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15 जून 2010

रविशंकर शुक्ल विवि जर्मन और रशियन गायब!

इंटरनेट के जरिए एक तरफ पंडित रविशंकर शुक्ल विवि सारी दुनिया के लिए अपने दरवाजे-खिड़कियां खोल रहा है, दूसरी ओर इसके पाठ्यक्रम से विदेशी भाषाएं गायब हो रही हैं। रशियन और जर्मन दस बरस पहले गायब हो चुकी हैं। उर्दू, तेलगू जैसी भारतीय भाषाओं का भी यही हाल है।इस समय विवि में फ्रेंच भाषा का एक वर्षीय पाठ्यक्रम चल रहा है। इसकी 30 सीटें हैं लेकिन स्टूडेंट्स की संख्या 10 के ऊपर नहीं जा पाती। विवि के अफसरों का कहना है कि जिस भाषा की मांग रही, वह विवि में चली। जर्मन और रशियन में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई, सो इनकी क्लासेज बंद हो गयीं। फ्रेंच की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है।

प्रचार की कमी
जानकारों के मुताबिक ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में विदेशी भाषाओं की मांग हर कहीं है। देश के बड़े-बड़े विवि में इन्हें पढ़ाया जा रहा है। इनके लिए कड़ी स्पर्धा होती है। रविवि में स्टूडेंट्स की रुचि नहीं दिखने की वजह इन पाठ्यक्रमों के प्रचार की कमी है। इनकी हालत सुधारने के लिए शासन के पास कभी कोई प्रस्ताव शायद ही गया हो।

1967 में हुई शुरुआत
1967-68 मंे डिप्लोमा इन फोनेटिक्स एंड इंडियन लैंग्वेजेज का पाठ्यक्रम शुरू हुआ। यह 1980 तक चला। रशियन में डिप्लोमा की शुरुआत 1973-74 में हुई। यह 1995-96 तक चला। डिप्लोमा इन इंग्लिश 1977 में शुरू हुआ, इसकी क्लासेस मौजूदा सत्र में भी लगीं।
डिप्लोमा इन जरमन का पाठ्यक्रम 1983-84 से 1999-2000 तक रहा। ट्रांसलेशन में सर्टिफिकेट कोर्स 1990-1991 से अभी तक चल रहा है। फ्रेंच भाषा का पाठ्यक्रम 1998-1999 से शुरू हुआ।
मांग अनुरूप ही विदेशी भाषाओं के पाठ्यक्रम चले। डिमांड होगी तो कोर्स शुरू हो जाएंगे। प्रो.के.एल वर्मा, विभागाध्यक्ष, भाषा, साहित्य विभाग, रविवि(Dainik Bhaskar,Raipur,15.6.2010)

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