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26 जुलाई 2010

राजस्थान यूनिवर्सिटी की जेब तंग !

राजस्थान यूनिवर्सिटी के स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम संचालित करने वाले विभागों और केंद्रों पर आर्थिक मार पड सकती है। अब विभागों में कार्यरत संविदा कर्मचारियों का वेतन भुगतान संबंधित विभाग को ही करना पड सकता है क्योंकि कार्यवाहक कुलपति प्रो.एडी सावंत की ओर से यूनिवर्सिटी में अशैक्षणिक कर्मचारी वर्ग के रिक्त पडे पदों पर वर्कलोड का आंकलन करने के लिए गठित की गई कमेटी ने कुछ ऎसी ही राय दी है। कमेटी ने यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी अब एजेंसी के माध्यम से ही काम पर रखने की बात कही है।

कार्यभार आंकलन समिति के समन्वयक प्रो.सतीश राय का कहना है कि कमेटी सदस्यों के साथ पिछले दिनों महाराजा, महारानी, राजस्थान, कॉमर्स कॉलेज के साथ ही पोद्दार प्रबंध संस्थान केन्द्रीय पुस्तकालय, सेंटर फॉर कन्वर्जिग टेक्नोलॉजी, कम्प्यूटर सेंटर, प्राणिशास्त्र विभाग और विवि छापाखाने का निरीक्षण कर वर्कलोड का आंकलन किया गया।

प्रो.राय का कहना है कि यूनिवर्सिटी की ओर से 29-30 जून को सेवानिवृत्ति और संविदा पर कार्यरत करीब पांच सौ से अघिक कर्मचारियों को हटा दिया गया।
इससे यूनिवर्सिटी का कामकाज प्रभावित हो रहा है। जबकि अभी प्रवेश और परीक्षा कार्यो का व्यस्तम समय है। यूनिवर्सिटी में कई स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम को संचालित करने वाले विभागों और कॉलेजों में कार्यरत संविदाकर्मियों को पाठ्यक्रम शुल्क की आय से वेतन का भुगतान नहीं कर यूनिवर्सिटी पर अनावश्यक भार डाला जा रहा है। जबकि वेतन पाठ्यक्रम शुल्क से होने वाली आय से ही दिया जाना चाहिए।

कमेटी ने अपनी सिफारिश में यह भी कहा है कि तकनीकी रूप से कुशल और योग्य कर्मचारियों के साथ ही यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी एजेंसी के माध्यम से लिया जा सकता है। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के छात्रावासों में कुकों की संख्या बढाने, यूनिवर्सिटी छापाखाने में आधुनिक मशीने, तकनीकी कुशलताओं से युक्त कर्मचारियों को अस्थायी तौर पर नियुक्त किए जाने की बात पर भी कमेटी सदस्य एकमत नजर आ रहे हैं(राजस्थान पत्रिका,जयपुर,26.7.2010)।

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