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13 जून 2010

चयन बोर्डो में अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य

केंद्र सरकार की ए और बी श्रेणी की महज दस नौकरियों के लिए भी बनने वाले चयन बोर्डों या समितियों में अल्पसंख्यकों व अनुसूचित जाति या जनजाति के एक-एक सदस्य को प्रतिनिधित्व देना अनिवार्य होगा। इन दोनों श्रेणी की नौकरियों में अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति व जनजाति को समुचित भागीदारी न मिलने के बाद सरकार ने स्पष्ट करते हुए सुझाया है कि दस से कम नियुक्तियों पर भी इस फार्मूले को अपनाया जा सकता है। कोटे की नियुक्तियों को लेकर काफी विवाद रहा है। अल्पसंख्यकों के लिए प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रम की मॉनीटरिंग के दौरान खुलासा हुआ कि कई मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) में अल्पसंख्यकों की समुचित भागीदारी अब भी नहीं हो पा रही है। सरकार की मंशा इस क्षेत्र की केंद्रीय नौकरियों में अल्पसंख्यकों को 15 प्रतिशत भागीदारी की है। तीन साल की कोशिशों के बाद भी यह महज 9.18 प्रतिशत तक ही है। इस खुलासे के बाद केंद्रीय कैबिनेट सचिव रेलवे, डाक एवं तार विभाग, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ वित्तीय सेवा से जुड़े उपक्रमों की नौकरियों में अल्पसंख्यकों व अनुसुचित जाति (एससी) और जनजाति के लोगों की समुचित भागीदारी न बढ़ने पर जवाब-तलब किया जा चुका है। दस से अधिक पदों के मामले में ए और बी श्रेणी की नौकरियों के लिए गठित चयन बोर्डों में अल्पसंख्यकों व अनुसूचित जाति के एक-एक सदस्य को रखने में भी अनदेखी की गई। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) 2007 में ही इस बाबत एक जरूरी दिशा-निर्देश जारी कर चुका है। हालांकि उसमें यह स्पष्ट नहीं था कि ये दिशा-निर्देश ए और बी श्रेणी की नौकरियों में भी लागू होंगे। लिहाजा सार्वजनिक क्षेत्र के कई उपक्रमों के प्रमुखों ने 1983 के डीओपीटी के उस दिशा-निर्देश को ही तवज्जो दी, जिसमें सिर्फ सी व डी (तृतीय व चतुर्थ श्रेणी) समूह की नियुक्तियों के चयन बोर्डों में इन समुदायों के प्रतिनिधित्व को जरूरी बताया गया था(राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली, Dainik Jagran,13.6.2010)।

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