प्रत्येक अभिभावक की दिली इच्छा होती है कि उनका बच्चा लिख-पढ़कर महान बने। इस महानता में जहां शिक्षा का दायित्व बनता है कि वह बच्चे को सभी गुणों से परिपूर्ण बनाए वहीं अभिभावकों का भी दायित्व बनता है कि वह बच्चों को उस शिक्षा से वंचित न रखे जो बच्चे में कम से कम नेतृत्व का गुण विकसित करती हो। देश के महानतम व्यक्ति ही नहीं अपितु विदेशों के महान व्यक्ति भी नेतृत्व गुण के कारण विख्यात हुए हैं।
नेतृत्व का गुण शिक्षा के बल पर ही बचपन में ही सिखाया जा सकता है। यदि विद्यार्थी अपने परिवार में बेहतर ढंग से अपने संवाद प्रस्तुत कर सकता है तो उसे समाज में भी बेहतर संवाद प्रस्तुत करने के लिए आगे लाना चाहिए। एक अभिभावक जब अपने घर पर ही बच्चे में नेतृत्व गुणों का संचार करे और स्कूल में शिक्षक बच्चे में नेतृत्व के गुण जाग्रत कर दे तो आने वाले समय में बच्चा न केवल अच्छा वक्ता ही बनेगा अपितु आगे चलकर नेतृत्व करने का साहस कर सकेगा। अगर बचपन में ही बच्चे में नेतृत्व गुणों का विकास नहीं किया तो बच्चा शर्मीले स्वभाव का होगा। ऐसे में वो आगे चलकर अपने काम के लिए भी दूसरों के मुंह की ओर ताकता मिलेगा।
यदि देश की महान विभूतियों पर नजर डालें और देशभक्तों पर नज़र दौड़ाएं तो एक बात स्पष्ट होती है कि महानता का जो गुण उनमें पैदा हुआ वो नेतृत्व के गुणों के कारण ही पैदा हुआ है। उन महापुरुषों का जीवन बेशक संघर्ष में बीता हो किंतु उन्होंने अपने नेतृत्व के गुणों के बल पर एकता का संचार किया और समाज को आगे बढ़ाया। नेहरू, गांधी, सुभाष, भगत सिंह एवं महान देशभक्तों का जीवन नेतृत्व के गुणों से आकंठ भरा था।
नेतृत्व का गुण पैदा करने के लिए कोई विशेष तकनीक की जरूरत नहीं होती है। इस गुण को पैदा करने के लिए हम सभी का कर्तव्य बनता है कि बच्चे को आगेेे लाने का प्रयास करें। एक वक्त था जब स्कूलों में शिक्षा दी जाती थी तो साथ-साथ एक दिन बच्चों को नेतृत्व का पाठ सप्ताह में जरूर सिखाया जाता था।
शनिवार के दिन विद्यार्थियों को स्कूलों की सभा में बोलने का अवसर दिया जाता था। इस मौके का जो लाभ उठाता है उसमें झिझक एवं आत्मिक भय समाप्त हो जाता है और बच्चा इस मुकाम पर पहुंचने के बाद आगे की ओर ही बढ़ता चला जाता है। विद्यालय में शिक्षक अपने विद्यार्थी में यह गुण आसानी से संचारित कर सकता है। अगर वह विद्यार्थियों को बारी-बारी से सभा में बोलने का मौका दे तो एक दिन सभी विद्यार्थियों की झिझक समाप्त हो जाएगी। वे भविष्य में महान बन सकेंगे।
सरकार विद्यार्थियों में इस गुण का विकास करने के लिए प्रार्थना का समय देती है जिसमें बच्चों को बोलने का अवसर भी प्राप्त होता है। बड़े-बड़े नेता एवं वकील इसी गुण के कारण ही पूजे जाते हैं। आज के समाज में तो इस गुण की अधिक जरूरत बन गई है।
एक कहावत है कि बोलने वाले की घटिया चीज बिके अर्थात बोलने में महारत हासिल करने के लिए भी नेतृत्व गुणों का विकास करना जरूरी है। अगर अच्छा वक्ता है तो वह अच्छा नेतृत्व कर पाएगा वरना वह शर्मीले स्वभाव के कारण समाज में नाम नहीं कमा पाता। नाम कमाने के लिए भी यह गुण आवश्यक है। चाहे एक व्यक्ति में कितने ही गुण क्यों न हों किंतु नेतृत्व एवं बोलने के गुण नहीं है तो उसे कोई नहीं पहचानेगा।
यदि इनसान वक्ता है और नेतृत्व का गुण रखता है तो सोने पर सुहागा कहलाएगा। वह इनसान चाहे कहीं भी क्यों न रहे बस नाम ही नाम कमाएगा। नेतृत्व गुणों के बगैर इनसान का समुचित विकास नहीं हो पाएगा। नेतृत्व गुणों का विकास करने में कुछ सहायक साधन एवं तत्व निम्न हैं—
० घर पर अभिभावक अपने बच्चे में नेतृत्व गुणों को विकास करे। उसे आगे आने के लिए प्रेरित करे। उसकी बोलने की झिझक समाप्त करे।
० विद्यालय में शिक्षक भी विद्यार्थी में नेतृत्व के गुणों का विकास करने में सक्षम है। यदि शिक्षक विद्यार्थी को समय-समय पर आगे आने के लिए प्रेरित करे और स्कूल परिसर में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर भाग लेने की प्रेरणा दे तो विद्यार्थी आगे आ सकता है।
० समाज के प्रत्येक जन का दायित्व बन जाता है कि वह अपने समाज के बच्चों में इस गुण का विकास करने में मददगार बने। सामाजिक गतिविधियों में उन्हें प्रोत्साहित करे। सदा याद रहे अच्छा समाज अच्छे जनों से ही मिलकर बनता है।
(होशियार सिंह,शिक्षालोक,दैनिक ट्रिब्यून,14 जुलाई,2010)
बच्चों को इन्सान बनाना आज बहुत जरूरी है ,IAS ,IPS ,IRS ,इंजिनियर,डॉक्टर से भी ज्यादा जरूरी क्योकि एक व्यक्ति जिसकी इंसानियत मर जाती है वह हजारों को दुखी करता है और कदम-कदम पर इंसानियत व मानवता को भी शर्मसार करता है |
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