उत्तरप्रदेश में निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना के मुद्दे पर एक बार फिर निगाहें राजभवन पर केंद्रित हो गई हैं। यह स्थिति निजी विश्वविद्यालयों के मुद्दे पर राजभवन और राज्य की बसपा सरकार के बीच तल्ख हुए रिश्तों से बनी है। सरकार राज्य में निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए खासी आतुर है। वह इस संबंध में दो अलग-अलग विधेयक विधान मंडल से पारित करा मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेज चुकी है,लेकिन राजभवन ने फिलवक्त तक इन्हें मंजूरी प्रदान नहीं की है। सरकार चाहती है कि शुक्रवार से शुरू हो रहे राज्य विधानसभा के सत्र से पूर्व राज्यपाल इन विधेयकों को मंजूरी प्रदान कर दें ताकि नये सत्र में कुछ और निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना से संबंधी प्रस्तावों को सदन से पारित कराया जा सके,लेकिन राजभवन की चुप्पी ने सरकार की धड़कनें बढ़ा दी हैं। निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना और उनके नियंत्रण के लिए राज्य मंत्रिमंडल ने पिछले साल 23 अक्टूबर को (उप्र प्राइवेटली फंडेड यूनीवर्सिटीज स्टेब्लिशमेंट एंड रेगुलेशन) अध्यादेश, 2009 के मसौदे को मंजूरी दी थी,लेकिन इसके कुछ दिन बाद राज्य मंत्रिमंडल ने अज्ञात कारणों से यकायक इस अध्यादेश की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया था। सत्ता के गलियारों में कयास लगाए गए कि सरकार ने निजी विश्वविद्यालय खोलने की इच्छुक संस्थाओं के दबाव में अपने कदम वापस खींचे थे। इन चर्चाओं को तब और बल मिला जब सरकार प्रदेश में दो निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए विधेयक विधानमंडल में पेश कर मंजूर करा लिए। विधेयक मथुरा में जीएलए विश्वविद्यालय और बरेली में इन्वर्टिस विश्वविद्यालय की स्थापना से संबंधित थे, लेकिन विधानमंडल से पारित इन दोनों विधेयकों को राजभवन से मंजूरी नहीं मिली। राजभवन ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा विश्वविद्यालयों के लिए प्रस्तावित माडल एक्ट का इंतजार करने की मंशा का हवाला दे विधेयक रोक लिए। इसके बाद सरकार ने निजी विश्वविद्यालयों को कानून की एक छतरी के नीचे लाने के लिए विधानमंडल के पिछले बजट सत्र में उत्तर प्रदेश निजी निधिकृत विश्वविद्यालय (स्थापना एवं विनियमन) विधेयक, 2010 पेश किया । विधानमंडल से पारित होने के बाद यह विधेयक भी राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया,लेकिन राज्यपाल ने इसका भी अनुमोदन नहीं किया। इस विधेयक की धारा 5(1)(ख) के मुताबिक सूबे में निजी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए प्रायोजक निकाय के पास न्यूनतम 50 एकड़ जमीन की अनिवार्यता जताई गई,इसमें से कम से कम 15 एकड़ जमीन प्रमुख स्थान पर और बाकी 35 एकड़ भूमि प्रमुख स्थान से 40 किमी के दायरे में होने का प्रावधान किया गया। बताते हैं कि सरकार का यह बेतुका प्रावधान राजभवन को रास नहीं आया और इसी वजह से विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली,राजभवन में सरकार का यह विधेयक भी ठंडे वस्ते के हवाले कर दिया गया। अब सरकार फिर कई निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए आगामी सत्र में विधेयक लाना चाहती है। इनमें से पांच विश्वविद्यालयों के विधेयक लाए जाने के प्रस्तावों को कैबिनेट 30 जुलाई की बैठक में अनुमोदित भी कर चुकी है। इनमें से दो विधेयक मथुरा में जीएलए विवि और बरेली में इन्वर्टिस विवि की स्थापना के लिए पूर्व में विधानमंडल द्वारा पारित किए जा चुके हैं। शेष तीन विधेयक लखनऊ में बाबू बनारसी दास विवि, हापुड़ में मोनाड विवि और मुरादाबाद में आईएफटीएम विवि से संबंधित हैं। इनके अलावा नोएडा और ज्योतिबा फुले नगर में भी निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना की तैयारी है(राजीव दीक्षित,दैनिक जागरण,लखनऊ,5.8.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।