सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में बीएड की शिक्षा देने वाले निजी कालेजों पर अंकुश लगाने में विफल रहने पर राष्ट्रीय शैक्षणिक शिक्षा परिषद को आ़ड़े हाथ लिया है। कोर्ट ने कहा, बीएड में प्रवेश की पेशकश करने वाले स्वपोषित निजी कालेज यदि कानून में प्रदत्त अनिवार्य नियमों का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें मान्यता नहीं दी जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और अशोक कुमार गांगुली की खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रीय शैक्षणिक शिक्षा परिषद कानून के तहत निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं करने वाले किसी भी कालेज को मान्यता नहीं देनी चाहिए। न्यायाधीशों ने राष्ट्रीय शैक्षणिक शिक्षा परिषद की कार्यशैली की तीखी आलोचना की और कहा कि यह संस्था अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में विफल रही है।
न्यायाधीशों ने शिक्षण संस्थाओं में सेवानिवृत्त नौकरशाहों के वर्चस्व पर भी तीखी टिप्पणी की और कहा भारत शायद अकेला देश है जहां शिक्षा व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए बने संगठनों में महत्वपूर्ण पदों पर पूर्व नौकरशाह विराजमान हैं। कोर्ट ने २००५-२००६ से २००८-२००९ की अवधि में बीएड पाठ्यक्रम में प़ढ़ाई की सुविधा प्रदान करने वाले सभी निजी कालेजों की सूची पेश करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है।
न्यायालय ने प्रदेश में बीएड की शिक्षा देने वाले निजी कालेजों को मान्यता देने के मामले में राष्ट्रीय शैक्षणिक शिक्षा परिषद के रवैये पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए परिषद के सदस्य सचिव को तलब किया था। न्यायालय में उपस्थित सदस्य सचिव हसीब अहमद ने सफाई देते हुए कहा कि परिषद ने बीएड की शिक्षा देने वाले किसी भी निजी कालेज को मान्यता देने पर अब रोक लगा रखी है।
न्यायालय ने सदस्य सचिव से कहा है कि वह तीन दिन के भीतर राष्ट्रीय शैक्षणिक शिक्षा परिषद कानून और इसके तहत बने नियमों के पालन के मामले में वस्तुस्थिति का विवरण देते हुए हलफनामा दाखिल करें।
यह खंडपीठ मध्य प्रदेश में कुछ निजी कालेजों की मान्यता समाप्त करने के हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच के गत वर्ष १३ मार्च के फैसले के खिलाफ निजी शिक्षण संस्थाओं और इसमें शिक्षा पा रहे छात्रों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है(नई दुनिया,दिल्ली,22.7.2010)।
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