रेलवे भर्ती परीक्षा के पर्चे बाजार में बिकने के बाद रेल प्रशासन के समक्ष इन परीक्षाओं को स्थगित करने के अतिरिक्त और कोई उपाय शेष नहीं रह गया था, लेकिन सवाल यह है कि कब तक ऐसा होता रहेगा? यह पहली बार नहीं जब रेलवे की किसी परीक्षा में सेंध लगी हो। इसके पहले कई बार रेलवे की परीक्षाएं उन्हीं कारणों से स्थगित की जा चुकी हैं जिस कारण से एक बार फिर स्थगित की गई। ममता बनर्जी ने रेल मंत्रालय संभालने के बाद जब सभी 20 रेलवे भर्ती बोर्ड के अध्यक्षों को हटा दिया था तो यह उम्मीद बंधी थी कि अब रेलवे की परीक्षाओं में सेंधमारी नहीं हो सकेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि समस्या सुलझने के बजाय और गंभीर हो गई है, क्योंकि खुद रेलवे अधिकारियों के परिजन ही परीक्षा के पर्चे बेचते हुए पकड़े गए। सीबीआई ने जिस तरह मुंबई, बेंगलूर, रायपुर, कोलकाता और हैदराबाद में एक साथ छापे मारकर भर्ती घोटाले का भंडाफोड़ किया उससे यही पता चलता है कि पर्चे बेचने वाले गिरोह की जड़ें दूर-दूर तक फैली थीं। चूंकि सीबीआई ने पैसे लेकर रेलवे परीक्षा के पर्चे लीक करने के आरोप में रेलवे के कुछ बड़े अधिकारियों की भूमिका उजागर की है इसलिए यह साफ हो जाता है कि धांधली अंदर से ही हुई। इस घोटाले के उजागर होने से यह भी साबित हो रहा है कि रेलवे के अधिकारियों ने विगत की ऐसी घटनाओं से कहीं कोई सबक नहीं सीखा। एक अर्से से यह महसूस किया जा रहा है कि प्रतियोगी परीक्षाओं के मामले में नए तौर-तरीके अपनाने की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि उन उपायों को अपनाने से जानबूझकर बचा जा रहा है जो धांधली रोकने में सहायक हो सकते हैं। नि:संदेह बात केवल रेलवे भर्ती परीक्षा की ही नहीं, बल्कि अन्य अनेक परीक्षाओं की भी है। सच तो यह है कि चंद प्रतियोगी परीक्षाओं को छोड़कर ज्यादातर परीक्षाओं में सेंधमारी होने लगी है। भर्ती परीक्षाओं में धांधली के मामले जिस तरह सामने आ रहे हैं उससे उन परीक्षाओं की शुचिता और गरिमा भी प्रभावित हो रही है जिनके पर्चे लीक होने के प्रमाण सामने नहीं आए हैं। नि:संदेह कोई भी इसकी गारंटी नहीं ले सकता कि वे सभी परीक्षाएं सही ढंग से संपन्न हुई जिनके पर्चे लीक नहीं हुए अथवा जिनका मूल्यांकन नीर-क्षीर ढंग से किया गया। भर्ती परीक्षाओं में धांधली के नित नए मामले परीक्षाओं में सेंधमारी करने वाले तत्वों के बढ़ते दुस्साहस को तो बयान करते ही हैं, किसी न किसी स्तर पर मेधावी छात्रों को हताश-निराश करने का भी काम कर रहे हैं। यह समझना कठिन है कि प्रतिष्ठित भर्ती परीक्षाएं भी दशकों पुराने तौर-तरीकों से क्यों हो रही हैं? ऐसा लगता है कि किसी को यह नहीं सूझ रहा कि प्रश्नपत्रों के प्रकाशन से लेकर विभिन्न शहरों में उन्हें भेजने की जो लंबी प्रक्रिया है उस दौरान कभी भी सेंधमारी हो सकती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों की गोपनीयता कायम रखने के मामले में आधे-अधूरे ढंग से ही प्रयास किए जा रहे है। यदि इच्छाशक्ति का परिचय दिया जाए तो सूचना तकनीक के इस युग में इस तरह से परीक्षाएं आसानी से आयोजित की जा सकती हैं कि उनकी गोपनीयता और गरिमा बरकरार रहे(संपादकीय,दैनिक जागरण,20.6.2010)।
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