रेलवे की भर्तियों में गड़बड़ी का गोरखधंधा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा घटना असिस्टेंट लोको पायलट और असिस्टेंट ड्राइवरों की भर्ती के लिए देश भर में आयोजित परीक्षा के पर्चे लीक होने की है। इस आरोप में रेलवे भर्ती बोर्ड, मुंबई के अध्यक्ष और एक एडीआरएम के बेटों को पकड़ा गया है। रेलवे ने भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष एसएम शर्मा को निलंबित कर दिया है। जबकि पूर्व एडीआरएम एके जगन्नाथन की गिरफ्तारी के लिए सीबीआई ने सरकार से अनुमति मांगी है। जबकि इसके चलते 27 जून को होने वाली इन्क्वायरी कम रिजर्वेशन क्लर्क और गुड्स गार्ड की परीक्षा भी रद्द कर दी गई है। इस घटनाक्रम ने साबित कर दिया है कि रेलवे की भर्ती प्रक्रिया में पेंच ज्यों के त्यों बरकरार हैं। हालांकि रेल मंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया था कि वह इन खामियों को दूर करेंगी। इस सिलसिले में आम जनता को उम्मीद भी बंधी थी, जब पिछले दिनों अपनी पहली प्रेस कान्फ्रेंस में रेलवे बोर्ड के नवनियुक्त अध्यक्ष विवेक सहाय ने ऐलान किया था कि इस बार ग्रुप सी और डी की तकरीबन 40 हजार रिक्तियों को भरने के लिए भर्ती बोर्डो द्वारा अलग-अलग टेस्ट के बजाय देश भर में एक साथ परीक्षाओं का आयोजन कराया जाएगा। मगर पहली ही परीक्षा में नई व्यवस्था की पोल खुल गई। इससे पता चलता है कि इस गोरखधंधे की जड़ें कितनी गहरी हैं और इसे रोकना आसान नहीं है। दरअसल, रेलवे की भर्तियों का मामला उतना सीधा नहीं है जितना दिखता है। कहने को भर्तियों के लिए बाकायदा क्षेत्रीय स्तर पर 19 रेलवे भर्ती बोर्ड बने हुए हैं लेकिन इनकी कार्यप्रणाली इतनी संदिग्ध है इनसे बेहतर नतीजों की उम्मीद नहीं की जा सकती। और तो और भर्ती बोर्डो के अध्यक्षों का चयन जिस तरह होता है और रेल मंत्रियों द्वारा उन्हें जिस तरह अपने राजनीतिक मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। चयन के मामले में इन बोर्डो को अविश्वसनीय हद तक विवेकाधीन शक्तियां प्राप्त हैं। इनका उपयोग रेल मंत्रियों के राजनीतिक हित साधने के लिए किया जाता रहा है। ऐसे में रेल मंत्री की अनुकंपा पर नियुक्त भर्ती बोर्डो के अध्यक्ष या उनके बेटे यदि नकल कराते हैं या पर्चा लीक कराते हैं तो इसमें आश्चर्य कैसा। भर्ती बोर्ड हैं के जरिए रेलवे के 85 फीसदी कर्मचारियों की भर्ती होती है। इन्हें ग्रुप सी और डी के अंतर्गत रखा गया है। बाकी मात्र 15 प्रतिशत कर्मचारी ग्रुप ए और बी में आते हैं और इनकी भर्ती संघ लोक सेवा आयोग और कर्मचारी चयन आयोग के मार्फत होती हैं। भर्ती बोर्ड के जरिए असिस्टेंट स्टेशन मास्टर, टीटीई, गार्ड, इन्क्वायरी कम रिजर्वेशन क्लर्क व गुड्स गार्ड के अलावा असिस्टेंट लोको पायलट, प्वाइंट्समैन, केबिनमैन और गैंगमैन आदि की नियुक्तियां होती हैं। इन पदों के लिए न्यूनतम योग्यता को छोड़कर बाकी नियम बेहद लचीले हैं और इनमें क्षेत्रीय भर्ती बोर्डो की मर्जी चलती है। भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्य चाहें तो किसी भी परीक्षार्थी की परीक्षा दुबारा लेने के नाम पर उसे पास कर सकते हैं। परीक्षा के अलावा दूसरी कड़ी इंटरव्यू की है जिसमें बिना सिफारिश के शायद ही कोई पहुंचता हो। आज भी सेलेक्ट और रिजेक्ट के तमाम मामले यहां इसी आधार पर तय होते हैं। जब सीके जाफरशरीफ और राम विलास पासवान रेल मंत्री थे तो भर्ती बोर्डो की तूती बोलती थी। पहली बार नीतीश कुमार ने इनके पर कतरने का काम किया और एलाबोरेटिव के बजाय ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न-पत्रों के साथ कार्बन कॉपी की व्यवस्था शुरू की ताकि गड़बडि़यों की जांच रेलवे बोर्ड के स्तर पर हो सके। इससे गड़बडि़यों पर काफी हद तक अंकुश लग गया था। मगर बाद के रेल मंत्रियों ने इस व्यवस्था को फिर जहां का तहां पहंुचा दिया। पिछले साल जब रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कार्यभार संभाला था तो आते ही उन्होंने भर्तियों में धांधली को दुरुस्त करने की बातें की थीं। उस वक्त उनके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद पर जमीन के बदले नियुक्तियों के आरोप भी लगाए गए थे जिस पर ममता ने इस मामले की सीबीआई जांच कराने का ऐलान किया था। आज किसी को नहीं मालूम कि उसका क्या हुआ और आखिर सीबीआई कहां तक पहंुची। सुनने में तो आ रहा है कि इस मामले में रत्ती भर भी प्रगति नहीं हुई है। हां, लालू की आड़ में भर्ती प्रक्रिया में बदलाव का बहाना जरूर मिल गया। एक झटके में तमाम भर्ती बोर्डो के अध्यक्ष बदल दिए गए। अब जो मामले सामने आ रहे हैं उनमें इन नवनियुक्त महानुभावों का नाम है। साफ है कि कहीं कोई सुधार नहीं हुआ है और दवा के नाम पर मर्ज बढ़ गया है। असल में रेलवे भर्तियों में धांधली तब तक नहीं रुक सकती जब तक कि ग्रुप ए और बी की तरह ग्रुप सी और डी की परीक्षाएं भी किसी स्वतंत्र निकाय से नहीं करवाई जातीं। आखिर क्या वजह है कि आज तक ग्रुप ए और बी की भर्तियों में गड़बड़ी का एक भी मामला सामने नहीं आया है? जबकि ग्रुप सी और डी के मामले में नित नए खुलासे हो रहे हैं(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,20.6.2010)।
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