अगले सेशन में स्टूडेंट्स की प्लेसमेंट सुनिश्चित करने के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी ने अभी से प्रयास शुरू कर दिए हैं। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने सेशन के साथ ही प्लेसमेंट प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया है। शुरुआत कंपनियों को भेजे जाने वाले प्लेसमेंट ब्रॉशर तैयार करने से होगी। यूनिवर्सिटी के प्रोफेशनल व साइंस कोर्स कराने वाले डिपार्टमेंट्स को सेशन शुरू होने के एक महीने में प्लेसमेंट ब्रॉशर तैयार करके यूनिवर्सिटी प्रशासन को देने होंगे।
पिछले दो साल में प्लेसमेंट के बुरे अनुभव को देखते हुए पीयू प्रशासन ने प्लेसमेंट ड्राइव को तेज करने का फैसला लिया है। पीयू के वीसी प्रो. आरसी सोबती के मुताबिक हर डिपार्टमेंट को तय अवधि में प्लेसमेंट ब्रॉशर तैयार करने होंगे, ऐसा न करने पर प्रशासन कार्रवाई करेगा।
मंदी और लापरवाही ने बिगाड़ा खेल
पिछले दो साल में यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स की प्लेसमेंट अच्छी नहीं रही। पहले मंदी की वजह से कंपनियां प्लेसमेंट के लिए नहीं आईं। तो पिछले साल यूनिवर्सिटी के कई डिपार्टमेंट्स की लापरवाही प्लेसमेंट के सार्थक नतीजे सामने नहीं आए। स्टूडेंट्स काउंसिल ने लगातार प्लेसमेंट का मसला उठाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि यूनिवर्सिटी प्रशासन को स्टूडेंट्स काउंसिल के साथ सेशन पूरा होने के बाद प्लेसमेंट फेयर का आयोजन करना पड़ा।
ब्रॉशर तक नहीं बनाते डिपार्टमेंट
मंदी के दौर में प्लेसमेंट में कमी आने के बावजूद यूनिवर्सिटी के कई डिपार्टमेंट्स ने पिछले साल भी प्लेसमेंट में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालात यह थे कि इन डिपार्टमेंट्स ने से कंपनियों से संपर्क करना तो दूर, उन्हें भेजने के लिए ब्रॉशर तक तैयार नहीं किए।
ब्रॉशर के आधार पर आती हैं कंपनियां
ब्रॉशर में सिलेबस से लेकर टीचर्स तक डिटेल होती है। किस ब्रांच में कितने स्टूडेंट हैं, कितने पेपर होते हैं, पिछले प्लेसमेंट रिकॉर्ड क्या है, ऐसी तमाम जानकारियां इसमें होती हैं। यह ब्रॉशर कंपनियों को भेजा जाता है, ताकि कंपनी को पता लग सके कि किस यूनिवर्सिटी में उसकी डिमांड के हिसाब से कितने स्टूडेंट हैं, पिछले साल स्टूडेंट्स को कितना पैकेज मिला था और इस साल कितना दे सकते हैं। इस ब्रॉशर के आधार पर ही कंपनियां प्लेसमेंट ड्राइव में शामिल होने के लिए हामी भरती हैं(दैनिक चंडीगड,3 जून,2010 में अधीर रोहाल की रिपोर्ट)।
पिछले दो साल में प्लेसमेंट के बुरे अनुभव को देखते हुए पीयू प्रशासन ने प्लेसमेंट ड्राइव को तेज करने का फैसला लिया है। पीयू के वीसी प्रो. आरसी सोबती के मुताबिक हर डिपार्टमेंट को तय अवधि में प्लेसमेंट ब्रॉशर तैयार करने होंगे, ऐसा न करने पर प्रशासन कार्रवाई करेगा।
मंदी और लापरवाही ने बिगाड़ा खेल
पिछले दो साल में यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स की प्लेसमेंट अच्छी नहीं रही। पहले मंदी की वजह से कंपनियां प्लेसमेंट के लिए नहीं आईं। तो पिछले साल यूनिवर्सिटी के कई डिपार्टमेंट्स की लापरवाही प्लेसमेंट के सार्थक नतीजे सामने नहीं आए। स्टूडेंट्स काउंसिल ने लगातार प्लेसमेंट का मसला उठाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि यूनिवर्सिटी प्रशासन को स्टूडेंट्स काउंसिल के साथ सेशन पूरा होने के बाद प्लेसमेंट फेयर का आयोजन करना पड़ा।
ब्रॉशर तक नहीं बनाते डिपार्टमेंट
मंदी के दौर में प्लेसमेंट में कमी आने के बावजूद यूनिवर्सिटी के कई डिपार्टमेंट्स ने पिछले साल भी प्लेसमेंट में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालात यह थे कि इन डिपार्टमेंट्स ने से कंपनियों से संपर्क करना तो दूर, उन्हें भेजने के लिए ब्रॉशर तक तैयार नहीं किए।
ब्रॉशर के आधार पर आती हैं कंपनियां
ब्रॉशर में सिलेबस से लेकर टीचर्स तक डिटेल होती है। किस ब्रांच में कितने स्टूडेंट हैं, कितने पेपर होते हैं, पिछले प्लेसमेंट रिकॉर्ड क्या है, ऐसी तमाम जानकारियां इसमें होती हैं। यह ब्रॉशर कंपनियों को भेजा जाता है, ताकि कंपनी को पता लग सके कि किस यूनिवर्सिटी में उसकी डिमांड के हिसाब से कितने स्टूडेंट हैं, पिछले साल स्टूडेंट्स को कितना पैकेज मिला था और इस साल कितना दे सकते हैं। इस ब्रॉशर के आधार पर ही कंपनियां प्लेसमेंट ड्राइव में शामिल होने के लिए हामी भरती हैं(दैनिक चंडीगड,3 जून,2010 में अधीर रोहाल की रिपोर्ट)।
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