कहते हैं किताबें हमारी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। तकनीक के इस युग में ज्ञान पाने के भले ही सैकड़ों माध्यम उपलब्ध हों लेकिन किताबों का अपना अलग महत्व है। इनकी सत्यता पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सकता है तो तथ्यों की सत्यता के मामले में अन्य माध्यमों पर भरोसा करना मुश्किल होता है। किताबें लिखे जाने व पाठक तक पहुंचने के बीच यह पब्लिशर के दायरे से होकर गुजरती हैं। पब्लिशर ही किसी लेखक की रचना को किताबों का रूप देकर हम तक पहुंचाता है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि इस टेक्नो-एज में पब्लिशिंग इंडस्ट्री व्यापार जगत के बाहर हो चुकी है लेकिन बड़ी तादाद में बढ़ती पब्लिशर की संख्या इस तथ्य को सिरे से खारिज करती है।
मुख्यत: प्रिंट पर आधारित पब्लिशिंग इंडस्ट्री का भविष्य बेहद उज्ज्वल है। छपे हुए शब्दों से लोगों का प्रेम पिछले सैकड़ों सालों से नजर आ रहा है और आने वाले लाखों सालों तक इसके लगातार बढऩे की ही संभावना है। इसलिए पब्लिशिंग उद्योग के उज्ज्वल क्षेत्र में करिअर बनाने में किसी प्रकार की कोई आशंका व्यक्त नहीं की जा सकती। इस क्षेत्र में मुख्यत: किताबों, न्यूज पेपर, मैगजीन और जनरल की प्रिंटिंग का काम किया जाता है। इस कार्य में प्रिंटिंग के अलावा इन्हें पब्लिश करने की जिम्मेदारी भी पब्लिशिंग हाउस के जिम्मे होती है।
इस क्षेत्र में करिअर की शुरुआत के लिए ज्ञान व अनुभव दोनों की समान रूप से आवश्यकता होती है। अपना व्यापार शुरू करने के अलावा इस क्षेत्र में नौकरियों की भी असीम संभावनाएं हैं। जिन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, पहला एडिटोरियल, दूसरा प्रोडक्शन और तीसरा मार्केटिंग। इन तीनों ही क्षेत्रों में कुशल कर्मचारियों की मांग लगातार बनी रहती है। पब्लिशिंग हाउस में एडिटोरियल सबसे मुख्य भाग माना जाता है अत: इसे ऐसे प्रोफेशनल व्यक्ति को सौंपा जाता है जिसके पास कम से कम दस सालों का अनुभव हो। इस काम के लिए टीचिंग बैकग्राउंड अथवा विज्ञान, मेडिसिन और लॉ में डिग्री या डिप्लोमा होल्डर को विशेष वरीयता दी जाती है। फिक्शन एडिटोरियल संभालने के लिए लिट्रेचर बैकग्राउंड वाले व्यक्ति को कार्यभार सौंपा जाता है। पब्लिशिंग इंडस्ट्री में करिअर बनाने के लिए किताबों से लगाव होना बेहद जरूरी है। इस क्षेत्र में सब-एडिटर के रूप में करिअर की शुरुआत करने के लिए एडिटोरियल स्किल और धैर्य का होना बेहद जरूरी है क्योंकि किताबों व अन्य सामग्री का एकाग्र होकर अध्ययन करना व प्रूफ चेक करना ही सब-एडिटर का काम है जो बिना धैर्य के संभव नहीं। इस उद्योग में कदम रखने से पहले इस बात पर विशेष ध्यान दें कि छपाई के दौरान नई किताबों से आने वाली महक आपको कैसी लगती है अगर इस महक से आपको परेशानी होती है तो यह क्षेत्र आपके अनुकूल नहीं है।
पब्लिशिंग इंडस्ट्री के अलग-अलग रूप
एडिटोरियल—इस विभाग में एक मुख्य एडिटर व उसकी टीम होती है। इस टीम में कई सब-एडिटर, कॉपी एडिटर आदि शामिल होते हैं। एडिटोरियल डायरेक्टर इन सबका मुखिया होता है। डायरेक्टर, एडिटर व अन्य कर्मचारियों को गाइड करता है। एडिटर का मुख्य काम पब्लिसिंग हाउस के अंतर्गत रिलीज होने वाली किताबें, मैगजीन व अन्य सामग्री की पूरी जानकारी रखना है। कौन-सी किताब किस लेखक से लिखवानी है और इसका विषय क्या होगा, इसका चयन भी एडिटर ही करता है। किताब तैयार होने की समय सीमा व किताब का फाइनल प्रोडक्शन भी एडिटर ही तय करता है। छोटे पब्लिशिंग हाउस में एडिटर प्रोडक्शन के अलावा मार्केटिंग का काम भी संभालता है। एडिटोरियल टीम में शामिल अन्य सब एडिटर प्रूफ रीडिंग का काम करते हैं। इस काम के अंतर्गत किताब की सामग्री की जांच, उसकी क्रमिकता, हिज्जे और व्याकरण संबंधी गलतियों को सुधारने का काम किया जाता है। इस पूरे कार्य के बाद किताब का अंतिम लेजर प्रिंट निकाला जाता है और फिर किताब पब्लिश होने के लिए रिलीज की जाती है।
प्रोडक्शन—कंटेंट संबंधी सारी जिम्मेदारी एडिटर के जिम्मे होती है तो पेज लेआउट, बुक कवर, पेपर क्वालिटी व इलेस्ट्रेशन संबंधी कार्य एडिटर व प्रोडक्शन इंचार्ज मिलकर करते हैं। प्रोडक्शन के काम में डिजाइन डिपार्टमेंट की अहम भूमिका अहम होती है। कई पब्लिशिंग हाउस इस काम के लिए फ्रीलांस आॢटस्टों की मदद लेते हैं जिसमें इलेस्ट्रेशन, कवर डिजाइन व फोटोग्राफ संबंधी चीजें शामिल हैं। नई तकनीक के आने से प्रोडक्शन का काम काफी आसान हो चुका है व किताबों का रूप -रंग भी पहले की तुलना में काफी आकर्षक होने लगा है। प्रोडक्शन विभाग कागज की खरीद, प्रिंटिंग व किताब की बाइंडिंग का कार्य भी करता है। न्यूज पेपर व मैगजीन में यह विभाग न्यूज पिं्रट की खरीद तथा प्रिंटिंग, न्यूज पेपर व मैगजीन के डिसपैच का कार्य भी यही विभाग करता है। डिसपैच के बाद तैयार किताबें, न्यूज पेपर व मैगजीन मार्केटिंग डिपार्टमेंट को सौंप दी जाती है।
सेल्स और मार्केटिंग—इस विभाग का मुख्य कार्य पब्लिसिटी, प्रमोशन व सेल्स कैंपेन आयोजित कराना होता है। बाजार में किताबों की बिक्री कैसे बढ़ायी जाए इसे लेकर योजना बनाना भी इसी विभाग के जिम्मे होता है। पब्लिशिंग हाउस के सेल्स प्रतिनिधि बुकशॉप, सेल्स आउटलेट व अन्य स्थानों पर चक्कर लगाते रहते हैं ताकि ऑर्डर की मांग होने पर फौरन सप्लाई की जा सके। ऑन लाइन बुक सेल की सुविधा उपलब्ध होने से किताबों की बिक्री अब पहले की तुलना में काफी आसान हो चुकी है।
कोर्स—इस क्षेत्र में करिअर की शुरुआत के लिए कोर्स की संख्या काफी कम है। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर पब्लिशर अपने यहां उपलब्ध स्टाफ को ही काम की जरूरत के अनुसार टे्रनिंग देकर हर प्रकार के काम कराते रहते हैं। इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए निम्न कोर्स उपलब्ध हैं:
ग्रेजुएशन/पोस्ट ग्रेजुएशन इन जर्नलिज्म
ग्रेजुएट ऑफ आर्ट/ग्राफिक डिजाइनर/कॉमर्शियल आर्ट/फोटोग्राफी/कैलीग्राफी
डिप्लोमा इन प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी
प्रमुख संस्थान—इस क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में निम्न संस्थान मौजूद रहें—
कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज, शेख सराय, नयी दिल्ली
इंस्टीच्यूट ऑफ बुक पब्लिशिंग, ग्रीन पार्क, नयी दिल्ली
गवर्नमेंट इंस्टीच्यूट ऑफ प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी, बंगलौर
महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, कोट्टïयम, केरल
महाराष्ट्र इंस्टीच्यूट ऑफ प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी, पुणे
गवर्नमेंट इंस्टीच्यूट ऑफ प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी, मुंबई
इंस्टीच्यूट ऑफ प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी, चैन्नई, तमिलनाडु
जाधवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता(जी.एस.नंदिनी,दैनिक ट्रिब्यून,2 मार्च,2010)
...saarthak abhivyakti !!!
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