साइकिल उद्योग की वृद्धि बरकरार रखने में विभिन्न राज्यों के सरकारी टेंडरों का बड़ा हाथ है। माना जाता है कि अगर राज्य सरकारों ने सर्वशिक्षा अभियान के तहत विद्यार्थियों को साइकिल देने की स्कीम न निकाली होती तो काली यानी रोडस्टर साइकिलों की वृद्धि एक प्वाइंट पर आकर रूक जाती। सरकारी टेंडरों के कारण काली साइकिलों का बाजार हर वर्ष 12-15 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इस साल फिर टेंडर निकल चुके हैं। उम्मीद है कि तमिलनाडु, कर्नाटक, गुवाहाटी, गुजरात, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार व महाराष्ट्र की सरकारों को 20 लाख साइकिलें सप्लाई होंगी। इसका ज्यादा फायदा बड़े साइकिल निर्माताओं के वेंडर को होगा। हर साल बनने वाली 1.25 करोड़ साइकिलों का 85 फीसदी लुधियाना में बनता है। चीन से घबराए साइकिल व साइकिल पार्ट्स उद्योग को एक बार फिर कारोबार में नई दिशा मिल गई है। ऑल इंडिया साइकिल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रधान व एवन साइकिल के मैनेजिंग डायरेक्टर ओंकार सिंह पाहवा कहते हैं कि इस साल तमिलनाडु से 5.50 लाख, गुजरात से 40 हजार, झारखंड से 65 हजार और गुजरात से एक लाख साइकिलों के टेंडर निकले हैं। इनमें सभी साइकिल निर्माता कंपनियों ने हिस्सा लिया है। कंपनियां स्वयं और वेंडरों के सहयोग से तीन माह में ऑर्डर पूरे करेंगी। शेष साइकिलों के टेंडर अगले माह निकलेंगे। इस बार खास बात यह रहेगी कि यूपी-बिहार की सरकारें कंपनी डीलरों से साइकिलें खरीदेंगी। ध्यान रहे कि पिछले साल 18 लाख साइकिलों की इन राज्यों में टेंडर से सप्लाई हुई थी। यह प्रोजेक्ट विश्व बैंक का है और इसमें पैसे का बड़ा हिस्सा विश्व बैंक ही देता है। इस साल स्कूली लड़कों को भी साइकिल मिलेंगी। पिछले साल तक लड़कियों को ही साइकिलें दी जाती थीं। साइकिल देने की शर्त यह है कि बच्चा 10 किलोमीटर चलकर स्कूल जाता हो। टेंडरों के कारण काली साइकिलों की विकास 15 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद है( नितिन धीमान, लुधियाना,Dainik Jagran,17.6.2010)।
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