राज्य में पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अब हिमाचल प्रदेश सरकार पर्यावरण को बचाए जाने के लिए एक और अनूठा प्रयोग करने जा रही है। सरकार ने फैसला लिया है कि स्कूली बच्चों द्वारा पहने जाने वाले चमड़े के जूतों को कपड़े के जूतों से बदला जाए। इस फैसले को लागू करने के आदेश भी जारी कर दिए गए हैं। हाल ही में जारी किए गए इन आदेशों के तहत शिक्षा निदेशक ने राज्य में स्थित सभी स्कूलों के हेडमास्टरों और प्रिंसिपलों से कहा है कि वे यह सुनिश्चित बनाएं कि स्कूली बच्चे चमड़े के जूतों की जगह कपड़े के जूते पहनें। संभवत: हिमाचल देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने पर्यावरण की सुरक्षा के दृष्टिï से स्कूली बच्चों को चमड़े के जूते न पहनाए जाने के आदेश जारी किए हों। यह आदेश सरकारी स्कूलों के साथ-साथ निजी स्कूलों पर भी लागू होगा।
सरकार का मानना है कि चमड़े के जूते कपड़े के जूतों के मुकाबले में अच्छे नहीं होते। चमड़े के जूतों के कारण बच्चों को कई तरह की परेशानियां और स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। खराब होने पर फेंके जाने की स्थिति में चमड़े के जूते पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते हैं जबकि कपड़े के जूतों को फेंके जाने से पर्यावरण पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ता। बरसात में चमड़े के जूते गीले होने पर बच्चों के पैरों में बदबू पैदा कर देते हैं। इसके अलावा चमड़े के जूतों की पॉलिश भी पर्यावरण की दृष्टिï से हानिकारक होती है जबकि कपड़ों के जूतों पर होने वाली पॉलिश को पर्यावरण मित्र माना जाता है। इतना ही नहीं चमड़ों के जूतों की तूलना में कपड़े के जूते अधिक आरामदायक भी होते हैं और इन्हें पहनकर बच्चे आराम से खेलकूद सकते हैं।
यहां यह जानना जरूरी है कि राष्टï्रीय स्तर पर भी स्कूलों में बच्चों को चमड़े के जूते की जगह कपड़े के जूते पहनाए जाने पर गंभीरतापूर्वक विचार चल रहा है। यह मांग पर्यावरण पे्रमियों के साथ-साथ पशु प्रेमियों द्वारा भी उठाई जा रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने तो इस बारे में केंद्र सरकार को कई पत्र भी लिखे हैं। उनका कहना है कि चमड़े को बनाए जाने के लिए पशुओं की खाल का इस्तेमाल किया जाता है। यदि चमड़े के जूतों पर प्रतिबंध लग जाए तो भारी संख्या में पशुओं को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है। चमड़े की बढ़ती खपत के कारण ही पशुओं का बलि चढ़ाया जा रहा है। यह मामला लोकसभा में भी उठ चुका है।
सूत्रों का कहना है कि चमड़े के जूतों के इस्तेमाल को लेकर उठे सवालों के बीच सीबीएसई और आईसीएसआई जैसे बोर्डों ने भी सैद्धांतिक तौर पर यह स्वीकार कर लिया है कि बच्चों को स्कूल में चमड़े के जूतों की जगह कपड़े के जूते पहनकर आने के लिए प्रेरित किया जाए। इस संबंध में दोनों बोर्डों ने कुछ अरसा पहले आवश्यक दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। लेकिन अभी तक दोनों बोर्डों के तहत आने वाले स्कूलों में बच्चे चमड़े के जूते ही इस्तेमाल कर रहे हैं। कपड़े के जूते जिन्हें कैन वॉश जूते कहा जाता है केवल खेलकूद और पीटी आदि के लिए ही प्रयोग में लाए जा रहे हैं। अब जबकि हिमाचल प्रदेश ने कपड़े के जूतों को स्कूली बच्चों की वर्दी का अनिवार्य हिस्सा बनाए जाने का फैसला ले लिया है तो उम्मीद की जा सकती है कि इसका असर प्रदेश के बाहर भी पड़ेगा।
मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल का कहना है कि सरकार ने यह फैसला इसलिए भी लिया है ताकि स्कूली बच्चों में पर्यावरण के प्रति और जागरुकता लाई जा सके।
दैनिक ट्रिब्यून द्वारा संपर्क साधे जाने पर उन्होंने बताया कि जब बच्चों को यह मालूम होगा कि पर्यावरण की सुरक्षा के दृष्टिïगत वह कपड़े के जूते पहन रहे हैं तो निश्चित तौर पर इसका असर उनकी मनोस्थिति पर भी होगा। बच्चे ही क्योंकि भविष्य के कर्णधार हैं इसलिए उनमें पर्यावरण को लेकर बढऩे वाली सजगता से ही इस संबंध में समाज के दृष्टिïकोण को बदला जा सकता है(दैनिक ट्रिब्यून,शिमला,25.7.2010)।
बहुत अच्छा निर्णय है। स्वागत होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंइसके साथ ही भारत में टाई पर भी प्रतिबन्ध होना चाहिये। इस गरम देश में बच्चों को खुली हवा चाहिये। इसके बजाय उनकी गर्दन की बटन कस दी जाती है। कहने की जरूरत नहीँ कि हजारों में एक स्कूलों में ही वातानुकूलित कमरे हैं।