इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि लोक सेवा आयोग यदि विज्ञापन में विकलांग आरक्षण न दे और बाद में इस गलती को दुरुस्त कर ले तो चयन में कोई कानूनी खामी नहीं मानी जाएगी। अदालत ने कहा है कि पिछड़े व अन्य वर्गो को आरक्षण अनुच्छेद 335 की विषय वस्तु है। कोई नागरिक अधिकार के तौर पर आरक्षण की मांग नहीं कर सकता। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रारंभिक परीक्षा के आधार पर मुख्य परीक्षा के लिए शार्ट लिस्टिंग करने को अनुच्छेद 335 के अनुरूप माना है। अदालत ने वर्ष 2006 में शुरू की गई सहायक अभियोजन अधिकारियों की भर्ती में याची को आरक्षण का लाभ देने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनील अंबवानी तथा न्यायमूर्ति केएन पांडेय की खंडपीठ ने देवेंद्रनाथ तिवारी की याचिका पर दिया है। याची का कहना था कि विज्ञापन में विकलांग कोटे का जिक्र न होने से सामान्य अभ्यर्थी होने के कारण वह प्रारंभिक परीक्षा में सफल नहीं हो सका। आयोग द्वारा मुख्य परीक्षा के आधार पर आरक्षण देते हुए विपक्षियों का चयन किया जाना उचित नहीं है(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,24.7.2010)।
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