राजस्थान में पहली बार, गधों की बीमारियों और उनकी जीन संबंधी संरचना पर शोध होगा। बीकानेर वेटरनेरी यूनिवर्सिटी ने गर्दभ कल्याण की परियोजना हाथ में ली है। गधों पर काम करने वाली संस्था डंकी सेंचुरी के साथ वेटरनेरी यूनिवर्सिटी ने समझौता किया है।
यूनिवर्सिटी में पहली बार एक छात्र ने गधों में होने वाले रोगों पर पीएचडी करना शुरू किया है। विवि में गधों में होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों की पहचान कर उनके निदान के उपायों पर भी शोध होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदेश में अभी तक गधों में होने वाले रोगों की कोई जानकारी नहीं होती है।
कई बार उनके संक्रामक रोग दूसरे जानवरों और मनुष्यों में भी फैल जाते हैं, इसकी भी जानकारी ही नहीं मिल पाती। गर्दभ रोगों पर शोध होने के बाद कई तरह की संक्रामक बीमारियों के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी। प्रदेश भर में अभी गधों की तादाद 1.06 लाख के आसपास है और करीब 50,000 परिवारों का इनसे गुजारा चलता है।
क्या है मौजूदा स्थिति:
गधे ज्यादातर आबादी से दूर रहते हैं, गर्दभ पालक उनके रोगग्रस्त होने पर अभी भी उनको क्लिनिक तक नहीं लाते। वेटरनेरी अस्पतालों में भी गधों के इलाज की व्यवस्था नहीं है। उनके रोगों की पहचान नहीं होने के कारण दवा भी उपलब्ध नहीं है।
गर्दभ कल्याण के लिए अब यह होगा:
वेटरनरी यूनिवर्सिटी गधों के लिए क्लिनिक विकसित करेगी। वेटरनेरी डॉक्टरों और कंपाउंडरों को प्रशिक्षित किया जाएगा। गर्दभ पालकों को जागरूक करने और उनकी सुरक्षा के लिए परियोजना पर काम किया जाएगा।
प्रदेश में अभी तक गर्दभ रोगों पर कोई अनुसंधान नहीं हुआ है और इनमें होने वाली बीमारियों पर हमारा खुद का डाटाबेस भी नहीं है। वैटरिनरी यूनिवर्सिटी में अब गर्दभ कल्याण पर भी ध्यान दिया जाएगा - प्रो. ए.के. गहलोत, कुलपति, वैटरिनरी यूनिवर्सिटी, बीकानेर
यूनिवर्सिटी में पहली बार एक छात्र ने गधों में होने वाले रोगों पर पीएचडी करना शुरू किया है। विवि में गधों में होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों की पहचान कर उनके निदान के उपायों पर भी शोध होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदेश में अभी तक गधों में होने वाले रोगों की कोई जानकारी नहीं होती है।
कई बार उनके संक्रामक रोग दूसरे जानवरों और मनुष्यों में भी फैल जाते हैं, इसकी भी जानकारी ही नहीं मिल पाती। गर्दभ रोगों पर शोध होने के बाद कई तरह की संक्रामक बीमारियों के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी। प्रदेश भर में अभी गधों की तादाद 1.06 लाख के आसपास है और करीब 50,000 परिवारों का इनसे गुजारा चलता है।
क्या है मौजूदा स्थिति:
गधे ज्यादातर आबादी से दूर रहते हैं, गर्दभ पालक उनके रोगग्रस्त होने पर अभी भी उनको क्लिनिक तक नहीं लाते। वेटरनेरी अस्पतालों में भी गधों के इलाज की व्यवस्था नहीं है। उनके रोगों की पहचान नहीं होने के कारण दवा भी उपलब्ध नहीं है।
गर्दभ कल्याण के लिए अब यह होगा:
वेटरनरी यूनिवर्सिटी गधों के लिए क्लिनिक विकसित करेगी। वेटरनेरी डॉक्टरों और कंपाउंडरों को प्रशिक्षित किया जाएगा। गर्दभ पालकों को जागरूक करने और उनकी सुरक्षा के लिए परियोजना पर काम किया जाएगा।
प्रदेश में अभी तक गर्दभ रोगों पर कोई अनुसंधान नहीं हुआ है और इनमें होने वाली बीमारियों पर हमारा खुद का डाटाबेस भी नहीं है। वैटरिनरी यूनिवर्सिटी में अब गर्दभ कल्याण पर भी ध्यान दिया जाएगा - प्रो. ए.के. गहलोत, कुलपति, वैटरिनरी यूनिवर्सिटी, बीकानेर
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