शिक्षा का अधिकार कानून २००९ के तहत दोबारा पंजीकरण कराने संबंधी दिल्ली सरकार के निर्देश से शहर के निजी स्कूल प्रबंधक बिलबिलाए हुए हैं। लेकिन इनकी मनमानियों पर लगाम लगाने में जुटी सरकार का कहना है कि नए कानून के तहत तमाम स्कूलों को पंजीकृत करना जरूरी है।
निजी स्कूलों के प्राचार्यों और उनके प्रबंधन से जुड़े अन्य लोगों के प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को दिल्ली के शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह से मुलाकात की। इनका कहना है इनके स्कूल वर्ष १९७३ के कानून के तहत पंजीकृत हैं। सरकार अब कह रही है कि उसे शिक्षा का अधिकार कानून २००९ के तहत नए सिरे से पंजीकरण कराना होगा। इस क्रम में उनके स्कूल का नए सिरे से निरीक्षण किया जाएगा। रिपोर्ट के आधार पर ही उनका पंजीकरण होगा। इतना ही नहीं नए कानून के तहत तमाम स्कूलों को हर तीन साल पर पंजीकरण करना होगा।
स्कूल प्राचार्यों ने मझोले दर्जे के निजी स्कूल मालिक शिक्षकों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप शिक्षकों को वेतन देने की अनिवार्यता से भी नाराज हैं। इस मामले में कुछ प्राचार्यों ने बताया कि बड़े निजी स्कूल मोटी फीस वसूलते हैं और वे शिक्षकों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप वेतन देने में सक्षम हैं लेकिन छोटे और मझोले स्कूलों के लिए ऐसा करना संभव नहीं है।
दिल्ल्ी सरकार के शिक्षा मंत्री श्री सिंह ने कहा कि सरकार को शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के लिए उन स्कूलों का पंजीकरण भी करना है जो अब तक इस परिधि से बाहर हैं। उन्होंने कहा कि सरकार स्कूलों की संख्या को बढ़ाना चाहती है। उन्होंने कहा कि जो स्कूल पहले से पंजीकृत हैं, उन्हें महज एक फार्म भरकर देना होगा जबकि बगैर पंजीकरण के चल रहे स्कूलों को पंजीकरण करना होगा। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
जानकारों का कहना है कि निजी स्कूल हर मामले में मनमानी करते हैं। दिल्ली सरकार और उसका शिक्षा निदेशालय इनकी मनमानियों पर रोक लगाने में लाचार है। लेकिन जब इन स्कूलों को हर तीन साल पर पंजीकरण कराने के लिए निदेशालय के चक्कर लगाने होंगे, तो उनके सामने सरकारी हुक्म की तामील करने की मजबूरी होगी। यही वजह है कि ऐसे स्कूल प्रबंधन बिलबिला रहे हैं(नई दुनिया,दिल्ली,22.7.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।