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26 जुलाई 2010

स्कूली संसद में भी अब होगा शून्य काल

केंद्रीय स्कूलों में 30 साल से चल रही पार्लियामेंट का चोला अब बदलेगा। इसके लिए शून्य काल शुरू करने की तैयारी है। सभी केंद्रीय विद्यालयों को इस आशय के सर्कुलर जारी कर दिए गए हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार यह शून्य काल प्रथम चरण में देश के 90 केंद्रीय विद्यालयों में शुरू किया जाएगा। इन सभी स्कूलों की टीमें रीजनल और जोनल प्रतियोगिताओं मे भागीदारी के बाद बेस्ट टीम का खिताब जीतने के लिए राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में जाएंगी। प्रदेश के विभाजन और उत्तराखंड बन जाने के बाद भी बरेली जनपद देहरादून रीजन में शामिल है। इस रीजन में बरेली के छह केंद्रीय विद्यालयों समेत कुल लगभग 70 विद्यालय शामिल हैं। स्कूली संसद (यूथ पार्लियामेंट) में शून्य काल के बारे में कुछ चुनिंदा शिक्षकों को हाल ही में ओरिएंटेंशन प्रशिक्षण भी दिया गया है। शिक्षकों को बताया गया है कि वे अपने स्कूलों में सांकेतिक संसदों का आयोजन कर अन्य शिक्षकों को भी प्रशिक्षण दें। कार्यक्रम केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्रालय और केंद्रीय विद्यालयों के संयुक्त तत्वावधान में चलाया जा रहा है। ओरिएंटेशन कार्यक्रम अभी कुछ और हफ्तों तक जारी रहेंगे। इन संसदों के आयोजन का मूल उद्देश्य बच्चों को संसद के बारे में बुनियादी जानकारी देना, उनमें नेतृत्व के गुण और स्वत:स्फूर्त अनुशासन पैदा करना है ताकि लोकतंत्र की भावना उनमें मजबूत हो। क्या है स्कूली संसद स्कूली या यूथ पार्लियामेंट बच्चों को संसदीय कार्यशैली से अवगत कराने का एक कार्यक्रम हैं जो अबसे तीस साल पहले देश के केंद्रीय विद्यालयों में शुरू किया गया था। इसके लिए पांचवीं से बारहवीं कक्षा तक के उन छात्र-छात्राओं को चुना जाता है जो अच्छे वक्ता होते हैं। इन्हें सांसद माना जाता है। किसी कक्ष को संसद का हूबहू रूप देकर उसमें बच्चों को ही स्पीकर, डिप्टी स्पीकर और कृषि, रेल, गृह, शिक्षा जैसे कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री के रूप में पेश किया जाता है। इसमें नेता विरोधी दल भी बनाया जाता है। सांसद के रूप में मौजूद बच्चे शिक्षकों द्वारा पहले से तैयार किये गये प्रश्न पूछते हैं। स्पीकर व्यवस्था देता है और मंत्री जवाब। कुल मिलाकर यह दृश्य संसद के सदन की एक झांकी प्रस्तुत करते हैं जो बच्चों और शिक्षकों को खूब भाता है। अब इसमें शून्य प्रहर शामिल होने के बाद शायद इसका रूप बिलकुल नया हो जाएगा(आर एस एस सोलंकी,दैनिक जागरण,बरेली,26.7.2010)।

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