यह याचिका रीवा के सिविल लाइंस इलाके में रहने वाले राघवेन्द्र प्रसाद गौतम की ओर से वर्ष 2006 में दायर की गई थी। इस मामले में यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया के उस पदोन्नति नियम की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, जिसमें कर्मचारियों को अंग्रेजी की परीक्षा 35 फीसदी अंक के साथ पास करना अनिवार्य किया गया है।
वैसे तो यह याचिका एकलपीठ के समक्ष दायर की गई थी, लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से दी गई अर्जी पर जस्टिस आरके गुप्ता की एकलपीठ ने मामले को संवैधानिक बैंच को भेजे जाने की सिफारिश की थी। तत्कालीन चीफ जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस संजय यादव की युगलपीठ के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उभरकर सामने आया कि याचिकाकर्ता जो हिन्दी भाषा में निपुण है, उसे पदोन्नति के लिए अंग्रेजी की परीक्षा 35 फीसदी अंक के साथ पास करने के लिए बाध्य किया जाना आधिकारिक भाषा अधिनियम 1963 की धारा 3 की उपधारा 4 के तहत संवैधानिक है, या नहीं? इस मुद्दे का समाधान करने के लिए यह मामला युगलपीठ द्वारा फुल बैंच को भेजा गया था।
नेत्रहीन आवेदक ने खुद की बहस
इस मामले में खास बात यह है कि याचिकाकर्ता नेत्रहीन है, लेकिन वह खुद अपनी पैरवी कर रहा है। गुरुवार को भी फुल बैंच के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान उसने धारा प्रवाह ढंग से बहस शुरू की। एक ओर उसकी पत्नी और दूसरी ओर उसकी बेटी उसका सहयोग कर रही थीं।
वहीं अनावेदक बैंक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसके राव और अधिवक्ता संजीव चतुर्वेदी पैरवी कर रहे हैं। आवेदक द्वारा की गई बहस और मामले की गंभीरता को मद्देनजर रखते हुए फुल बैंच ने आवेदक की ओर से पैरवी करने और अदालत को सहयोग प्रदान करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति की है(भास्कर डॉट कॉम,जबलपुर,23.7.2010)।
ये तो बहुत असंवैधानिक ही नहीं गुलामीप्रेरक नियम है। भाई टेस्त लेना है तो बैंकिंग की जानकारी का टेस्ट लो । यह छोड़ दो कि उसने यह ज्ञान हिन्दी के सहारे सीखा है या चीनी भाषा के सहारे। आखिर अधिकर भारतीय तो हिन्दी ही बोलते हैं न? उनसे ही तो उसे बातचीत करनी है।
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