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04 जून 2010

हरियाणवी कहानी केरल विश्वविद्यालय के सिलेबस में

हरियाणा में पिछले 20 साल से साहित्य साधना कर रहे ग्वालियर मूल के लेखक स्वामी वाहिद काजमी की कहानी लानत को केरल विश्वविद्यालय ने अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है। जाति व्यवस्था पर कड़े प्रहार करती स्वामी की यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है। केरल विवि के सभी कालेजों में इस कहानी को इसी शिक्षण सत्र से पढ़ाया जाएगा। कहानी में जाति आधारित सामाजिक व्यवस्थाओं पर तंज कसे गए हैं। स्वामी वाहिद काजमी अंबाला छावनी के बेहद पुराने राज होटल के कमरा नंबर दस में अकेले रहते हैं। करीब पांच साल पहले सुनने की शक्ति खो चुके स्वामी ने वर्ष 2003 में लानत शीर्षक से यह कहानी लिखी थी, जो अंबाला छावनी रेलवे स्टेशन पर रोटी के टुकड़े के लिए लड़ते दो भिखारियों के बीच हुई बातचीत का ब्यौरा समेटे है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने पिछले साल स्वामी को पत्र भेजकर इस कहानी को छापने की अनुमति मांगी थी। ग्वालियर के आंतरी कस्बे में जन्मे वाहिद काजमी द्वारा इजाजत देने के बाद केरल विवि ने इस कहानी को अपने स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है। स्वामी की यह कहानी रीडिंग एंड रियल्टी नामक पुस्तक का हिस्सा बनी है। इस पुस्तक में देश-विदेश के नामी लेखकों की सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियों को शामिल किया गया है। दैनिक जागरण से बातचीत में स्वामी ने बताया कि जाति व्यवस्था से देश और समाज का कोई हिस्सा अछूता नहीं है। यहां तक कि भीख मांगकर गुजारा करने वाले लोगों में भी जाति व्यवस्था आधारित समाज होता है। कहानी में उल्लेख है कि एक भिखारी सिर्फ इसलिए दूसरे भिखारी द्वारा चुराई गई अपनी रोटी दोबारा नहीं खाता, क्योंकि जाति में वह पहले भिखारी से अव्वल है। इस पुस्तक और कहानी का रूपांतरण और संपादन इरा राजा व मीनी कृष्णन ने किया है। हरियाणा साहित्य जगत में अपनी उपेक्षा पर स्वामी ने कहा कि उन्हें भगवान के होने का भरोसा है। वह सिर्फ इसलिए मस्जिद नहीं जाते, क्योंकि उन्हें मंदिर या गुरुद्वारे भी जाना पड़ेगा। काजमी ओशो से प्रभावित होने के बाद अपने नाम के आगे स्वामी लिखना शुरू कर दिया है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,4 जून,2010 में चंडीगढ़ से अनुराग अग्रवाल की रिपोर्ट)।

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