का भय दूर करने की दिशा में जुटे कपिल सिब्बल का ध्यान इधर भी हो जाए तो शायद नई उमंगों के साथ नए रास्तों पर निकले स्टूडेंट्स का हौसला बना रहेगा। उन्हें अपने सपनों को साकार करने में कोई शंका नहीं रहेगी(NBT,8.6.2010)।

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