केंद्र सरकार ने राइट टू एजुकेशन लागू कर दिया है, लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी का कहना है कि इससे सरकार संविधान की धारा 29 में भाषाई एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों को दी गई आजादी भंग कर रही है। यह देशभर में फैले मिशनरी स्कूलों, पाठशालाओं और इस्लामी मदरसों के विरुद्ध एक साजिश है। मदरसों में धार्मिक शिक्षा के लिए आने वाले बच्चों पर जरूरी शिक्षा का कानून थोपना गलत है। सरकार नहीं मानी तो जमीयत इसके खिलाफ अक्तूबर में दिल्ली में विशाल प्रदर्शन करेगी।
मौलाना मदनी ने कहा कि मजहबी के साथ समकालीन शिक्षा की जरूरत को महसूस किया जाता है, लेकिन शिक्षा के अधिकार के तहत सरकार द्वारा स्थापित स्कूलों मे प्रवेश को आवश्यक करार देना अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिम समुदाय, को धार्मिक विशेषताओं से दूर करने की साजिश है। जमीयत के प्रेस सचिव जफर उस्मानी ने बताया कि संस्था पदाधिकारी प्रधानमंत्री, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल से मिलकर अपनी दिक्कत बता चुके हैं। मौलाना सैयद अरशद मदनी ने सरकार को चेतावनी दी कि वह मुसलमानों को किसी ऐसे कानून का पाबंद बनाने का प्रयास न करे, जिससे संविधान में मिली आजादी पर प्रभाव पड़ता हो। सरकार इस कानून से मुसलमानों के मजहबी मदरसों को अलग न किया तो अक्तूबर, 2010 के दूसरे पखवाड़े में देशभर के मदरसों के जिम्मेदार लोग दिल्ली में प्रदर्शन करेंगे। जमीयत इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती है(अमर उजाला,नई दिल्ली,23.7.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।