वकालत का अधिकार की ल़ड़ाई में अब मध्यप्रदेश भी कूद प़ड़ा है। वकालत करने के लिए ऑल इंडिया स्तर पर प्रवेश परीक्षा अनिवार्य करने के बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के निर्णय के खिलाफ प्रदेश में भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं। दिल्ली, गुजरात व तमिलनाडु के बाद जहां मध्यप्रदेश के विधि छात्रों ने बीसीआई के निर्णय का विरोध शुरू कर दिया है वहीं स्टेट बार काउंसिल ऑफ इंडिया मध्यप्रदेश ने भी बीसीआई के निर्णय के खिलाफ विरोध प्रस्ताव पारित किया है।
बीसीआई के इस निर्णय को वकालत के अधिकार का हनन बताया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के विवि विभाग के बीएएलएलबी पांचवें सेमेस्टर के एक छात्र अनुज अग्रवाल ने बीसीआई के निर्णय के विरुद्ध मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में भारतीय संविधान की धारा २२६ के तहत याचिका (९३७०/२०१०) दायर की है। याचिकाकर्ता ने बीसीआई तथा भारत सरकार के विधि एवं न्यायिक मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया है। छात्र की ओर से दायर याचिका में बीसीआई के अध्याय ३ के भाग ४ में दर्शाए गए ९ से ११ तक के नियमों के तहत उल्लेखित "राइट टू प्रेक्टिस" की वैधता को चुनौती दी गई है। यह एक्ट भारत के संविधान की धारा १४ व १९ (१) (जी) के अंतर्गत बीसीआई ने ही एडवोकेट एक्ट १९६१ नाम से पारित किया था। मामले की सुनवाई जस्टिस अरुण मिश्रा व जस्टिस एससी सिन्हो कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार इस केस पर दो बार सुनवाई हो चुकी है तथा दोनों ही बार सुनवाई में बीसीआई की तरफ से कोई भी वकील उपस्थित नहीं था। सुनवाई की अगली तारीख २७ जुलाई १० है। उल्लेखनीय है कि ३० अप्रैल १० को हुई बैठक में बीसीआई ने प्रस्ताव (नंबर ७३/२०१० है) पारित कर वकालत की प्रेक्टिस के लिए अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षा अनिवार्य की है। इसमें कहा गया है कि एडवोकेट एक्ट १९६१ की धारा २४ के तहत किसी भी लॉ ग्रेजुएट को वकालत के लिए तब तक रजिस्टर्ड नहीं किया जाएगा जब तक उसने ऑल इंडिया बार एक्जाम उत्तीर्ण न कर लिया हो। यह परीक्षा अकादमिक वर्ष २००९-१० तथा उसके बाद उत्तीर्ण होने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य होगी। परीक्षा साल में दो बार होना तय किया गया है(निश्चय बोनिया,नई दुनिया,भोपाल,25.7.2010)।
बीसीआई के इस निर्णय को वकालत के अधिकार का हनन बताया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के विवि विभाग के बीएएलएलबी पांचवें सेमेस्टर के एक छात्र अनुज अग्रवाल ने बीसीआई के निर्णय के विरुद्ध मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में भारतीय संविधान की धारा २२६ के तहत याचिका (९३७०/२०१०) दायर की है। याचिकाकर्ता ने बीसीआई तथा भारत सरकार के विधि एवं न्यायिक मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया है। छात्र की ओर से दायर याचिका में बीसीआई के अध्याय ३ के भाग ४ में दर्शाए गए ९ से ११ तक के नियमों के तहत उल्लेखित "राइट टू प्रेक्टिस" की वैधता को चुनौती दी गई है। यह एक्ट भारत के संविधान की धारा १४ व १९ (१) (जी) के अंतर्गत बीसीआई ने ही एडवोकेट एक्ट १९६१ नाम से पारित किया था। मामले की सुनवाई जस्टिस अरुण मिश्रा व जस्टिस एससी सिन्हो कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार इस केस पर दो बार सुनवाई हो चुकी है तथा दोनों ही बार सुनवाई में बीसीआई की तरफ से कोई भी वकील उपस्थित नहीं था। सुनवाई की अगली तारीख २७ जुलाई १० है। उल्लेखनीय है कि ३० अप्रैल १० को हुई बैठक में बीसीआई ने प्रस्ताव (नंबर ७३/२०१० है) पारित कर वकालत की प्रेक्टिस के लिए अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षा अनिवार्य की है। इसमें कहा गया है कि एडवोकेट एक्ट १९६१ की धारा २४ के तहत किसी भी लॉ ग्रेजुएट को वकालत के लिए तब तक रजिस्टर्ड नहीं किया जाएगा जब तक उसने ऑल इंडिया बार एक्जाम उत्तीर्ण न कर लिया हो। यह परीक्षा अकादमिक वर्ष २००९-१० तथा उसके बाद उत्तीर्ण होने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य होगी। परीक्षा साल में दो बार होना तय किया गया है(निश्चय बोनिया,नई दुनिया,भोपाल,25.7.2010)।
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