कॉर्पोरेट वर्ल्ड हो या आईटी सेक्टर, इसमें प्रवेश पाने वाले फ्रेशर्स काफी प्रतिभाशाली होते हैं। इनके पास न केवल क्रिएटिव आइडियाज का भंडार होता है, बल्कि ये टेक्नो-सेवी भी खूब होते हैं। लेकिन कुछ फ्रेशर्स के साथ एक समस्या आम होती है कि ये ऑफिस के माहौल के अनुकूल खुद को अच्छी तरह ढाल नहीं पाते हैं। इसका असर उनके कामकाज पर भी दिखाई देता है। इसकी मुख्य वजह उनमें कम्युनिकेशन स्किल का अभाव होता है, हालांकि इसे डेवलॅप करना मुश्किल काम नहीं है। कंपनी ट्रेनिंग है कारगर ऐसा अक्सर होता है कि जब फ्रेशर्स किसी कंपनी में ज्वॉइन करते हैं, तो वे अपने सीनियर्स या सहकर्मियों के साथ सही ढंग से कम्युनिकेट नहीं कर पाते। इसके पीछे कहीं न कहीं उनकी शिक्षा पद्धति जिम्मेदार होती है। हमारे स्कूल, कॉलेज या प्रोफेशनल इंस्टीटयूट में कम्युनिकेशन स्किल के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाती। यही वजह है कि फ्रेशर्स ऑफिस में किसी विषय पर न तो सही ढंग से बोल पाते हैं और न ही अपने विभागीय कार्यो के बारे में सही समझ रख पाते हैं। इसलिए यदि फ्रेशर्स के कम्युनिकेशन स्किल को बढ़ाने के लिए ऑफिस में कुछ दिनों की ट्रेनिंग की व्यवस्था कर दी जाए, तो यह समस्या आसानी से हल हो सकती है। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें तमाम विभागीय जानकारियां उपलब्ध कराई जानी चाहिए। साथ ही, उन्हें ऑफिस के रूल्स ऐंड रेगुलेशंस और उनके दायित्वों के बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया जाए। ऑफिस का हल्का माहौल यदि आपको ऑफिस में आठों घंटे सावधान की मुद्रा में काम करना पड़े, तो जाहिर है आपका काम से बहुत जल्दी मन ऊब जाएगा। यदि ऑफिस में काम हल्के-फुल्के माहौल में हो, तो आपको न केवल अपना कार्य करने में मजा आएगा, बल्कि कंपनी का मुनाफा भी बढ़ेगा। इसलिए ऑफिस ऑवर्स के दौरान फ्रेशर्स या किसी भी नए बहाल हुए एम्प्लॉई का कुशल-क्षेम पूछना, या उनसे थोड़ी बहुत बातचीत कर लेना पुराने एम्प्लॉई का कर्तव्य होता है। इसके साथ-साथ नए एम्प्लॉई को भी अपने सीनियर्स के साथ स्वयं ही बातचीत करने की पहल करनी चाहिए। यदि उन्हें कुछ ऑफिशियल वर्क समझ में नहीं आ रहा है, तो अपने सहकर्मी से पूछने में झिझकें नहीं। ऐसा करने से फायदा यह होता है कि आपके जो साथी अब तक ऑफिस के लोगों से घुल-मिल नहीं पाए हैं, यानी कम्युनिकेशन स्किल के अभाव के शिकार हुए हैं, वे भी खुद को माहौल के अनुरूप ढालना शुरू कर देते हैं। मीटिंग है जरूरी ऑफिस कर्मियों के बीच कम्युनिकेशन गैप कम करने के लिए बॉस-एम्प्लॉई के बीच नियमित मीटिंग बहुत जरूरी है। यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि ऐसी मीटिंग केवल एम्प्लॉई के दोषों को गिनाने के लिए ही नहीं, बल्कि उनके गुणों का बखान भी होना चाहिए। इसके अलावा, यदि अधिकारी फ्रेशर्स के खास काम की सराहना मीटिंग में करेंगे, तो इससे न केवल उसकी हौसलाअफजाई होगी, बल्कि प्रतिस्पद्र्धा का माहौल विकसित होने से कंपनी का टोटल आउटपुट भी पॉजिटिव आएगा। जैसी रुचि, वैसा काम कभी-कभी ऑफिस में एम्प्लॉई को उसके मन-मुताबिक काम नहीं मिलता। उदाहरण के लिए, यदि किसी सॉफ्टवेयर कंपनी का एक एम्प्लॉई ग्राफिक डिजाइनिंग में माहिर है, तो उसे एकाउंट्स का कार्य थमा दिया जाता है। यदि संबंधित व्यक्ति को उसकी रुचि के अनुसार काम दिया जाता है, तो न केवल काम अच्छे तरीके से हो पाता है, बल्कि उस डिपार्टमेंट का आउटपुट भी बढि़या आता है। इसलिए एम्प्लॉई के कम्युनिकेशन स्किल को डेवलॅप करने के लिए उनके बीच ऑफिशियल कामों का बंटवारा उनकी रुचि के अनुसार ही होना चाहिए। (स्मिता,Dainik Jagran,8.6.2010)
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